साधो यह हिजड़ों का गाँव-1
>> Tuesday, October 27, 2009
व्यंग्य-पद-
(1)
साधो यह हिजड़ों का गाँव।
कोयल चुप है, कौवे हिट हैं, करते काँव-काँव बस काँव।
सच कहने से बेहतर है तुम, बैठो जा कर शीतल छाँव।
नंगों की बस्ती में आखिर, कैसे जीतोगे तुम दाँव।
बचकर रहना नदी में कीचड़, फँस जाएगी जर्जर नाँव।
अच्छा है परदेस निकल लो, वहीं मिलेगी तुमको ठाँव।
(2)
चलने दो बस ठकुरसुहाती।
सच मत बोलो फट जाती है...साहब, भैयाजी की छाती।
जिनके दुराचरण पर जनता, हरदम मंगल गीत सुनाती ।
उसको नमन सभी करते हैं, जिनके हिस्से कुरसी आती।
खुद्दारी के पाठ पढ़ो मत, इससे जिनगी ना चल पाती।
अगर मलाई चाहो खाना, दिखना चौखट पर दिन-राती।
(3)
यह मेरा भगवान नहीं है।
मंदिर में दिखते सवर्ण सब, दलितों का स्थान नहीं है।
जितने पापी उतने पूजक, साधक का सम्मान नहीं है।
झूठे को वर, सच्चे को भी, यह तो कोई विधान नहीं है।
समदर्शी का क्या है मतलब, जब तक न्याय महान नहीं है ।
रिश्वत देते हैं दाता को, क्या उसका अपमान नहीं है । (क्रमशः )
8 टिप्पणियाँ:
साधो यह हिजड़ों का गाँव।
कुंए में ही भांग पड़ी है आओ पियो खाओ
बारहो महिने छुट है तुम रोज होली मनाओ
आभार
waah bahut hi sundar aapko shat shat naman !!!
बहुत ही खुबसूरत ढंग से रखी है आप अपने भावो को .........एक बेहतरीन रचना!
यह मेरा भगवान नहीं है।
मंदिर में दिखते सवर्ण सब, दलितों का स्थान नहीं है।
जितने पापी उतने पूजक, साधक का सम्मान नहीं है।
झूठे को वर, सच्चे को भी, यह तो कोई विधान नहीं है।
समदर्शी का क्या है मतलब, जब तक न्याय महान नहीं है ।
रिश्वत देते हैं दाता को, क्या उसका अपमान नहीं है ।
Waah !!! Waah !!! Waah !!!
Bahut bahut sundar lajawaab rachna....Sateek ,Dhardaar vyangy !!
wah wah wah, teenon ke liye.
sundar... achchhi lagi abhivyakti.
गिरीश भैया,
बहुत बढि़या लगिस भैया आप के धारदार व्यंग्य। ऐमा अतेक व्यंग्य हावै के सब्बो कुछु ह धरे के धरे रही जाथे। मे हर आपके व्यंग्य ला अपने ब्लॉग म लेवत हाववं। अऊ सब बने बने
डॉ महेश परिमल
Bahut bahut sundar lajawaab rachna.
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