घूम रही सड़कों पर गैया.....
>> Sunday, November 8, 2009
(मित्र लेखक ब्लोगर भाई शरद कोकस ने मुझे प्रेरित किया कि गायों की बदहाली पर भी कुछ् लिखू. वैसे इसके पहले भी लिख चुका हूँ, मगर उन्ही भावो को नए सिरे से फिर लिख रहा हूँ. मै सोचता हूँ, कि गाय पर बार-बार लिखा जाना चाहिए. मैंने गो-चालीसा लिखी है, गो आरती भी लिखी है, गीत लिखे, पद भी लिखे. मन नहीं माना तो पूरा उपन्यास ही लिख रहा हूँ-देवनार के जंगल.गाय की दुरावस्था की ओर समाज का ध्यान आकर्षित करना लेखको का भी फ़र्ज़ है. इसी कड़ी में एक बार फिर प्रस्तुत है एक गीत- )
घूम रही सड़कों पर गैया...
घूम रही सड़कों पर गैया,शर्म करो गोपालक कुछ तो, मरी जा रही तेरी मैया.
दूध पी रहे हो रोजाना, अच्छा लगता सेहत पाना...?
लेकिन गायों की भी सोचो, इतना ज्यादा भी मत नोचो.
दूध-मलाई तुम खाते हो, और प्रभु के गुण गाते हो.
पालीथिन-कचरा खा कर
बीमार पड़ रही तेरी दैया......
गाय विश्व की माता है, तुझे समझ न आता है.
स्वारथ की चर्बी का मारा, धन के आगे तू तो हारा.
गायों की न सेवा करता, घी पाने की खातिर मरता.
कितना कपटी और कसाई, दुबली होती जाती माई.
माँ कहते हो लेकिन माँ का,
ध्यान नहीं रखते हो भैया..
कहाँ गया पहले का भारत, अब तो बस गारत ही गारत.
बढ़ता गो-माँस का भक्षण, मिलता सरकारी संरक्षण .
रोजाना कटती है माता, चुप क्यों बैठे भाग्यविधाता.
बढ़ते जाते कत्लगाह अब,
नाच रहे सब ता-ता थैया.?
गाय हमारी आन बनेगी, भारत की पहचान बनेगी.
गाय बचेगी देश बचेगा, तब सुन्दर परिवेश बचेगा.
गो पालन करते है आप, इसकी बदहाली है पाप.
गाय दुखी है गोपालक की,
डूब जायेगी इक दिन नैया.
घूम रही सड़कों पर गैया.
शर्म करो गोपालक कुछ तो, मरी जा रही तेरी मैया.
4 टिप्पणियाँ:
बढ़ते जाते कत्लगाह हम,
इसे ठीक कर दें ये जिन्न की पहुंच के बाहर का काम है,
सुंदर रचना-जय गौ माता की।
badhte jate katlgaah magar ham log kuchh nahi kar rahe hai. geet me yahee bhav the. lekin ek bhi pathak kahee atakta hai, to jinn kee tarah sudhar kar hee lena chahihye, so maine sampadit kar diya hai. dekh le- बढ़ते जाते कत्लगाह अब,नाच रहे सब ता-ता थैया.? dhyan aakarshit karane k liye dhanyvadam...
आभार आपका किसी ने तो गाय की तरफ देखा...बहुत अच्छी रचना...
नीरज
धन्यवाद गिरीश भाई .. अब लगता है कि इस गीत का बड़ा सा होर्डिंग बना कर हर चौराहे पर लगाना चाहिये ताकि ये गोपालक कुछ तो शर्म करें ।
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