>> Monday, November 2, 2009
साधो यह हिजडों का गाँव-7
व्यंग्य-पद
(20)
सीधे-सादे अब बेचारे।
मंचों पर सम्मानित होते, नैतिकता के सब हत्यारे।
कैसा है यह दौर यहाँ पर, सज्जन फिरते मारे-मारे।
सच्चे पर हँसते अपराधी, वरदी देखे बदन उघारे।
फरज़ी ज्योतिष, झूठे पंडित, दिखला देंगे दिन में तारे।
कैसी स्पर्धा है जिसमें, झूठा जीते, सच्चा हारे।
(21)
पंडिज्जी तुम पूजा कर दो।
मैं बैठूँ धंधे पर अपने, तुम मेरे भावो को स्वर दो।
अच्छा-सा परसाद बना दो, और थाल में उसको धर दो।
मैं तो पाप करूँगा डेली, घर मेरा खुशियों से भर दो।
भगवन है नादान बेचारा, आँखों पर तुम पट्टïी धर दो।
करे तू पूजा, फल मैं पाऊँ, ऐसा ही कुछ सुंदर वर दो।
(22)
अच्छे जन सब दुखी रहेंगे।
बुरे मंच पर ठँस जाएंगे, भले लोग अपमान सहेंगे।
जो हैं पतित, वही हैं पावन, नैतिकता के कलश ढहेंगे।
गंदों की आबादी बढ़ती, अच्छे किसकी छाँह गहेंगे।
सफल वही जो अवसरवादी, धारे के संग मस्त बहेंगे।
सच मत कहना मर जाओगे, अब झूठे ही सत्य कहेंगे ।
4 टिप्पणियाँ:
सारी गजब रही सरकार ..एक दम कमाल ...
bahut bahut shukria ;
aapne jo comment aur gazal mujhe mail ki hain wo agar mere blog par dein to mujhe khushi hogi.
aapki tannz bhari har rachana ek se badh kar ek hai to ....
AAP KAHAN MUFLIS HAIN HUZUR?
साधो साधो!!
behatareen rachna. wah.
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