पिछली रात चाँद देखा तो
>> Friday, December 11, 2009
अपनी प्रकृति से हट कर एक गीत..... गीत बने रहें. नवगीत भी. कूकते रहे कोयल की तरह. छंद लिखने वाले कम हो रहे है. ये बढ़ें.. छंद हमारी परंपरा है, संस्कृति है. इसे बचाए रखना है. इन दिनों गद्य कविताओं का दौर है. यह कुछ आसान भी है. इस लिहाज से, कि अपने भावो को कागज़ पर उतर देना है बस. तुक मिलता है या नहीं, इसकी चिंता नहीं करनी . 'वह घर जाता है ' तो वह गद्य कविता में ''घर जाता है'' लेकिन पद्य में कहेंगे- ''वह जाता है घर'' या , घर जाता है वह.'' . वाक्य में काव्यात्मकता रहेगी. छंबद्ध कविता तुक में होगी. मतलब यह कि बात बेतुकी नहीं होगी. (वैसे ये और बात है कि तुक में भी लोग बेतुकी बातें कर सकते है, और बेतुकी हो कर भी बात तुक वाली हो सकती है.)मैं तो गद्य कवितायेँ भी लिखता हूँ.नए दौर से भी जुड़े रहना ज़रूरी है.न ..यह खुशी कि बात है, कि इन दिनों नयी कविताएँ लिखने वालों ने छंदबद्ध कवितायेँ लिख कर छंद की परम्परा को सम्मान दिया है. यह सद्भावना है.यह बनी रहे. केवल गद्य कविता लिखने वाले ही कवि नहीं होते.आधुनिक बोध छंद के साथ भी उतर सकता है. दोनों तरह की कविताओं का स्वागत होना चाहिए. लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि स्मृति के देश में छंद का राज रहता है. कुछ चिट्ठाकार छंदबद्ध कवितायेँ लिखने की सार्थक कोशिश करते है. वे बधाई के पात्र है. छंद अभ्यास से ही सधता है. मै कोशिश कर रहा हूँ.
मैं सुधी पाठकों से पूछता हूँ कि
उन्हें नयी कविता क्यों अच्छी लगती है?
या फिर छन्दबद्ध कविता ही क्यों पसंद आती है..?
बौद्धिक पाठक कुछ कहें, तो अच्छा लगेगा. उस आधार पर भविष्य में लेख भी लिखना चाहूँगा. बहरहाल, देखें. टिप्पणी करे, न करे, पढ़ने की कोशिश तो करे.
गीत.....................
पिछली रात चाँद देखा तो....पिछली रात चाँद देखा तो,
याद तुम्हारी आई.
जब खोजे सुधियों के बक्से,
फिर से तुम मुसकाई.
धूल भरी तस्वीर पुरानी,
फिर से चमक उठी.
मंजुल-नैनों की वह ज्योति,
सहसा दमक उठी.
स्मृति नवयवना की भांति,
लेती है अंगडाई...
दूर भये नैनों से लेकिन,
उर से दूर नहीं.
चाह अगर है अंतस में तो,
प्रियतम यहीं-कहीं.
पास हमेशा रहता है वह,
दूर भले परछाई.
विरही मन में आन बसे तुम,
ओ मुसकाते चेहरे.
मिल गए हम-तुम फिर सपनों में,
लगे थे सौ-सौ पहरे.
सूखे मरुथल में दोबारा,
फिर गंगा लहराई.
पिछली रात चाँद देखा तो,
याद तुम्हारी आयी.
जब खोजे सुधियों के बक्से,
फिर से तुम मुसकाई.
5 टिप्पणियाँ:
चांद देखेंगे, तो चांद की ही याद आएगी।
सुंदर कविता, बधाई।
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सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
सुंदर कविता... बधाई...
waah ji waah !
anand kara diya
bahut hi badhiya kavita....badhaai !
bahut sunder geet likha hai pankaj ji,
ek shikayat kar raha hun , kabhi apne ghar se bahar niklo aur bhi log blog par likhte hain kabhi un par bhi nazar dala karo, unki rachnayen bhi padha karo.
प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति ........ अच्छी रचना है .........
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