ग़ज़ल / जब तलक है ज़िंदगी विश्राम मत करना
>> Saturday, January 2, 2010
ब्लॉग की दुनिया से जुड़ने के बाद मेरा एक फायदा हुआ है कि निरंतर रचनाये हो रही है. पहले अपनी पुरानी ग़ज़ले या कविताये, भी पोस्ट कीं, लेकिन अब देख रहा हूँ कि सीधे ब्लॉग पर भी रचनाये. हो रही है. इसका एक कारण यह भी है कि सृजन के लिए अनुकूल वातावरण चाहिए. जब हम ब्लॉग खोलते है तब हमारा दिमाग सृजन-लोक में पहुँच जाता है. कल्पना की उड़ान होने लगाती है. संवेदनाए, शब्दों को खोज कर आकर लेने लगाती है. सृजन का यह एक नया माध्यम हो गया है. संपर्क का तो खैर है ही. न जाने कितने ही नए मित्र मिले, और अच्छे लोग. जो खुद बेहतर सृजन कर रहे है. कुछ साधना रत भी है. कुछ बेहतर लिखना चाहते है. जैसे मैं. कोशिश कर रहा हूँ. शायद कल और अच्छा लिख पाऊँ.अभी कलम पकड़ना सीख रहा हूँ..मेरा लिखा हुआ कुछ सुधी पाठक-ब्लोगर पसंद कर रहे है. इससे हौसला बढ़ा है. आज फिर एक ग़ज़ल पेश है. -
ग़ज़ल
जब तलक है ज़िंदगी विश्राम मत करना
लोग तुमसे दूर हों वह काम मत करना
लाख चौरासी जनम के बाद आए हो
इस जनम को तुम कभी बदनाम मत करना
जीत मिलती है कभी तो हार भी होगी
मस्त रहना तुम दुखी यूं शाम मत करना
ज़िंदगी का क्या भरोसा कब रुके धड़कन
कुछ नया करते रहो आराम मत करना
तुम दुखी हो जान कर होंगे सुखी कुछ लोग
अपनी पीड़ा को कभी भी आम मत करना.
4 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना.नववर्ष की शुभकामना...
बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।
कलम हो गर हाथ में संकोच मत करना.
रूप हो यदि सामने तो नयन नत करना..
बहुत सुन्दर रचना
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