महावीर वचनामृत-1
>> Wednesday, January 20, 2010
पिछले दिनों मै विनोबाजी का साहित्य पढ़ रहा था. संत विनोबा महान क्रांतिकारी थे. सामाजिक जागरण की दिशा में उन्होंने गाँधी जी के काम को आगे बढ़ाने की कोशिश की. भूदान आन्दोलन, दस्यु-समर्पण जैसे अभिनव काम उन्होंने किये. गो हत्या पर रोक लगाने की मांग लेकर वे आमरण अनशन पर बैठ गए थे. (उनका अनशन चालाकी के साथ तुडवा दिया गया, लेकिन कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी.) विनोबा भावे ने सामाजिक काम ही नहीं किये, समाज को नैतिक बनाने वाले महान चिंतन भी दिया. उनका बीस खंडो में प्रकाशित साहित्य पढ़ कर पता चलता है कि विनोबा जी ने बौद्धिक चेतना जगाने के लिए इतना श्रेष्ठ लेखन-चिंतन किया, जो उन्हें एक बड़ा साहित्यकार भी बनाता है. उन्होंने भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध के विचारों का अनुवाद किया. जिसे पढ़ते हुए मुझे लगा कि इनको दोहा-छंद में भी रूपांतरित किया जा सकता है. बस, माँ सरस्वती का नाम लेकर भिड गया. और कुछ ही दिनों में दोहे तैयार हो गए. भगवान महावीर के वचनों के 155 दोहे और भगवान बुद्ध के विचारों पर केन्द्रित 150 दोहे. ये दोहे अब ब्लॉग में देने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. प्रथम कड़ी के रूप में पेश हैं दस दोहे-
महावीर वचनामृत-1
(1)
जग जीते तो वह मनुज, वीर सदा कहलाय।
मगर स्वयं को जीत कर, महावीर बन जाय।।
(2)
भोग रोग है शोक भी, इक दिन सब को होय।
मुक्त हृदय जो भी हुआ, सुख की निंदिया सोय।।
भोग रोग है शोक भी, इक दिन सब को होय।
मुक्त हृदय जो भी हुआ, सुख की निंदिया सोय।।
(3)
गाँठ मोह की जो पड़ी, छूट न पाई हाय।
अज्ञानी हर जीव ही, रहे सदा असहाय।।
गाँठ मोह की जो पड़ी, छूट न पाई हाय।
अज्ञानी हर जीव ही, रहे सदा असहाय।।
(4)
कदम-कदम पे दु:ख मगर, ज्ञानी कर ले पार।
मुसकाते रहते सदा, जीत मिले या हार।।
मुसकाते रहते सदा, जीत मिले या हार।।
(5)
भला सोचिए तो भला, नहीं बुरे में सार।
राग-द्वेष से मुक्त जो, मानव वही उदार।।
भला सोचिए तो भला, नहीं बुरे में सार।
राग-द्वेष से मुक्त जो, मानव वही उदार।।
(6)
ऊँच-नीच कोई नहीं, मानव सभी समान।
फेर गोत्र का छोड़ दे, ओ मानुस नादान।।
ऊँच-नीच कोई नहीं, मानव सभी समान।
फेर गोत्र का छोड़ दे, ओ मानुस नादान।।
(7)
बुरा न सोचे न करे, कुछ भी नहीं छिपाय।
कटु वचन जो ना कहे, वही देव बन जाय।।
बुरा न सोचे न करे, कुछ भी नहीं छिपाय।
कटु वचन जो ना कहे, वही देव बन जाय।।
(8)
लाभ बढ़ाए लोभ को, इसकी गति है तेज।
जो जाने संतोष को, सोए सुख की सेज।।
(9)
जो सच्चा माँ की तरह, उस पर करो यकीन।
गुरू जैसा ही पूज्य वह, रहे कभी न दीन।।
लाभ बढ़ाए लोभ को, इसकी गति है तेज।
जो जाने संतोष को, सोए सुख की सेज।।
(9)
जो सच्चा माँ की तरह, उस पर करो यकीन।
गुरू जैसा ही पूज्य वह, रहे कभी न दीन।।
(10)
सोने का पर्वत मिले, तो भी लोभ अनंत।
वीतराग जिस दिन जगा, हुआ मनुज श्रीमंत।।
सोने का पर्वत मिले, तो भी लोभ अनंत।
वीतराग जिस दिन जगा, हुआ मनुज श्रीमंत।।
5 टिप्पणियाँ:
iskhazane se parichay ke liye aabhaar aur isko dohon men roopantrit karne ke liye badhaai, agli kadi ka intzaar hai.
अच्छे दोहे.
आपने अच्छा किया, वरना अब किसे याद आती हैं अच्छी-भली बातें
भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के वचनों के विचारों पर केन्द्रित दोहे..पढ़कर ब्लोगर और पाठक जरुर पुण्य लाभ कमाएंगे ...बधाई ..
waah ye to bahut alag pryog hai
Mahavir bhgawaan ki vani is yarah dohe mein padhna
bahut achcha laga
shukriya
main aapko gmail par add kar rahi hun
krupya accept kare taki aapse aur bhi baat ho sake
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