साधो यह हिजडों का गाँव -3
>> Wednesday, October 28, 2009
(8)
साधो नौकर तो नौकर है।
चूहे को बिल्ली का डर है, नेता को दिल्ली का डर है।
आईएएस और आईपीएस? इन सबका भी झुकता सर है।
वो भी नौकर ये भी नौकर, कहाँ कोई सुरखाबी पर है।
इक नौकर गाड़ी में चलता, इक पैदल जाता दफ्तर है।
गर्व न करना सूट-बूट का, कुछ दिन का बस ये चक्कर है।
(9)
सच्चा जीवन सबसे बेहतर।
जैसे बाहर तुम दिखते हो, वैसा ही बस रहना भीतर।
हो अन्याय कहीं तो बेशक, चीखो थोड़ी-सी हिम्मत कर।
रचना अच्छी, जीवन गंदा, ऐसे में लगते हो जोकर।
आया था बेदाग मुसाफिर, जाना है बेदाग संभल कर।
पद-पैसा किस पे इतराए, मिल-जुल रे तू सबसे हँसकर।
(10)
याचक होना बहुत जरूरी।
बेचो खु़द को चौखट-चौखट, कहाँ की श्रद्धा और सबूरी?
देखो कौन सफल है अब तो, नंगे-लुच्चे, छप्पनछूरी।
अगर चाहिए सच्चा सुख तो, रहे न चाहत की मजबूरी।
जब तक जीवन तब तक आखिर, हुई वासना किसकी पूरी।
बिना याचना कुछ ना मिलता, बनी अगर प्रभुता से दूरी।
साधो नौकर तो नौकर है।
चूहे को बिल्ली का डर है, नेता को दिल्ली का डर है।
आईएएस और आईपीएस? इन सबका भी झुकता सर है।
वो भी नौकर ये भी नौकर, कहाँ कोई सुरखाबी पर है।
इक नौकर गाड़ी में चलता, इक पैदल जाता दफ्तर है।
गर्व न करना सूट-बूट का, कुछ दिन का बस ये चक्कर है।
(9)
सच्चा जीवन सबसे बेहतर।
जैसे बाहर तुम दिखते हो, वैसा ही बस रहना भीतर।
हो अन्याय कहीं तो बेशक, चीखो थोड़ी-सी हिम्मत कर।
रचना अच्छी, जीवन गंदा, ऐसे में लगते हो जोकर।
आया था बेदाग मुसाफिर, जाना है बेदाग संभल कर।
पद-पैसा किस पे इतराए, मिल-जुल रे तू सबसे हँसकर।
(10)
याचक होना बहुत जरूरी।
बेचो खु़द को चौखट-चौखट, कहाँ की श्रद्धा और सबूरी?
देखो कौन सफल है अब तो, नंगे-लुच्चे, छप्पनछूरी।
अगर चाहिए सच्चा सुख तो, रहे न चाहत की मजबूरी।
जब तक जीवन तब तक आखिर, हुई वासना किसकी पूरी।
बिना याचना कुछ ना मिलता, बनी अगर प्रभुता से दूरी।
गिरीश पंकज
1 टिप्पणियाँ:
बिना याचना कुछ ना मिलता, बनी अगर प्रभुता से दूरी। ्सत्य वचन.
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