''सद्भावना दर्पण'

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गीत का जन्म लेना सफल हो गया...

>> Wednesday, October 21, 2009

     गीत 
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...   

गीत मैंने रचे, जब वो तुमको रुचे,
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...

ये कड़ी धूप है ज़िन्दगी हाँ मगर,  तुम जो आये तो छाओं के मेले रहे.
तुम नहीं थे कभी तब तो सचमुच प्रिये, भीड़ में भी खड़े हम अकेले रहे.
साथ तेरा मिला,
मन सुमन-सा खिला,
घर ये मेरा था खंडित, महल  हो गया....
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...


ज़िन्दगी ये नसीबों से हमको मिली, इसको बाँटेंगे हम-तुम, चलो प्यार से.
गर यूं लड़ते रहे, ईर्षा में जले, क्या कहेंगे हम अपनी सरकार से   
जो मनुज के लिए,
ज़िन्दगी भर जिए,
वो तो सबके ह्रदय का कमल हो गया....
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...

हम हुए छुद्र बन कर के हिंसक पशु, खून अपने जनों का ही करते रहे,
मन किसी का दुखा, तन किसी का मिटा, मार कर के स्वयं भी तो मरते रहे.
लाख चौरासी योनि
से लौटे धनी
आदमी का जनम ही विफल हो गया...

गीत मैंने रचे, जब वो तुमको रुचे, 
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...
गिरीश पंकज                                           

4 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा October 21, 2009 at 9:01 AM  

ये कड़ी धूप है ज़िन्दगी हाँ मगर, तुम जो आये तो छाओं के मेले रहे.
तुम नहीं थे कभी तब तो सचमुच प्रिये, भीड़ में भी खड़े हम अकेले रहे.
साथ तेरा मिला,
मन सुमन-सा खिला,
घर ये मेरा था खंडित, महल हो गया....
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...

पढकर हमारा भी जीवन सफ़ल हो गया -बधाई

परमजीत सिहँ बाली October 21, 2009 at 10:05 AM  

बहुत ही सुन्दर व मोहक गीत है।बहुत बहुत बधाई।

Udan Tashtari October 21, 2009 at 12:15 PM  

गीत मैंने रचे, जब वो तुमको रुचे,
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...

--बहुत सही!

Yogesh Verma Swapn October 21, 2009 at 6:02 PM  

हम हुए छुद्र बन कर के हिंसक पशु, खून अपने जनों का ही करते रहे,
मन किसी का दुखा, तन किसी का मिटा, मार कर के स्वयं भी तो मरते रहे.
लाख चौरासी योनि
से लौटे धनी
आदमी का जनम ही विफल हो गया...

गीत मैंने रचे, जब वो तुमको रुचे,
गीत का जन्म लेना सफल हो गया...

girish bhai kamaal likhte hain aap , badhaai/

सुनिए गिरीश पंकज को

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