नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो
>> Tuesday, December 15, 2009
नया साल बस आने ही वाला है. लेकिन मन अभी से सोचने लगा ,कि कैसा हो नया साल. संन्यासी हो चुके मेरे एक मित्र अब्दुल गनी ने कभी एक गीत लिखा था - ''ये साल तो अच्छा साल रहे.'' इस गीत को मैंने एक दैनिक अखबार में -सत्रह साल पहले -प्रकाशित भी किया था. इसके मुकाबले का कोई गीत मैंने आज तक नहीं पढ़ा. यहाँ प्रस्तुत मेरा अपना गीत अब्दुल भाई की भावनाओं का विस्तार भर है.मेरा गीत उतना श्रेष्ठ नहीं बन सका है. लेकिन मै इसकी खास चिंता नहीं करता. कमजोरों को भी तो जीने का हक़ होता है. बहरहाल, पंद्रह दिन पहले नए साल की कल्पना करते हुए कुछ मुद्दों को छूने की कोशिश की गयी है. मेरे प्रिय ब्लोगर मित्र चाहे तो भविष्य में इन पंक्तियों का सन्दर्भ भी दे सकते है. या फिर नए साल पर उन्हें भी तो कुछ न कुछ तो सूझेगा ही. यह गीत शायद उनके अन्दर बैठे कवि को जगा दे. वे भी लिखे. सच तो यही है कि हम दुनिया को अच्छे विचार दे कर ही बचा सकते है.
नये साल का लक्ष्य यही है
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
गलत हुआ जो उसको भूलें,
अब न कभी दुहराएँगे.
एक बार ठोकर खाई है,
नहीं दुबारा खाएँगे.
नेक राह पर चलने वाला,
दुनिया का हर बच्चा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
रहें प्रेम से सारे मानव
सब में भाई-चारा हो.
घर कोई अब रहे न भूखा,
ऐसा विश्व हमारा हो.
प्यार-महब्बत पूंजी अपनी
लक्ष्य नहीं अब पैसा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
मज़हब प्रेम हमें सिखलाए,
यही धर्म समझाता है,
ईश्वर-अल्ला में कुछ अंतर,
मूरख ही बतलाता है.
सभी देवता यहाँ सभी के,
ये समाज इक घर-सा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
पेड़ बचाएँ, नदी बचाएँ,
गाय नहीं कट पाए अब.
पशुओं को भी जीने देंगे,
मनुज सभ्य बन जाए अब.
हरियाली बढ़ती ही जाए,
कहीं न खूँ का धब्बा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
बूढ़े रहें घरों में अपने,
जीने का अधिकार मिले.
जिसने हमको छाँव लुटाई,
उस बरगद को प्यार मिले.
पूत कपूत न बन जाये बस,
लायक अब हर लड़का हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
स्त्री-शक्ति आगे आये,
लेकिन यह भी ध्यान रहे.
नैतिकता गर बची रही तो,
वह सुन्दर निर्माण रहे.
साफ़ राह चलते हम जाएँ,
कभी नहीं कुछ गन्दा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
ये दुनिया तो अपना घर है,
यहाँ रहें या वहां रहें.
सबको जीने का हक़ देंगे,
जिनकी मर्जी जहाँ रहें.
धरती माता सबकी माता,
सोच हमारा ऐसा हो.
नये साल का लक्ष्य यही है, दुनिया में सब अच्छा हो.
झूठ कहीं इज्ज़त न पाए, सम्मानित हर सच्चा हो.
6 टिप्पणियाँ:
ishwar karen aisaa hii ho
sabhi bloggers nayaawarsh krantikari wicharon ke saath manayen
नये साल पर ब्लॉग की पहली कविता का स्वागत है ।
हर साल ये ही दुआ करते हैं हर साल के अंत में अधिकतर निराशा ही हाथ लगती है...दुआ करते हैं की ये साल पहले से अच्छा हो...
नीरज
बहुत ही सुन्दर रचना है।बधाई॥स्वीकारें।
girish ji, ye to rashtriya geet banna chahiye.
girish bhaee!
shandar aur jaandar..
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