अरे-अरे.ये मेरा शतक..? सधन्यवाद...
>> Wednesday, December 23, 2009
अरे-अरे...? देखते ही देखते मैंने शतक मार लिया...? यह मेरी सौवीं पोस्टिंग है. वैसे इन पांच महीनों में मैंने लगभग दो सौ से ज्यादा रचनाये प्रस्तुत की है, लेकिन एक पोस्ट में तीन रचनाए हो या एक, पोस्ट एक ही मानी जाती है. इस लिहाज से यह मेरी सौवीं पोस्टिंग या सन्देश है. 6 अगस्त. जी हाँ, इसी दिन मैंने ब्लॉग की दुनिया में पहला कदम रखा था, जैसे कोई प्यार की दुनिया में रखता है. डरते-डरते, कि पता नहीं अल्ला जाने क्या होगा आगे, मौलजाने क्या होगा आगे? लेकिन-
जो हुआ अच्छा हुआ
हर तरफ चर्चा हुआ.
हर कोई आया इधर
स्वागतम कहता हुआ
रचनात्मकता मेरा पहला प्यार है. मेरे शुभचिंतक तो लगातार बोलते रहे, लेकिन मै लापरवाह ही बना रहा. किन्तु जब घर पर नेट लगा तो मन नहीं माना .बना ही लिया ब्लॉग. बेटे साहित्य ने फ़ौरन सहयोग कर दिया. अरे...पल भर के काम के लिए लंबा समय लगा दिया था मैंने. पहले सोचता था कि ब्लॉग बनाना बड़ा कठिन काम है,लेकिन बाद में समझ आया कि ऐसा कुछ नहीं है. बहुत से टेम्पलेट तो यहाँ पहले से ही रखे हुए है, कुछ और बेहतर करना हो तो तकनीकी सहयोग वाले भी मिल जाते है. ब्लॉग बनने तक तब तक मुझे तकनीकी ज्ञान बिलकुल ही नहीं था. (सच कहूं तो आज भी नहीं है) लेकिन कहा गया है न, कि ''करत-करत अभ्यास के जड़मती होत सुजान''. हम भी सुजान बनने की कोशिश करते रहे. (वैसे सच तो यही है, कि अब तक नहीं बन पाए है) लेकिन काम चलाने लायक थोड़ी-सी जानकारी मिल गयी है. अंतरजाल की दुनिया में एक से एक महारथी नज़र आते है. उनको देखता हूँ तो अच्छा लगता है कि इन्होने तकनीकी ज्ञान अर्जित किया. मै तो अब तक साहित्य की दुनिया में ही रमा रहा. लेकिन पश्चाताप होता है कि दो साल पहले से ही क्यों न सक्रिय हुआ. खैर, जब जागे, तभी सवेरा. आज मेरे कितने चाहने वाले है. देश में, विदेश में. कितने लोगों से मेरा जीवंत रिश्ता बन गया है. ब्लाग के बहाने विश्व - ग्राम की अवधारणा साकार रूप ले रही है. जिनसे मेरा कभी परिचय नहीं हुआ, जिनको हमने कभी देखा नहीं था, जिनको हम पहले जानते ही नहीं थे, वे सारे अच्छे लोग मुझसे जुड़ रहे हैं, और मै उन लोगों से जुड़ रहा हूँ. यह बड़ी सुखद बात है. मेरे लिए सन २००९ की उपलब्धि यही है. यह ठीक है,कि सही चीजों पर कई बार गलत लोग भी काबिज़ हो जाते है, लेकिन अच्छे लोगो की बहुलता ही मूल्यों को बरक़रार रखती है.ब्लॉग की दुनिया में भी मैंने अच्छे विचारो से परिपक्व लोग देखे है. माफिया किस्म के लोग भी होंगे लेकिन मै गिलास को आधा भरा देखने का आदी हूँ. इस दृष्टि से मुझे संतोष है, कि मैंने ब्लाग की दुनिया में कदम्र रख कर गलती नहीं की. मेरा स्वागत ही हुआ है. मेरा रचानात्मक परिवार बढ़ा है. अभी यह संख्या बहुत ही कम है, लेकिन चिंता की बात नहीं, अभी तो पांच महीने भी नहीं हुए है. इतनी जल्दी भी क्या है. अभी तो ये अंगडाई है...आगे और चढ़ाई है.. मुझे सहयोग करने वाले कुछ नाम मुझे याद आ रहे है . सबसे पहले मेरी बाल कविताओ का ब्लॉग जयप्रकाश मानस ने बनाया. मानस के कारण अंतरजाल की दुनिया में कई जगह मेरी उपस्थिति दर्ज होती चली गयी. मानस तो ३-४ साल से ही पीछे पड़े थे कि आप भी अपना ब्लॉग बना लें. बेहद सक्रिय अनुजवत ब्लागर ललित शर्मा ने तो घर पहुँच सेवा दी. बहुत -सी बाते बताईं, समझाई. ये है सदाशयता. ''आरम्भ ''वाले संजीव तिवारी ने भी सहयोग का वचन दिया. ''साहित्य वैभव'' के संपादक डा. सुधीर शर्मा और ''यायावर'' ब्लॉग वाले रमेश शर्मा उन लोगों में है, जिसने कहा- अब आपका ब्लॉग बन ही जाना चाहिए. और आखिर बन ही गया. वैसे मेरी सक्रियता का सुफल भी मिला. परिकल्पना वाले भाई रविन्द्र प्रभात की मुझ पर नज़र पड़ी और उन्होंने मुझे दशावतार में शामिल कर दिया. यह उनका बड़प्पन है. शहरोज़ ने मेरे ब्लॉग को देखा तो मेरी कविताओ को अपने ब्लॉग में ससम्मान जगह दी. ''अभिव्यक्ति '' की पूर्णिमा बर्मन और ''लेखनी''वाली शैल अग्रवाल का भी स्नेह मिला. बहरहाल अपनी सौवीं पोस्ट से अभिभूत हूँ, शतक मारने की खुशी है. पता नहीं कब तक चलेगा यह सिलसिला. बहरहाल मैं अपनी ही एक ग़ज़ल के कुछ शेर फिर पेश करना चाहता हूँ, जो मैंने इसी मौके के लिए ही कहे और अक्सर कहता रहता हूँ, कुछ मित्र भी इन पंक्तियों का उल्लेख करते रहते है. देखें--
जो हुआ अच्छा हुआ
हर तरफ चर्चा हुआ.
हर कोई आया इधर
स्वागतम कहता हुआ
रचनात्मकता मेरा पहला प्यार है. मेरे शुभचिंतक तो लगातार बोलते रहे, लेकिन मै लापरवाह ही बना रहा. किन्तु जब घर पर नेट लगा तो मन नहीं माना .बना ही लिया ब्लॉग. बेटे साहित्य ने फ़ौरन सहयोग कर दिया. अरे...पल भर के काम के लिए लंबा समय लगा दिया था मैंने. पहले सोचता था कि ब्लॉग बनाना बड़ा कठिन काम है,लेकिन बाद में समझ आया कि ऐसा कुछ नहीं है. बहुत से टेम्पलेट तो यहाँ पहले से ही रखे हुए है, कुछ और बेहतर करना हो तो तकनीकी सहयोग वाले भी मिल जाते है. ब्लॉग बनने तक तब तक मुझे तकनीकी ज्ञान बिलकुल ही नहीं था. (सच कहूं तो आज भी नहीं है) लेकिन कहा गया है न, कि ''करत-करत अभ्यास के जड़मती होत सुजान''. हम भी सुजान बनने की कोशिश करते रहे. (वैसे सच तो यही है, कि अब तक नहीं बन पाए है) लेकिन काम चलाने लायक थोड़ी-सी जानकारी मिल गयी है. अंतरजाल की दुनिया में एक से एक महारथी नज़र आते है. उनको देखता हूँ तो अच्छा लगता है कि इन्होने तकनीकी ज्ञान अर्जित किया. मै तो अब तक साहित्य की दुनिया में ही रमा रहा. लेकिन पश्चाताप होता है कि दो साल पहले से ही क्यों न सक्रिय हुआ. खैर, जब जागे, तभी सवेरा. आज मेरे कितने चाहने वाले है. देश में, विदेश में. कितने लोगों से मेरा जीवंत रिश्ता बन गया है. ब्लाग के बहाने विश्व - ग्राम की अवधारणा साकार रूप ले रही है. जिनसे मेरा कभी परिचय नहीं हुआ, जिनको हमने कभी देखा नहीं था, जिनको हम पहले जानते ही नहीं थे, वे सारे अच्छे लोग मुझसे जुड़ रहे हैं, और मै उन लोगों से जुड़ रहा हूँ. यह बड़ी सुखद बात है. मेरे लिए सन २००९ की उपलब्धि यही है. यह ठीक है,कि सही चीजों पर कई बार गलत लोग भी काबिज़ हो जाते है, लेकिन अच्छे लोगो की बहुलता ही मूल्यों को बरक़रार रखती है.ब्लॉग की दुनिया में भी मैंने अच्छे विचारो से परिपक्व लोग देखे है. माफिया किस्म के लोग भी होंगे लेकिन मै गिलास को आधा भरा देखने का आदी हूँ. इस दृष्टि से मुझे संतोष है, कि मैंने ब्लाग की दुनिया में कदम्र रख कर गलती नहीं की. मेरा स्वागत ही हुआ है. मेरा रचानात्मक परिवार बढ़ा है. अभी यह संख्या बहुत ही कम है, लेकिन चिंता की बात नहीं, अभी तो पांच महीने भी नहीं हुए है. इतनी जल्दी भी क्या है. अभी तो ये अंगडाई है...आगे और चढ़ाई है.. मुझे सहयोग करने वाले कुछ नाम मुझे याद आ रहे है . सबसे पहले मेरी बाल कविताओ का ब्लॉग जयप्रकाश मानस ने बनाया. मानस के कारण अंतरजाल की दुनिया में कई जगह मेरी उपस्थिति दर्ज होती चली गयी. मानस तो ३-४ साल से ही पीछे पड़े थे कि आप भी अपना ब्लॉग बना लें. बेहद सक्रिय अनुजवत ब्लागर ललित शर्मा ने तो घर पहुँच सेवा दी. बहुत -सी बाते बताईं, समझाई. ये है सदाशयता. ''आरम्भ ''वाले संजीव तिवारी ने भी सहयोग का वचन दिया. ''साहित्य वैभव'' के संपादक डा. सुधीर शर्मा और ''यायावर'' ब्लॉग वाले रमेश शर्मा उन लोगों में है, जिसने कहा- अब आपका ब्लॉग बन ही जाना चाहिए. और आखिर बन ही गया. वैसे मेरी सक्रियता का सुफल भी मिला. परिकल्पना वाले भाई रविन्द्र प्रभात की मुझ पर नज़र पड़ी और उन्होंने मुझे दशावतार में शामिल कर दिया. यह उनका बड़प्पन है. शहरोज़ ने मेरे ब्लॉग को देखा तो मेरी कविताओ को अपने ब्लॉग में ससम्मान जगह दी. ''अभिव्यक्ति '' की पूर्णिमा बर्मन और ''लेखनी''वाली शैल अग्रवाल का भी स्नेह मिला. बहरहाल अपनी सौवीं पोस्ट से अभिभूत हूँ, शतक मारने की खुशी है. पता नहीं कब तक चलेगा यह सिलसिला. बहरहाल मैं अपनी ही एक ग़ज़ल के कुछ शेर फिर पेश करना चाहता हूँ, जो मैंने इसी मौके के लिए ही कहे और अक्सर कहता रहता हूँ, कुछ मित्र भी इन पंक्तियों का उल्लेख करते रहते है. देखें--
आपकी शुभकामनाएँ साथ हैं
क्या हुआ गर कुछ बलाएँ साथ हैं
हारने का अर्थ यह भी जानिए
जीत की संभावनाएं साथ हैं
इस अँधेरे को फतह कर लेंगे हम
रौशनी की कुछ कथाएँ साथ हैं
14 टिप्पणियाँ:
Century ke liye bahut bahut badhai ab hajar fir lac fir karodo me badalate jaiye..hamari yahi duna hai..
BAHUT BAHUT BADHAYI.
--------
2009 के श्रेष्ठ ब्लागर्स सम्मान!
अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
सौवीं पोस्टिंग की बहुत बहुत बधाई!
गिरीश भैया- शतक के लिए बधाई, अब हम सहस्त्र शतक का ईंतजार करेंगे। शुभकामनाएं
सौ वीं पोस्टिंग की और दशावतार में शामिल होने पर बहुत बहुत बधाई!
शुभकामनाएं.
बहुत बहुत बधाई।
आपको सौवीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई !!
हारने का अर्थ यह भी जानिए
जीत की संभावनाएं साथ हैं ...
सौवीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई........
सौवीं पोस्टिंग की बहुत बहुत बधाई एवं ऐसे ही कई कई शातकों के लिए शुभकामनाएँ.
आप ब्लॉग जगत के सचिन तेंदुलकर बने और शतक पर शतक ठोकते रहें ये ही कामना है...
नीरज
बहुत बहुत बधाई बडे भाई. हैप्पी ब्लागिंग.
girish ji 100 th post ke liye dheron badhaai.
bhavishya ke liye hardik shubhkaamnayen sweekaren.
शतक मुबारक। आगे और शतक लगायें। शुभकामनायें।
मंजिलें और भी हैं इन्तिज़ार में पंकज...
Post a Comment