ग़ज़ल/ हम तो उस उड़ते परिंदे के दीवाने हो गए
>> Wednesday, December 23, 2009
हम तो उस उड़ते परिंदे के दीवाने हो गए
प्यार की हर छाँव में जिसके ठिकाने हो गए
मै भी चिड़ियों की तरह बेफिक्र हो जीता रहा
घोंसले में जब कभी दो-चार दाने हो गए
हौसला है आसमानी, पंख छोटे है तो क्या
सीख ले कर पंछियों से हम सयाने हो गए
जिसने सीखी है परिंदों से कला परवाज़ की
रंग उसकी ज़िन्दगी के ही सुहाने हो गए
हम अकेले ही चले जब साथ न कोई रहा
बस ज़रा-सी बात थी हम पर निशाने हो गए
कोयलों की कूक सुन कर याद फिर आया कोई
यार को देखे हुए कितने ज़माने हो गए
दर्द जितने भी मिले उनका करुँ मै शक्रिया
ज़िंदगी संगीत है ये सब तराने हो गए
एक पल दीदार को कितने बहाने हो गए
प्यार करने के लिए वो भी सयाने हो गए.
तुमने मेरे शेर की तारीफ़ की तो देख लो
ऐसे-वैसे और कैसे अब फ़साने हो गए तुमने मेरे शेर की तारीफ़ की तो देख लो
उड़ सके जो भी परिंदों की तरह पंकज यहाँ
ऐसे हर इनसान के ढेरों फ़साने हो गए
13 टिप्पणियाँ:
WAAH....KYA BAAT HAI....DIL KO CHHOOTI ATISUNDAR RACHNA...SABHI KE SABHI SHER KABILE DAAD HAIN....
बहुत बेहतरीन रचना।
bahut hi khoobsoorat rachna........badhayi.
हम अकेले ही चले जब साथ न कोई रहा
बस ज़रा-सी बात थी हम पर निशाने हो गए ...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ...... कमाल के शेर बने हैं ........
बड़े ही भले भावों वाली इस गजलनुमा के लिए आपको बहुत सारा प्यार।
बहुत बढ़िया!!बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।
तुमने मेरे शेर की तारीफ़ की तो देख लो
ऐसे-वैसे और कैसे अब फ़साने हो गए
उड़ सके जो भी परिंदों की तरह पंकज यहाँ
ऐसे हर इनसान के ढेरों फ़साने हो गए
anupam rachna.
गिरीश जी आप की हर लाइन मुझे बहुत अच्छी लगी कल हमने एक प्रेम गीत पढ़ा था और आज थोड़ा हट कर पर हर तरह के भावनाओं का समावेश मिल जाता है आपकी रचनाओं में बहुत बढ़िया रचना..सादर प्रणाम स्वीकारे
हौसला है आसमानी, पंख छोटे है तो क्या
सीख ले कर पंछियों से हम सयाने हो गए
हौसले ने ही तो इतनी सुन्दर कविता को अभिव्यक्त किया है ...!!
'हम अकेले ही चले जब साथ न कोई रहा
बस ज़रा-सी बात थी हम पर निशाने हो गए '
bahut khoob!
हौसला है आसमानी, पंख छोटे है तो क्या
सीख ले कर पंछियों से हम सयाने हो गए
waah !waaah!waah!
bahut hi umda gazal hai!
सुन्दर अभिव्यक्ति। ये खासकर जमा:
'हम अकेले ही चले जब साथ न कोई रहा
बस ज़रा-सी बात थी हम पर निशाने हो गए '
कौए दोनों आँख से हैं आजकल जग देखते.
जरूरत से जियादह हम चतुर काने हो गए..
बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।
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