निशक्तों को समर्पित
>> Friday, October 23, 2009
सलामत है....
आँखे नहीं रही तो क्या गम
अपना हाथ सलामत है
तुम जैसे दिल वालो का भी
जब तक साथ सलामत है
पैर कट गए मगर हौसला
कैसे कट पता बोलो
जब जीवन में जीने का
यह जज्बात सलामत है
नहीं सुन सके, बोल न पाए
इससे फर्क नहीं पड़ता
संकेतों के जरिये देखो
सारी बात सलामत है
हम तो उजियारे की खातिर
निकल पड़े है मंजिल को
हम भी देखेंगे की आखिर
कब तक रात सलामत है
गिरीश पंकज
1 टिप्पणियाँ:
sundar kavita!!!
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