एक ग़ज़ल.......
>> Friday, December 25, 2009
साथ में रहते हुए भी अजनबी बन कर रहे
ज़िंदगी में ज़िंदगी की इक कमी बन कर रहे
कैसे उनकी निभ सकेगी दो घड़ी भी दोस्तो
हर घड़ी जो बस हमी हैं, बस हमी बन कर रहे
कौन उसको भूल पाया है सदा संसार में
आदमी के बीच में जो आदमी बन कर रहे
एक बच्चा बोलता है तोतली बोली में सुन
काश के यह आदमी मेरी हंसी बन कर रहे
सूख कर बंजर हुए तो कौन आएगा इधर
वो दिलों में राज करता जो नदी बन कर रहे
मज़हबों के नाम पर गर खूँ बहे इनसान का
शर्म है के आदमी यूं मज़हबी बन कर रहे
तेरे पीछे एक दिन बेशक ज़माना आएगा
गर हमेशा तू सभी की इक ख़ुशी बन कर रहे
देवता से कम नहीं लगता हमें वह आदमी
जो अँधेरे के शहर में रोशनी बन कर रहे
उस नदी से रश्क करता है समंदर दोस्तो
प्यास जो सबकी बुझाए तिश्नगी बन कर रहे (तिश्नगी-प्यास)
ज़िंदगी का पाठ ये आंसू सिखाते है हमें
आदमी तू आँख के अन्दर नमी बन कर रहे
कैसे उसको हम कहेंगे आदमी 'पंकज' यहाँ
चंद पैसों के लिए जो बस 'डमी' बन कर रहे
7 टिप्पणियाँ:
कौन उसको भूल पाया है सदा संसार में
आदमी के बीच में जो आदमी बन कर रहे...
हर शेर उम्दा...बहुत बढिया गज़ल...
आनंद आ गया जी फुल बटा फुल
एक बच्चा बोलता है तोतली बोली में सुन
काश के यह आदमी मेरी हंसी बन कर रहे
-बहुत बढिया
उस नदी से रश्क करता है समंदर दोस्तो
प्यास जो सबकी बुझाए तिश्नगी बन कर रहे
प्यास का निरंतर बना रहना भी तरक्की का बायस होता है,
बनी रहे ये प्यास, बने रहे ये पीने वाले, बनी रहे ये मधुशाला
आभार
कौन उसको भूल पाया है सदा संसार में
आदमी के बीच में जो आदमी बन कर रहे
ये दो मिसरे तो बहुत बढ़िया हैं... आज मेरे एक बहुत ही अज़ीज़ मेरा साथ छोड़कर इस दुनिया से रुख्सत हो गये.. मैंने उन पर अपने ब्लॉग में एक पोस्ट भी लिखी... काश आपकी ये दो लाइन भी शामिल कर पाता.. उनपर एकदम सटीक बैठती हैं..
http://abyazk.blogspot.com/
बहुत खूब ।
anupam rachna.
तुम हमारे हो न हो पर बात सच्ची है यही
हम जहाँ भी हैं तुम्हारे मित्र ही बन कर रहे..
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