''सद्भावना दर्पण'

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करुणा की जब धारा बहती.....

>> Saturday, November 21, 2009

फिर एक गीत... 

करुणा की जब धारा बहती.....

करुणा की जब धारा  बहती, मन निर्मल हो जाता है,
मित्र लगे जब सारी दुनिया, जन्म सफल हो जाता है.

सबके हित की जिसने सोची,
वह बिन भगवा सन्त हुआ.
अंतस में जब त्याग जगा तो,
सब पापो का अंत हुआ.
कीचड में भी रह कर वह तो,
एक कमल हो जाता है....
करुणा की जब धारा  बहती, मन निर्मल हो जाता है.....

काम,क्रोध, मद, लोभ सभी तो,
मानव को दुःख देते है.
दिन का सुख भी लूटें ये तो,
रात नींद हर लेते हैं.
इनसे मुक्त ह्रदय का हर इक-
प्रश्न सरल हो जाता है.
करुणा की जब धारा बहती, मन निर्मल हो जाता है....

लिप्साएं तो अंत हीन हैं,
इनसे मुक्त ह्रदय हो कर.
वह पावन बन जाता इक दिन,
अपने अंतस को धो कर.
त्याग सीखने वाला मानव,
बुद्ध अटल हो जाता है.
करुणा की जब धारा बहती, मन निर्मल हो जाता है,
मित्र लगे जब सारी दुनिया, जन्म सफल हो जाता है. ..

सुनिए गिरीश पंकज को

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