दो नई ग़ज़ले
>> Friday, September 18, 2009
सबको थोड़ा-थोड़ा सुख मिल जाता है
इतने से ही यह जीवन चल जाता है
बिना तेल-बाती के हमने देखा है
विश्वासों का दीप सदा जल जाता है
खरा आदमी ही चलता है दूर तलक
खोटा केवल एक बार चल जाता है
देख आईना सूरत को मायूस न हो
शाम हुई तो सूरज भी ढल जाता है
धोखा देना फितरत है इंसानों की
रोटी पाकर केवल पशु पल जाता है
ये शुभघडियों का चक्कर छोडो प्यारे
इस चक्कर में काम सदा टल जाता है
खोज रहा हूँ असली कारण क्यो पंकज
जिसको अपना कहते है, छल जाता है
(२)
साथ आओगे तो मुझको हौसला मिल जाएगा
साँस लेने का समझ लो सिलसिला मिल जाएगा
यूँ अकेला भी चलू तो कौन रोकेगा मुझे
तुम रहोगे साथ तो यह रास्ता कट जाएगा
थे बहुत छोटे तो सारे भाई-बंधू एक थे
क्या पता था कि बड़े होंगे तो घर बंट जाएगा
आपके होने का दम जो लोग भरते है यहाँ
आने दो कोई मुसीबत सब पता चल जाएगा
प्यार दे कर जीत लो इस ज़िन्दगी की जंग को
हो कोई दुश्मन तुम्हारे रंग में ढल जाएगा
गिरीश पंकज
इतने से ही यह जीवन चल जाता है
बिना तेल-बाती के हमने देखा है
विश्वासों का दीप सदा जल जाता है
खरा आदमी ही चलता है दूर तलक
खोटा केवल एक बार चल जाता है
देख आईना सूरत को मायूस न हो
शाम हुई तो सूरज भी ढल जाता है
धोखा देना फितरत है इंसानों की
रोटी पाकर केवल पशु पल जाता है
ये शुभघडियों का चक्कर छोडो प्यारे
इस चक्कर में काम सदा टल जाता है
खोज रहा हूँ असली कारण क्यो पंकज
जिसको अपना कहते है, छल जाता है
(२)
साथ आओगे तो मुझको हौसला मिल जाएगा
साँस लेने का समझ लो सिलसिला मिल जाएगा
यूँ अकेला भी चलू तो कौन रोकेगा मुझे
तुम रहोगे साथ तो यह रास्ता कट जाएगा
थे बहुत छोटे तो सारे भाई-बंधू एक थे
क्या पता था कि बड़े होंगे तो घर बंट जाएगा
आपके होने का दम जो लोग भरते है यहाँ
आने दो कोई मुसीबत सब पता चल जाएगा
प्यार दे कर जीत लो इस ज़िन्दगी की जंग को
हो कोई दुश्मन तुम्हारे रंग में ढल जाएगा
गिरीश पंकज
1 टिप्पणियाँ:
खोज रहा हूँ असली कारण क्यो पंकज
जिसको अपना कहते है, छल जाता है
wah donon gazlen nihayat hi khoobsurat, badhaai.
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