दो गज़लें....
>> Thursday, October 8, 2009
वो है शरीफ लेकिन हालात का मारा
झांसे में आ के मर गया ज़ज्बात का मारा
किस्मत ने छल किया मगर वो शख्स है कमाल
पैरो से काम लेता है अब हाथ का मारा
डरना है झूठ से सदा सच के लिए मरो
घुट-घुट के मर रहा है इसी बात का मारा
सूरज की रोशनी कभी उसको नहीं भाती
बचता है उजालो से सदा रात का मारा
पैदल भी चल रहे है मगर डर रहे है लोग
हर कोई हो गया है फसादात का मारा
वो आदमी है तनहा खुद्दार है पंकज
अब क्या करे कि है वो अपनी जात का मारा
(2)
मै कबिरा, सूर, तुलसी, जायसी, रसखान का वंशज
मै हूँ सदियों से जिंदा इक भले इन्सान का वंशज
मुझे नफ़रत से मत देखो करो तुम प्यार मुझसे भी
मुझे रब साथ रखता है मै हूँ भगवान का वंशज
करो कोई हुनर पैदा तभी तो याद आओगे
वो देखो कल मरा गुमनाम इक धनवान का वंशज
करो इज्ज़त सदा उसकी भले हो जेब से खाली
कभी भी देवता से कम नही है ज्ञान का वंशज
जो सबको बांटता है प्यार जिसके नैन हों नीचे
मगर माथा रखे ऊंचा वही इन्सान का वंशज
झांसे में आ के मर गया ज़ज्बात का मारा
किस्मत ने छल किया मगर वो शख्स है कमाल
पैरो से काम लेता है अब हाथ का मारा
डरना है झूठ से सदा सच के लिए मरो
घुट-घुट के मर रहा है इसी बात का मारा
सूरज की रोशनी कभी उसको नहीं भाती
बचता है उजालो से सदा रात का मारा
पैदल भी चल रहे है मगर डर रहे है लोग
हर कोई हो गया है फसादात का मारा
वो आदमी है तनहा खुद्दार है पंकज
अब क्या करे कि है वो अपनी जात का मारा
(2)
मै कबिरा, सूर, तुलसी, जायसी, रसखान का वंशज
मै हूँ सदियों से जिंदा इक भले इन्सान का वंशज
मुझे नफ़रत से मत देखो करो तुम प्यार मुझसे भी
मुझे रब साथ रखता है मै हूँ भगवान का वंशज
करो कोई हुनर पैदा तभी तो याद आओगे
वो देखो कल मरा गुमनाम इक धनवान का वंशज
करो इज्ज़त सदा उसकी भले हो जेब से खाली
कभी भी देवता से कम नही है ज्ञान का वंशज
जो सबको बांटता है प्यार जिसके नैन हों नीचे
मगर माथा रखे ऊंचा वही इन्सान का वंशज
गिरीश पंकज
2 टिप्पणियाँ:
गिरीश जी दोनों ग़ज़लें लाजवाब हैं...वाह...बधाई ...
नीरज
girish ji, donon gazlon ki jitni tareef ki jaaye kam hai, khas kar doosri.........wah har sher........lajawaab...........benmisaal.........gazab..........dheron badhai sweekaren.
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