''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल / जब तलक है ज़िंदगी विश्राम मत करना

>> Saturday, January 2, 2010

ब्लॉग की दुनिया से जुड़ने  के  बाद मेरा एक फायदा हुआ है कि निरंतर रचनाये हो रही है. पहले अपनी पुरानी ग़ज़ले  या कविताये, भी पोस्ट कीं, लेकिन अब देख रहा हूँ कि सीधे ब्लॉग पर भी रचनाये. हो रही है. इसका एक कारण यह भी है कि सृजन के लिए अनुकूल वातावरण चाहिए. जब हम ब्लॉग खोलते है तब हमारा दिमाग सृजन-लोक में पहुँच जाता है. कल्पना की उड़ान होने लगाती है. संवेदनाए, शब्दों को खोज कर आकर लेने लगाती है. सृजन का यह एक नया माध्यम हो गया है. संपर्क का तो खैर है ही. न जाने कितने ही नए मित्र मिले, और अच्छे लोग. जो खुद बेहतर सृजन कर रहे है. कुछ  साधना रत भी है. कुछ बेहतर लिखना चाहते है. जैसे मैं. कोशिश कर रहा हूँ. शायद कल और अच्छा लिख पाऊँ.अभी कलम पकड़ना सीख रहा हूँ..मेरा लिखा हुआ कुछ सुधी पाठक-ब्लोगर पसंद कर रहे है. इससे हौसला बढ़ा है. आज फिर एक ग़ज़ल पेश है. -
ग़ज़ल 
 जब तलक है ज़िंदगी विश्राम मत करना 
लोग तुमसे  दूर हों वह काम मत करना  


लाख चौरासी जनम के  बाद आए हो 
इस जनम को तुम कभी बदनाम मत करना 

जीत मिलती है कभी तो हार भी होगी 
मस्त रहना तुम दुखी यूं शाम मत करना 

ज़िंदगी का क्या भरोसा कब रुके धड़कन 
कुछ नया करते रहो आराम मत करना  

तुम दुखी हो जान कर होंगे सुखी कुछ लोग 
अपनी पीड़ा को कभी भी आम मत करना.

4 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र मिश्र January 2, 2010 at 11:17 PM  

बहुत सुन्दर रचना.नववर्ष की शुभकामना...

परमजीत सिहँ बाली January 3, 2010 at 12:02 AM  

बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।

Divya Narmada January 6, 2010 at 9:23 AM  

कलम हो गर हाथ में संकोच मत करना.
रूप हो यदि सामने तो नयन नत करना..

संजय भास्‍कर March 1, 2010 at 6:06 AM  

बहुत सुन्दर रचना

सुनिए गिरीश पंकज को

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