''सद्भावना दर्पण'

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गीत/ जब भी सुख के पीछे भागा...

>> Wednesday, October 14, 2009

 जब भी सुख के पीछे भागा......
जब भी सुख के पीछे भागा,
सुख पाने से दूर हो गया.
इक अंधी ख्वाहिश के कारण,
थक कर के मन चूर हो गया..

जितना मुझको मिल पाया है,
प्रभु की प्रेम-प्रसादी है.
वैसे तो यह पूरा जीवन,
भिक्षुक है, फरियादी है.
जिसने हाथ नहीं फैलाए,
वो ही प्रभु का नूर हो गया..

दुःख में भी रहने का सुख है,
सुख के अन्दर में भी दुःख है.
सच पूछो तो बड़ा कठिन है,
किसको दुःख है, किसको सुख है.
जो यह सत्य समझ पाया वह,
हर सुख से भरपूर हो गया...

अपने सुख को बाँट दिया तो,
कई गुना बढ़ कर आया है.
अजब फलसफा है जीवन का,
इसको कौन समझ पाया है.
सच्चे दानी के घर सुख को,
बस रहना मंज़ूर हो गया..

जीवन अग्नि-परीक्षा इसमे,
रोजाना ही तपना है.
जिसमे जितना तेज़ उसी को,
समझो उतना खपाना है.
तपने-खपने वाला ही तो,
दुनिया में मशहूर हो गया..
गिरीश पंकज

2 टिप्पणियाँ:

Yogesh Verma Swapn October 15, 2009 at 6:56 AM  

bahut khoob..........behatareen.........excellent.
lajawaab,........ badhaai.........deepawali aur dhanteras ki hardik shubhkaamnayen ishwar apke hriday ko adhyatm ke deepak ke prakash se prakashit karen.

Yogesh Verma Swapn October 16, 2009 at 6:30 PM  

behatareen .............आपको और आपके परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं.

सुनिए गिरीश पंकज को

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