प्रेम गीत../ प्रीत तुम्हारी पा कर प्रतिपल ....
>> Monday, December 21, 2009
एक प्रेम गीत.....
मैंने बहुत पहले कुछ प्रेमगीत लिखे थे. सच कहूं तो हालात ऐसे नहीं कि प्रेम-गीत लिखे जाए, लेकिन कभी-कभी जीवन में नवरंग भरने के लिए प्रेम भी जरूरी है.निसंदेह अनुभव यही है, कि प्रेम ऊर्जा देता है. प्रेम हमें गतिमान रखता है. प्रेम मरते आदमी को जीवन दे सकता है. प्रेम हारी हुई बाज़ी को जीत में बदल देता है. पावन प्रेम के बिना जीवन बेकार है. इसलिए लगता है (हमेशा नहीं....) कभी -कभी प्रेम गीत या प्रेम कविता उतरती है तो उतर ही जाने दो. यह पहली बार हुआ है कि आज यह गीत सीधे अंतरजाल में ही उतरा. एक चमत्कार की तरह. दरअसल इसकी भी एक ललित-वजह है. बहुमुखी प्रतिभा से भरे हुए बेहद सक्रिय चिट्ठाकार अनुज ललित शर्मा ने कल ही मुझसे कहा कि ''भैया, आपने ग़ज़लें कहीं, नवगीत भी लिखे, कविताएँ भी लिखीं, लेकिन अब तक कोई प्रेम-गीत नहीं दिया.. एक प्रेमगीत तो लिखें''. ललित की बात सुन कर मेरे भीतर का प्रेमी-मन जाग उठा. कुछ गीत तो मैंने लिखे ही है, पुरानी फाईलों में खोजा, लेकिन अपने पुराने गीत कहीं मिले ही नहीं. अब क्या करुँ.? इसी उहापोह में अचानक....लगा कि एक गीत उतर रहा है...धीरे-धीरे...जैसे आकाश से उतरती है परी...जैसे उद्यान में मंडराने लगती है कोई रन-बिरंगी तितली, जैसे....जैसे...? बस-बस, वही गीत आज आपके सामने है. ....पढ़ें ...और..हो सके तो अपने प्रिय-जन तक भी पहुचाएं. सुनाएँ. भाइयो, नफ़रत नहीं, अब प्रेम के वायरस भी फैलने चाहिए. तो प्रस्तुत है........
प्रीत तुम्हारी पा कर प्रतिपल ....
प्रीत तुम्हारी पा कर प्रतिपल,
मन-पंकज पुलकित लगता है.
मन-पंकज पुलकित लगता है.
तुम मलयानिल बन आते हो,
यह जीवन सुरभित लगता है.
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जीवन के झंझावातों में,
अधर तेरे मधुरस भरते हैं.
हर दिन ही लगता है नूतन,
संग-साथ उत्सव करते हैं
संग-साथ उत्सव करते हैं
थका-थका-सा काल भी जैसे,
तुझे देख मुखरित लगता है...
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सुमन दिखे दो निकट कभी तो,
मधुर मिलन की आस जगे.
जित देखूं, उत बिम्ब तुम्हारा,
अंतर्मन में प्यास जगे.
अंतर्मन में प्यास जगे.
हो प्रिय का जब संग मुझे तो
पुन्य कोई अर्जित लगता है.
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तुम जीवन में आए जैसे,
सुरभित-चन्दन वन आ जाए.
तिमिराच्छादित पल को जैसे,
शुभ्र किरण आ कर सहलाए.
शुभ्र किरण आ कर सहलाए.
नेह तुम्हारा नवल-धवल-सा,
मुझको ही अर्पित लगता है.
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जीवन-पथ पर कंटक कितने,
तुमने सभी बुहार दिए.
तुमने सभी बुहार दिए.
तेरे स्पर्शो ने प्रियतम,
नित-नूतन श्रृंगार दिए.
नित-नूतन श्रृंगार दिए.
बिना तुम्हारे ह्रदय-भवन यह,
जाने क्यों खंडित लगता है.
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प्रीत तुम्हारी पा कर प्रतिपल,
मन-पंकज पुलकित लगता है.
तुम मलयानिल बन आते हो,
मन-पंकज पुलकित लगता है.
तुम मलयानिल बन आते हो,
यह जीवन सुरभित लगता है
10 टिप्पणियाँ:
गिरीश भैया-एक अनुज की गुहार पर आपने एक प्रेम गीत रचा, बहुत ही सुंदर है। आपको बारम्बार प्रणाम
गिरीश भैया-एक अनुज की गुहार पर आपने एक प्रेम गीत रचा, बहुत ही सुंदर है। आपको बारम्बार प्रणाम
Komal bhavon ko itni pavan sundar abhivyakti di hai aapne ki man mugdh ho gaya...
Hriday bhoomi ko rasasikt karti adwiteey is rachna hetu aapka bahut bahut aabhar...
जीवन-पथ पर कंटक कितने,
तुमने सभी बुहार दिए.
तेरे स्पर्शो ने प्रियतम,
नित-नूतन श्रृंगार दिए.
बिना तुम्हारे ह्रदय-भवन यह,
जाने क्यों खंडित लगता है.
वाह गिरीश जी वाह...मन मोह लिया आपके इस प्रेम गीत ने जो प्रेम में डूब कर आपने लिखा लगता है...अप्रतिम रचना...बधाई स्वीकारें.
नीरज
जीवन-पथ पर कंटक कितने,
तुमने सभी बुहार दिए.
तेरे स्पर्शो ने प्रियतम,
नित-नूतन श्रृंगार दिए.
बिना तुम्हारे ह्रदय-भवन यह,
जाने क्यों खंडित लगता है.
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प्रीत तुम्हारी पा कर प्रतिपल,
मन-पंकज पुलकित लगता है.
तुम मलयानिल बन आते हो,
यह जीवन सुरभित लगता है
behatareen.wah.
सुंदर प्रेम गीत..बढ़िया लगा..धन्यवाद गिरीश जी
सुमन दिखे दो निकट कभी तो,
मधुर मिलन की आस जगे.
जित देखूं, उत बिम्ब तुम्हारा,
अंतर्मन में प्यास जगे. .....
पंकज जी ......... आपने प्रेम का गीत अभी तक नही दिया तो क्या ...... यह रचना बता रही है की आपके अंदर प्रेम की अनुभूति कूट कूट कर भारी है ........ प्रेम हृदय में न हो तो इतना मधुर गीत नही बन सकता ......... बहुत ही सुंदर, कोमल, उन्मुक्त और प्रेम से भरपूर लिखा है .........
सुन्दर। ललित जी न ललित गीत रचवा ही लिया।
मन खजुराहो, तन वृन्दावन.
नेह नर्मदा श्वास अकम्पित.
अमरकंटकी परस तुम्हारा-
विन्ध्य-सतपुड़ा सम सजता है..
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