साधू है शैतान...जब कुछ नैतिक बल...
>> Sunday, December 20, 2009
दो ग़ज़ले..
(१)
साधू है शैतान हमारी बस्ती में लुच्चे हैं भगवान हमारी बस्ती में
आम आदमी तुम भला कैसे यहाँ
रहते सभी महान हमारी बस्ती में
अगर चाहता है जीना तो झुक जा रे
तू मत सीना तान हमारी बस्ती में
हैरत में मुल्ला-पंडित के रहते हैं
राम और रहमान हमारी बस्ती में
(२)
जब कुछ नैतिक बल मिलता है तब मुद्दों का हल मिलता है
जिसने समझा वर्तमान को
उसे ही सुन्दर कल मिलता है
पत्थर-पत्थर शहर हो गया
कदम-कदम जंगल मिलता है.
साथ मेरे बस केवल रहना
बहुत अधिक संबल मिलता है
उथली नदियों के ही भीतर
अक्सर इक मरुथल मिलता है
बहुत सगे बन कर फिरते हैं
उनसे ज्यादा छल मिलता है
पास अगर है पैसा तो फिर
रिश्ता बड़ा सफल मिलता है
पंकज देख निराश न होना
सहरा में भी जल मिलता है
4 टिप्पणियाँ:
पंकज जी .... बहुत ही करारा व्यंग है दोनो रचनाओं में ........ बहुत लाजवाब लिखा है .... समाज का आईना है ........
जिसने समझा वर्तमान को
उसे ही सुन्दर कल मिलता है
achha sher...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है।बधाई।
बहुत ही करारा व्यंग है
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