गीत - जब भी याद तुम्हारी आई.
>> Saturday, November 14, 2009
इस बार कुछ हट कर... एक नया रंग...मेरा नहीं, सबके जीवन का....गीत
जब भी याद तुम्हारी आई.....
जब भी याद तुम्हारी आई. महक उठी मेरी तरुणाई.
फूल खिल उठे मेरे मन के,
लगे वहां भंवरे मंडराने.
रस में डूबा कोना-कोना,
पंछी लग गए गीत सुनाने.
बहने लगी मंद पुरवाई .
जब भी याद तुम्हारी आयी....
तुम आये तो साथ तुम्हारे,
लगा इधर मधुमास आ गया.
मन की सूनी-सी बगिया में,
कोई पावन गीत गा गया.
बजने लगी कहीं शहनाई.
जब भी याद तुम्हारी आई.
बहुत कठिन है पथ जीवन का,
मान लिया कमजोर नहीं है.
लेकिन चलना लगता मुश्किल,
अगर हाथ में डोर नहीं है.
तुम ने नैया पार लगाई.
जब भी याद तुम्हारी आई.
आ जाओ मेरे उरवासी,
अंतस तुम्हें पुकार रहा है.
साथ-साथ रहना ही होगा,
जीवन का यह सार रहा है.
कोयल ने आवाज़ लगाई.
जब भी याद तुम्हारी आई
गिरीश पंकज
1 टिप्पणियाँ:
तुम आये तो साथ तुम्हारे,
लगा इधर मधुमास आ गया.
मन की सूनी-सी बगिया में,
कोई पावन गीत गा गया.
सुहाने मौसम की काल्पनिक दुनिया में विचरण करने ही वाले थे की यह क्या ...बिन सुवास उजड़ी अंगनाई....!!
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