जिस माली ने कांटें बोए, उसका गली-गली अभिनन्दन?
>> Sunday, October 25, 2009
गीत....
जिस माली ने कांटें बोए, उसका गली-गली अभिनन्दन?जिसने फूल लगाये उसकी, दुनिया में पहचान कहाँ है?
कैसी उलटी रीत जगत की,
नैतिकता हो गयी पराई.
निर्वसनी पीढी करती है,
अब फैशन शो की अगुवाई.
फूल चमकते हैं कागज के,
असली का सम्मान कहाँ है?
जिसने फूल लगाये उसकी, दुनिया में पहचान कहाँ है?
कैसा है यह दौर यहाँ पर,
शातिर नायक बन कर उभरे.
और सही नायक के घर पर,
अन्धकार देता है पहरे.
चीर सके जो घोर तिमिर को,
अब ऐसा दिनमान कहाँ है?
जिसने फूल लगाये उसकी, दुनिया में पहचान कहाँ है?
कल होता था, आज हो रहा,
कल भी ऐसा देखेंगे.
सच कहने वालों पर झूठे-
जन ही पत्थर फेंकेंगे.
सही-गलत का सच पूछो तो,
बहुतों को भी ज्ञान कहाँ है?
जिसने फूल लगाये उसकी, दुनिया में पहचान कहाँ है?
जिस माली ने कांटें बोए, उसका गली-गली अभिनन्दन?
जिसने फूल लगाये उसकी, दुनिया में पहचान कहाँ है?
गिरीश पंकज
4 टिप्पणियाँ:
जिस माली ने कांटें बोए, उसका गली-गली अभिनन्दन?
जिसने फूल लगाये उसकी, दुनिया में पहचान कहाँ है?
कितने सटीक विसंगति को अपनी रचना मे पिरोया है और अत्यंत खूबसूरती से.
कल होता था, आज हो रहा,
कल भी ऐसा देखेंगे.
सच कहने वालों पर झूठे-
जन ही पत्थर फेंकेंगे.
सह्स्त्राब्दियों का रोग है,ये ही पत्थर फ़ेंकने वाले है, यही खाने वाले हैं
शुभकामनाएं
bahut hi sundar rachana . dhanyavad.
BEHATAREEN RACHNA GIRISHJI BADHAI KUBUL KAREN.
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