''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

साधो यह हिजडों का गाँव-११

>> Saturday, November 7, 2009

७ नवम्बर ऐसी मनहूस तारीख है, जिसे याद कर के आखें भर आती है. यही वह दिन है जिस दिन दिल्ली में गो-भक्तों पर गोलियाँ बरसीं थीं. जिसमे अनेक लोग मारे गए थे. ७ नवम्बर १९६६. देश में गो-वध के प्रतिबन्ध  की मांग  को लेकर प्रदर्शन हुआ था. यह शर्मनाक बात है कि प्रदर्शनकारियो को रोकने के लिए गोलियाँ चला दी गयी. इस देश में प्रतिरोध को रोकने के लिए क्या अब गोलिया ही एक विकल्प रह गयी हैं? शर्म...शर्म...शर्म... ऐसे लोकतंत्र को नाश हो जो हिंसा के बल पर आबाद होता है. क्या भारत जैसे देश में गो वध पर प्रतिबन्ध लगाने कि मांग  गलत है? महावीर, बुद्ध से लेकर गाँधी तक के इस महान देश में हिंसा ही अब स्वाद और व्यापार का जरिया  बनेगी? कायदे से तो इस देश  का राष्ट्रिय पशु  गाय को ही घोषित किया जाना चाहिए. जैसे तिरंगा हमारी पहचान है,  जैसे हिन्दी हमारी शान है, जैसे राष्ट्रगान हमारी आन है, ठीक उसी तरह गाय हमारी जान है.इसको बचाना है. आज कसाई खाने खुल रहे है, गायों का मारा जा रहा है. हिन्दू ही अपनी  बीमार-बूढी गायों को कसाईयों के हाथों बेच देते है (ये और बात है कि-बेचारे- गाय को बेचते वक्त गौ माता की जय भी ज़रूर बोलते हैं...) ऐसे पाखंडी हिन्दुओं के कारण भी गाएँ कट रही है. गो-मांस का निर्यात भी होता है. भारत जैसे देश में अगर गो मांस बेच कर कमाए की जाने की मानसिकता विकसित हो रही है तो बेहतर है कि हम रंडीबाजी की इजाज़त दे दें. कम से कम  हम गो-हत्या के महापाप से तो बचेंगे. पता नहीं कब होगा गो वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध. इसकी मांग  करते-करते तो संत विनोबा भावे भी चल बसे. इसी मुद्दे पर वे आमरण अनशन पर बैठ गए थे. उनको धोखा देकर उपवास तुड़वाया गया, लेकिन गो वध पर प्रतिबन्ध नहीं लगा. कुछ दिन बाद ही विनोबा भावे नहीं रहे. ऐसा है मेरा देश. जहाँ एक वर्ग विशेष की संतुष्टि के लिए गायों को काटने की छूट -सी दे दी गयी है. ७ नवंबर को याद इसलिए क्या जाना चाहिए, कि हम यह न भूलें कि गायों  के लिए मरने-मिटने वालों की कमी नहीं है. आज भी गाय हमसे बलिदान मांग रही है. जब तक इस देश के लोग बलिदान के लिए तैयार नहीं होंगे, इस देश में गाय का अपमान होता रहेगा. हिंसा होती रहेगी. अब समय आ गया है को गो-वध पर रोक लगाने वाला कानून पारित हो. मुसलमानों को भी समझाया जाये. वैसे उनमे बहुत-से लोग समझते भी है. अनेक मुस्लमान गो हत्या के खिलाफ है. वे इस दिशा में काम भी कर रहे है. ऐसे मुसलमान  भाईयों की  अगुवाई में आन्दोलन शुरू होना चाहिए. इस देश में गौ माता से जुड़े अर्थशास्त्र  को समझाने की ज़रुरत है. गाय को धर्म से नहीं कर्म से जोड़ा जाए, तभी देश का भला हो सकता है. सरकारे भी संकुचित दायरे से ऊपर उठे, और गाय  को अपनी सगी  माँ समझ कर उसे बचने की कोशिश करे. कानून बनाये. गो संवर्धन के लिए काम करे. गे-हत्या के विरुद्ध मै उपन्यास ही लिख रहा हूँ- देवनार के जंगल. सुधी पाठको को कभी इस उपन्यास का अंश भी पढ़वऊंगा.  देवनार में एशिया का सबसे बड़ा कसाई खाना है, जिसे दुर्भाग्य से क्यों जैन  ही चला रहा है.  अब किसे क्या कहें..? बहरहाल, ७ नवम्बर बलिदान दिवस को याद करते हुए प्रस्तुत है, 
गौ माता पर मेरे तीन पद...  

(34)
साधो गौ-माता कटती है
देख-देख इस करून दृश्य को,  हम-सबकी छाती फटती है.
गौ-पालक की गाय, कसाई के हाथो में क्यों बिकती है?
पूजे गैया को लेकिन माँ, दिन भर कचरे में खटती है.
अजब देश है सरकारों की यहाँ हिंसकों से पटती है?
बूढी हो गयी गाय बेचारी, बस उसकी इज्ज़त लुटती है. 
अरे हिन्दुओ, अरे अधर्मी, शर्म नहीं तुमको लगती है? 
(35)


नहीं गाय-सा दूजा प्रानी 
मत कहना तुम इसे पशु यह, सबसे ज्यादा है कल्यानी.
जब रंभाती है गौ माता,  लगे उच्चरित, पावन-वानी.
दूध पिलाती यह जीवन भर, नहीं है इस माता का सानी.
गाएँ हैं तो हम हैं जीवित, गाय बिना जीवन बेमानी.
गाय बचाओ देश बचेगा,  इसे खिलाओ चारा-सानी.
गो-धन ही असली धन अपना, इससे ही है दाना-पानी.
(36)
हम पर गायों के उपकार..
नराधम ही इसे भूलते, उनका जीवन  है धिक्कार.
हर स्वादिष्ट मिठाई देखो, दूध से होती है  तैयार.
गो-मूत्र भी उसका पावन, उससे  होता है उपचार. 
गोबर भी है काम का जिसका, शुद्ध करे अपना संसार.
गायों की सेवा करने से, खुलता स्वर्ग-लोक का द्वार.

माँओं की भी है जो माता, देवि जैसा यह अवतार. 
गिरीश पंकज

1 टिप्पणियाँ:

शरद कोकास November 8, 2009 at 6:51 PM  

भाई सडको पर जो लोग गायों को खुला रखते है उनके लिये भी कुछ लिखो ।

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP