''सद्भावना दर्पण'

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इस बार व्यंग्य....

>> Wednesday, October 7, 2009


व्यंग्य.....
राष्ट्रगान का रिहर्सल ?
वाह, क्या आईडिया है....

बड़े देश भक्त है ये लोग इन्हे प्रणाम करना चाहिए चलिए, पहले प्रणाम कर ही ले
प्रणाम...... प्रणाम...... प्रणाम......
ऐसे ही खाली-पीली किसी को प्रणाम नही किया जाता लेकिन मै जिन महान आत्माओं को प्रणाम कर रहा हूँ, दरअसल वे देशभक्त आत्माएं है अब वैसे भी देश-भक्त बचे कहाँ ? जो नज़र रहे है उनकी चौराहे पर आरती उतारनी चाहिए क्यो उतारनी चाहिए इनकी आरती? इसका भी सॉलिड कारण है सुन लीजिये..
कुछ सरकारी अधिकारी एक कार्यक्रम के पहले राष्ट्र गान का रिहर्सल करवा रहे थे आज़ादी के बाद के अब तक के इतिहास की सबसे रोचक घटना यही है-राष्ट्रगान का रिहर्सल
एक अधिकारी आया पहले शातिर-सा चेहरा बनाया, फ़िर आदमी-सा मुसकाया, वह भी कुछ सेकेण्ड के लिए फ़िर बोला (मन ही मन) देखो कीडे-मकोडों..(प्रकट में कहा-) लेडीस एंड जेंटलमेन, हम समारोह करने जा रहे है वैसे तो हम समारोह करते रहते है (स्वगत कथन) यह हमारे लिए धंधा है इस बहाने कमाई हो जाती है खैर, पाइंट इस दैट, प्रोग्राम हो रहा है लोग कहते है कि प्रोग्राम के स्टार्टिंग और एंडिंग में नॅशनल एंथम- वो क्या कहते है, हाँ राष्ट्रगान ...ये होना ही चाहिए, प्रोग्राम की गरिमा बढती है मंत्री जी रहे है और भी कुछ हाई-फाई किस्म के लोग रहेंगे इसलिए मेरी बीवी भी रहेगी. उसे दीदी तेरा देवर दीवाना वाला गाना अच्छा लगता है. उसे राष्ट्रगान की एक-दो पंक्तिया भी याद है. तो हो जाए राष्ट्रगान, लेकिन उसका रिहर्सल ज़रूरी है ऐसा मेरे सबोर्डिनेट कहते है क्यों भाई?
इतना बोल कर अफसर ने सर घुमाया बगल में खड़े मातहत अफसर ने खीसे निपोरते हुए कहा- सर...सर...सर... चमचे की पारम्परिक सहमति पाकर अफसर ने कहना शुरू किया- तो हमने फैसला कर लिया है, कि राष्ट्रगान होगा मगर रिहर्सल हो जाए तो अच्छा रहेगा आप लोग क्या सोचते है?
एक कर्मचारी ऊंचे संसकारो वाला था वह सच बोलने की हिम्मत रखता था उसने कहा- राष्ट्रगान का रिहर्सल राष्ट्रगान का मज़ाक लगेगा सर, इसलिए बिना रिहर्सल गाना ठीक रहेगा आज़ादी के तिरसठ साल बाद भी अगर राष्ट्रगान कारिहर्सल हो रिहर्सल सर, आप लोग तो खैर सलामत रहे, मुझे डूब कर मर जाना चाहिए
अफसर ने कर्मचारी को घूर कर देखा जैसे खा जाएगा, लेकिन खा नही पाया सच्चाई को इतनी आसानी से खाया भी नही जा सकता मौका अच्छा था सत्यवादी कर्मचारी के खिलाफ माहौल बनने के लिए बाकी कर्मचारी श्वान-राग छेड़ बैठे-सर, आप का सुझाव ठीक है रिहर्सल ज़रूरी है हम राष्ट्रगान भूल चुके है इसी बहाने राष्ट्रगान याद कर लेंगे...
हो-हल्ला होने लगा अफसर की समझ में नही आया कि क्या करे रिहर्सल करे कि करे अफसर अफसर होता है मंत्री को छोड़ कर वह किसी के बाप का नौकर नही होता बैठक में कोई मंत्री नही था इसलिए वह ज़ोर से चीखा- खामोश, बकवास बंद रिहर्सल तो होगी
एक मुंह लगे चमचे ने कहा- सर, ऐसा करते है, राष्ट्रगान का रिहर्सल करने की बजाय राष्ट्रगान की धुन का रिहर्सल कर लेते है
चमचा मुह लगा था, सो अफसर को सुझाव जम गया वह बोला-वाह, भाई, कमाल कर दिया, धोती को फाड़ कर रूमाल कर दिया. तुमको तो पद्श्री मिलनी चाहिए जोरदार सुझाव है ये फाईनल रहा
जब अफसर कह रहा है फाईनल तो कौन कहे सेमी फाईनल बस, हो गया फाईनल

राष्ट्र धुन बजी एक बार...दो बार....रिहर्सल तो रिहर्सल है कोई मुस्करा रहा है, कोई खुजली कर रहा है, कोई इशारे कर रहा है, किसी का मोबाईल बज रहा है इस तरह राष्ट्रधुन की रिहर्सल हो रही है भारत माता मुस्कराई उसके मुंह से निकला-जय हो....वीर सपूतो की ऊपर वाले, इन्हे माफ़ कर देना क्योंकि, ये बेचारे नही जानते कि ये क्या कर रहे है
तभी कोई क्रांतिकारी आवाज़ गूंजी- नही, भगवान, जिस समाज को राष्ट्रगान या राष्ट्रधुन की रिहर्सल करनी पड़े, उसे जिंदा रहने का हक नही है ऐसा निकृष्ट समाज मर जाए तो ही बेहतर
लेकिन प्रश्न यह है कि राष्ट्रगान के रिहर्सल का आईडिया किसने दिया? उसे सज़ा मिलनी चाहिए या नही?
सज़ा मिले या पुरस्कार, हमारे यहाँ ये भी लम्बी चर्चा का विषय हो जाता है ससुरा अफसर बच कर निकल भागता है और छोटा-मोटा कर्मचारी शहीद कर दिया जाता है

गिरीश पंकज

4 टिप्पणियाँ:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" October 8, 2009 at 1:33 AM  

एक कर्मचारी ऊंचे संसकारो वाला था। वह सच बोलने की हिम्मत रखता था। उसने कहा- राष्ट्रगान का रिहर्सल राष्ट्रगान का मज़ाक लगेगा सर, इसलिए बिना रिहर्सल गाना ठीक रहेगा। आज़ादी के तिरसठ साल बाद भी अगर राष्ट्रगान कारिहर्सल हो रिहर्सल सर, आप लोग तो खैर सलामत रहे, मुझे डूब कर मर जाना चाहिए।

एक सुन्दर और तीखा व्यंग्य, पंकज जी !

Anil Pusadkar October 8, 2009 at 1:51 AM  

याद रहे तब तो बिना रिहर्सल गायेंगे।बिना रिहर्सल गाकर तमाशा बनने से अच्छा ही है रिहर्सल कर ले,इसी बहाने याद भी हो जाये।

अजय कुमार झा October 8, 2009 at 4:54 AM  

वाह गिरीश जी..राष्ट्रगान का रिहर्सल ..कमाल का धोया है आपने..लेकिन सच यही है..आज के समाज पर करारा व्यंग्य..

Randhir Singh Suman October 8, 2009 at 8:48 PM  

good

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