''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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बच्चे...

>> Saturday, November 14, 2009


आज बाल दिवस है. पूरे देश में बच्चो पर केन्द्रित कार्यक्रम हो रहे है. होने भी चाहिए. वे हमारे आने वाले कल है.
प्रस्तुत है बच्चो पर लिखी गयी एक ग़ज़ल-
बच्चे
आने वाला कल हैं बच्चे
मेरा-तेरा बल हैं बच्चे

थके हुए जीवन मे जैसे
हंसी-खुशी के पल हैं बच्चे

अगर समस्या वर्तमान है
तो फिर उसका हल हैं बच्चे

आओ इनको छुओ प्यार से
मंगल ही मंगल हैं बच्चे

हम तो हैं ठहरे-जल यारो
मगर सदा हलचल हैं बच्चे

इन्हें खेलने दो धरती पर
तितली हैं, चंचल हैं बच्चे

कभी नहीं हम होंगे निर्बल
हम सबके संबल हैं बच्चे

मत झोंको श्रम की भट्टी में,
कोमल-दूर्वा-दल हैं बच्चे

जरा गौर से देखो लीला
लगें ईश प्रतिपल हैं बच्चे

जहां हमें आधार मिले इक
वही ठोस स्थल हैं बच्चे

ये ईश्वर के दिव्यदूत है
या फिर गंगाजल हैं बच्चे

सही दिशा बस मिल जाये तो
पंकज  नीलकमल हैं बच्चे

2 टिप्पणियाँ:

ACHARYA RAMESH SACHDEVA November 14, 2009 at 8:45 AM  

अगर समस्या वर्तमान है
तो फिर उसका हल हैं बच्चे
WAH WAH
DIL KO CHHU GAYI AAPKI YEH EK AUR KAVITA.
DHERO DUAYE "DIL SE ...."
MUBARAK MUBARAK

girish pankaj November 14, 2009 at 9:05 AM  

dhanyvad....ek prtikriya bhi mujhe utsahit karne k liye paryapt hai.

सुनिए गिरीश पंकज को

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