साधो यह हिजड़ों का गाँव-१९
>> Sunday, December 13, 2009
साधो यह हिजड़ों का गाँव-१९
व्यंग्य-पद....
क्या कहूं.... ये पद ही मेरी भावनाओं का प्रकटीकरण है. समकालीन हालत पर और तीन पद देखें..-
(58)ये पट्ठा सरकारी है।
इसका चम्मच, उसकी करछुल, बड़ी अजब बीमारी है।
बार-बार झुकता रहता है, यह पेटू-लाचारी है।
यहाँ झुका, फिर वहाँ झुकेगा, बड़ा बिज़ी अधिकारी है।
इस पर मत विश्वास करो तुम, ये खबर अखबारी है।
जो झुकता अब वही सफल है, ये फंडा बस जारी है।
कामचोर हो गये अब सारे, क्या नर औ क्या नारी है।
मर जाओ तो शान से जीयो, दुखी यहाँ ख़ुद्दारी है।
सच बोलेगा आखिर क्यों कर, अगला खद्दरधारी है.
क़त्ल हुए सच कहने वाले, अब पंकज की बारी है.
(59)
बस, चमचों का जलवा है।
स्वाभिमान को सूखी रोटी, चमचा खाता हलवा है।
उल्टी रीत चली है अब तो, घिसता जाता तलवा है।
सच कह दो तो इस बस्ती में, अकसर होता बलवा है।
नेता अफसर के है पीछे, क्योंकि नेता ठलवा है।
इक-दूजे की खुजलाओ तो, मिल जाता हर फलवा है।।
जाने का यह नाम न लेता, भ्रष्टाचार बेतलवा है।
नैतिकता की गिरी इमारत, पड़ा हुआ बस मलवा है.
(60)
मिल जाए कुरसी इक बार।
तर जाएगी भावी पीढ़ी, मस्त चले अपना व्यापार।
बस सफेद कपड़े तुम पहरो, काला होगा कारोबार।
राजनीति अब चोखा धंधा, बैठो कहीं भी टाँग पसार।
जो नेता जितना है मीठा, मारे उतना बड़ा लबार।
कल तक जो पैदल दिखता था, पास है उसके मोटर कार।
झूठ, ठगी, व्यभिचार यही है, राजनीति का शिष्टाचार।
सेवा कम, मेवा है ज्यादा, जीतो चाहे, जाओ हार।
जिस्म और ईमान बिक रहे, राजनीति अब है बाज़ार ।
3 टिप्पणियाँ:
बिलकुल !-
"क़त्ल हुए सच कहने वाली, अब पंकज की बारी है."
behatareen.wah wah wah.
सामयिक व सटीक व्यंग्य।बहुत बढ़िया!!
Post a Comment