किसी को धन नहीं मिलता, बात सदा ईमान की
>> Wednesday, November 25, 2009
दो ग़ज़ले...
(१)
किसी को धन नहीं मिलता
किसी को तन नहीं मिलता
लुटाओ धन मिलेगा तन
मगर फिर मन नहीं मिलता
हमारी चाहतें अनगिन
मगर जीवन नहीं मिलता
किसी के पास धन-काया
मगर यौवन नहीं मिलता
ये सापों की है बस्ती पर
यहाँ चन्दन नहीं मिलता
जहां पत्थर उछलते हों
वहां मधुबन नहीं मिलता
मोहब्बत में मिले पीड़ा
यहाँ रंजन नहीं मिलता
लगाओ मन फकीरी में
सभी को धन नहीं मिलता
वो है साजों का मालिक पर
सभी को फन नहीं मिलता
अगर हो कांच से यारी
तो फिर कंचन नहीं मिलता
मिलेंगे लोग पंकज पर
वो अपनापन नहीं मिलता.
(२)
बात सदा ईमान की
आदत है शैतान की
बाज न आए हरकत से
फितरत बेईमान की
दैरोहरम में चर्चा हो
राम और रहमान की
पाप देख कर मंदिर में बंद आँख भगवान की
वही नेक इन्सान यहाँ
बातें करे जहान की
तेरी हस्ती बता रही
मिट्टी यह शमशान की
बाँट रहे अज्ञानी अब पंकज पुडिया ज्ञान की
5 टिप्पणियाँ:
गि्रीश भैया सुंदर कविता के साथ एक बार फ़िर नया कलेवर देखा ब्लाग का -बधाई हो
पाप देख कर मंदिर में
बंद आँख भगवान की
वही नेक इन्सान यहाँ
बातें करे जहान की
-दोनों रचनाएँ बहुत उम्दा!!
वो है साजों का मालिक पर
सभी को फन नहीं मिलता
अगर हो कांच से यारी
तो फिर कंचन नहीं मिलता
बहुत खूब
बात सदा ईमान की
आदत है शैतान की
बाज न आए हरकत से
फितरत बेईमान की
लाजवाब गज़लेंहैं शुभकामनायें
इस बहर मे भी अच्छी गज़ल हो सकती है यह आपने बता दिया
अगर हो कांच से यारी
तो फिर कंचन नहीं मिलता
मिलेंगे लोग पंकज पर
वो अपनापन नहीं मिलता
lajwaab............
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