''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

इरोम शर्मिला जिंदाबाद....

>> Monday, November 9, 2009

अपना देश आजाद  है. हमें  इस  पर  गर्व है, लेकिन  हमें शर्मिंदा उस वक्त होना पड़ता है, जब हम पर पुलिस अत्याचार करती है. देश भर में पुलिस को लेकर अच्छी धारणा नहीं है. मणिपुर में आतंकवादियों से निपटने के लिए पुलिस को विशेषाधिकार दे दिए गए. आतंकवादी तो खत्म नहीं हुए, वहां के आम लोगों का सुख-चैन ही खत्म हो गया. पुलिस की मनमानी बढ़ने लगी. मैंने अनेक समाचार पढ़े है, जिससे पता चल जाता है कि वहां की पुलिस किस तरह काम कर रही है. पुलिस की मानो समानांतर सरकार ही चल रही है. देश में वर्दी की गुंडागर्दी चले, यह लोकतंत्र के लिए कलंक है. इरोम छानू शर्मिला मणिपुर में पुलिस को मिले विशेषाधिकार को ख़त्म करने के संघर्ष कर रही है. दस साल से वह आमरण अनशन पर है.  उसकी एक सूत्री माँग है कि  पुलिस को मिला विशेषाधिकार कानून ख़त्म हो.आज ख़त्म हो, अभी ख़त्म हो.  इस कानून की आड़ में वहा की पुलिस आम लोगो पर अत्याचार करती रहती है. दस साल पहले शर्मिला के घर के पास ही, उसके सामने ही पुलिस ने १० लोगों को गोलियों से भून दिया था. उसी दिन से शर्मिला ने ठान  लिया था, कि वह इस विशेषाधिकार के खिलाफ आवाज़ उठायेगी, फिर चाहे जो भी हो. शर्मिला आमरण अनशन पर बैठ गयी. उसे तरह-तरह से प्रताडित किया गया, लेकिन वह झुकी नहीं. अब उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती खिलाया-पिलाया जा रहा है. नाक में नली डाल कर. शर्मिला के संघर्ष को देख कर कोई भी यही कहेगा कि यह तो लौह- नारी है, आयरन लेडी है.  आश्चर्य इस बात का है कि शर्मिला के पक्ष में इस देश में अब तक कोई आन्दोलन क्यों खडा नहीं हुआ? क्या पूरे देश की नारी-शक्ति शर्मिला  के समर्थन में एक दिन का सामूहिक उपवास भी नहीं कर सकतीं? किट्टी पार्टियां बंद करें और थोडा संघर्ष भी करे. राजनीतिक दल क्यों, खामोश है..? आरक्षण की माँग करने वाला महिला संगठन क्यों चुप बैठा है..? खैर, जो भी हो. इरोम शर्मिला मानवाधिकार के लिए अकेले ही लड़  रही है, और जब तक जिंदा है, लड़ती ही रहेगी. उसके लिए मैंने कुछ दिन पहले ही एक लम्बी कविता  लिखी थी. लेकिन आज मैंने जब फिल्मकार कविता जोशी द्वारा शर्मिला पर बनाई गयी फिल्म ( यह इंटरनेट पर भी उपलब्ध है  ) देखी तो मन और ज्यादा विचलित हो गया.  लगा कि फिर कुछ लिखा जाये. शर्मिला का मामला लगातार उठाना चाहिए. तभी केंद्र पर दबाव बनेगा और पुलिस को मिला विशेषाधिकार ख़त्म होगा. मानुपुर की खुशहाली भी तभी लौटेगी. प्रस्तुत है  लौह-महिला शर्मिला के लिए एक नया गीत-
इरोम शर्मिला जिंदाबाद,
अत्याचारी मुर्दाबाद .....

झुकी नहीं वह  तनी हुई है.
किस मिटटी की बनी हुई है.
अपने हक़ को पहचाना है.
देश स्वतंत्र है, यह जाना है.
आजादी बच जाये अपनी,
लोकतंत्र ना हो बर्बाद.
इरोम शर्मिला जिंदाबाद

 पुलिस के सीमित हो अधिकार.
करती हरदम अत्याचार.
जहां कहीं यह मंज़र है,
लोग कर रहे हाहाकार.
इसीलिए इक औरत निकली,

लोकतंत्र करने आबाद.
इरोम शर्मिला जिंदाबाद .

 बंदूको का राज ख़त्म हो.
अभी ख़त्म हो, आज ख़त्म हो.
शत्रु नहीं, तुम मित्र बनाओ,
वर्दी का कुछ फ़र्ज़ निभाओ.
करे देश की जनता अपनी-
सरकारों से यह  फरियाद.
इरोम शर्मिला जिंदाबाद..

कैसा है यह अपना देश?
दुखी में डूबा है परिवेश.
मणिपुर में वर्दी का राज.
वहा कोढ़ में दिखता खाज. (यानी पुलिस का विशेषाधिकार)
रोजाना दहशत में रहती,
सीधीसादी आदमजात.
अत्याचारी  मुर्दाबाद .
इरोम शर्मिला जिंदाबाद

जागे-जागे पूरा देश.
यही शर्मिला का सन्देश.
लोकतंत्र को याद रखो,
मधुर यहाँ संवाद रखो.

जन-गण-मन खुशहाल रहे,
प्रेम-अहिंसा हो आबाद.
अत्याचारी  मुर्दाबाद .
इरोम शर्मिला जिंदाबाद ....

 गिरीश पंकज 

2 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा November 10, 2009 at 12:19 AM  

जन-गण-मन खुशहाल रहे,
प्रेम-अहिंसा हो आबाद.
अत्याचारी मुर्दाबाद .
इरोम शर्मिला जिंदाबाद ...

jindabad-jindabad-jindabad

Anonymous December 22, 2009 at 9:35 AM  

erom sharmila zindabad------sunil parbhakar (punjab)

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP