नेह मनुज को मिल जाता तो..
>> Saturday, October 24, 2009
गीत...
नेह मनुज को मिल जाता तो,
यह जीवन बेकार न होता.
होकर भी सुन्दर-सुखकारी,
अर्थहीन संसार न होता..
प्रिय रूठे तो लगता जैसे, जग ही हमसे रूठ गया है.
अपना कोई सच्चा साथी, बीच राह में छूट गया है.
तुम रहते गर साथ हमारे, वंचित-सा व्यवहार न होता.
नेह मनुज को मिल जाता तो,
यह जीवन बेकार न होता..
चलो साथ में जैसे इक, परछाई साथ हुआ करती है.
जैसे माँ अपने बच्चे को, दिल से सदा दुआ करती है.
कैसे टिक पाती यह दुनिया, अगर यहाँ पे प्यार न होता..
नेह मनुज को मिल जाता तो,
यह जीवन बेकार न होता.
पल भर के इस जीवन को हम, नफ़रत का उपहार न देंगे.
हो कितना भी संकट हम तो, हाथों में हथियार न लेंगे.
कितनी बदसूरत दिखती यह दुनिया गर श्रृंगार न होता..
नेह मनुज को मिल जाता तो,
यह जीवन बेकार न होता.
चन्दन बनकर इस दुनिया में, जिसने गंध बिखेरी है.
वह माथे पर लगा हमेशा, दुनिया उसकी चेरी है.
अगर दीप जल जाते सारे, जगती में अंधियार न होता..
नेह मनुज को मिल जाता तो,
यह जीवन बेकार न होता.
होकर भी सुन्दर-सुखकारी,
अर्थहीन संसार न होता..
गिरीश पंकज
6 टिप्पणियाँ:
mujhe chandbadh kavita ki samajh nahi hai pr jo kavita man ko bha jaye oh acchi hai .neh or nishakt wali rachna kya khoob.
नेह मनुज को मिल जाता तो,
यह जीवन बेकार न होता.
होकर भी सुन्दर-सुखकारी,
अर्थहीन संसार न होता..
संसार अर्थहीन कभी नहीं हो सकता ...फर्क हमारी अंतर्दृष्टि का हो सकता है ...नेह मिले और जीवन बेकार होने से बच जाये ...बहुत शुभकामनायें ...!!
अगर दीप जल जाते सारे, जगती में अंधियार न होता..
बहुत खूबसूरत गीत. मन को छूते है आपके गीत.
चन्दन बनकर इस दुनिया में, जिसने गंध बिखेरी है.
वह माथे पर लगा हमेशा, दुनिया उसकी चेरी है.
अगर दीप जल जाते सारे, जगती में अंधियार न होता..
बहुत सुंदर गिरीश भैया बधाई होक
सुंदर रचना... वाह
पता नहीं कहाँ गया नेह? बस ईर्ष्या ही हावी होती जा रही है। हम जितने व्यक्तिवादी बनते जाएंगे, दूसरे के प्रति नेह कम और ईर्ष्या ज्यादा पालते रहेंगे। बहुत ही अच्छा गीत। बधाई।
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