खलनायक जब हंसता है और भयावह लगता है
>> Sunday, January 3, 2010
रुचिका-मामले में फंसे डीजीपी राठौर की हंसती हुई अश्लील तस्वीरे जब अखबारों में छपी तो लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ, कि ये कैसा आदमी(?)हुई, जो शर्मशार नहीं है, उलटे हंस रहा है? लेकिन मुझे आश्चर्य नहीं हुआ. क्योकि मै व्यवस्था के क्रूर चेहरों को लम्बे अरसे से देखता आ रहा हूँ. आपको याद होगा , मुबई में आतंकी हमले में मारे गए शहीद की लाश के सामने खडा एक नीच किस्म का पुलिस अफसर हंस रहा था. उसकी वह अश्लील तस्वीर अखबारों में छपी थी.(पता नहीं उस अफसर पर कोई कार्रवाई हुई भी या नहीं, कहीं उसका प्रमोशन तो नहीं हो गया..? ).पुलिस अत्याचार पर मैंने एक कहानी लिखी थी- शैतान सिंह जो एनबीटी. दिल्ली से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुकी है और दो-तीन भाषाओँ में अनूदित भी हो चुकी है. इस कहानी की तारीफ प्रख्यात कथाकार नासिरा शर्मा ने भी की थी. उन्हें पुलिस अत्याचार को झेलने का निजी अनुभव भी है . हजारो उदहारण है देश में, साल कम पड़ जायेंगे इतने अत्याचार किये है अपनी ही पुलिस ने अपने लोगों पर. वैसे मेरा अपना कोई निजी अनुभव नहीं है, लेकिन दूसरों का दुःख भी हमारा दुःख है. इसीलिये एक लेखक-पत्रकार के नाते मै पुलिस अत्याचार के खिलाफ निरंतर लिखता रहता हूँ. भविष्य में भी लिखता रहूँगा. मेरे उपन्यास माफिया का मुख्य पात्र पुलिस का एक आला अधिकारी है, जो साहित्य की दुनिया में सक्रिय है. और जिसको नागार्जुन-मुक्तिबोध बताने के लिये दिल्ली के आलोचक दौड़े चले आते है. खैर, मुझे इसकी भी परवाह नहीं कि कल क्या होगा. पुरस्कार मिलेगा, या तिरस्कार. जो होगा देखा जाएगा.मेरा शेर है-हर हाल में हम सच का बयान करेंगे / बहरे तक सुन लें वो गान करेंगे / खुद को अल्लाह जो मानने लगे / ऐसे हर शख्स को इनसान करेंगे.
सच कहना-लिखना हमारा धर्म है. बहुत पहले मैंने पुलिस अत्याचार पर एक नुक्कड़ नाटक भी लिख था-''रावण शर्मिन्दा है''. रावण धरती पर आता है औए भारत की पुलिस देख कर हैरत में पड़ जाता है और एक चौराहे पर बैठ कर रोने लगाता है. लोग पूछते है, 'भाई, तुम कौन हो और यहाँ बैठ कर क्यों रो रहे हो' तब रावण कहता है ''मै रावण हूँ. मै सोचता था कि दुनिया का सबसे बड़ा अत्याचारी मै हूँ. इसी बात पर मै ठहाके लगाया करता था, . लेकिन जब से यहाँ की पुलिस देखी है, मुझे अपने आप पर शर्म आने लगी है, कि मै इने सामने कुछ भी नहीं. मैंने सीता का अपहरण किया था,लेकिन उसे छुआ तक नहीं और आज थाने में आने वाली कितनी ही महिलाओं के साथ....''बहुत कुछ कहता है रावण और फूट-फूट कर रोता है. इस व्यवस्था में रावण भी आये तो दुखी होगा. नरसंहार करने वाला डायर भी आएगा, तो लगेगा वह कुछ नहीं है. आजादी के बाद भारत में पुलिस -अत्याचार के मामले देखें तो वह सदियों पर भारी पड़ेंगे. अरे-अरे, मै तो लेख ही लिखने लग गया..? लम्बे-लम्बे लेख लिखने की आदत-सी पड़ गयी है, इसलिए अब मन के भावों को अपने ब्लॉग में कविताओं के माध्यम से कहने की कोशिश करता हूँ, ताकि गागर में ही सागर भर दिया जाएँ लेकिन जब पीड़ा सघन हो तो चंद शब्दों में बात नहीं बन पाती है शायद. यहा प्रस्तुत है एक ग़ज़ल. यह ग़ज़ल मैंने एक ब्लॉग में प्रकाशित लेख पर टिप्पणी के लिये ही यूं ही लिख दी थी. लेकिन बाद में सोचा,कि इसे अपने ब्लॉग में भी दे दू. और यह आपके सामने है. खाली ग़ज़ल ही क्यों दूं, मन की बात भी रख दू, लेकिन यह तो मिनी लेख ही बन गया. अपने विचारों को यही रोकते हुए पेश कर रहा हूँ, अपनी ग़ज़ल-
ग़ज़ल
खलनायक जब हंसता है
और भयावह लगता है
गुंडे कल मर जायेंगे
सोच कबीरा जगता है
वर्दी में अब गुंडों का
राज यहाँ बस दिखता है
लोकतंत्र का दर्द यही
लोक बेचारा मरता है
खाकी के अन्यायों पर
देश दर्द में पलता है
राजनीति की नीति क्या
शातिर बच के निकलता है
कितनी लिक्खे बात वही
दिल अपना बस दुखता है
खाकी-खादी का गठजोड़
आज सभी को चुभता है
देश मुसीबत में भारी
लोग कहें सब चलता है
और भयावह लगता है
गुंडे कल मर जायेंगे
सोच कबीरा जगता है
वर्दी में अब गुंडों का
राज यहाँ बस दिखता है
लोकतंत्र का दर्द यही
लोक बेचारा मरता है
खाकी के अन्यायों पर
देश दर्द में पलता है
राजनीति की नीति क्या
शातिर बच के निकलता है
कितनी लिक्खे बात वही
दिल अपना बस दुखता है
खाकी-खादी का गठजोड़
आज सभी को चुभता है
देश मुसीबत में भारी
लोग कहें सब चलता है
8 टिप्पणियाँ:
गिरीश जी बहुत सही बात आपने कही शैतान का हँसना भयावह ही होता है और यह हमारे देश और प्रशासन की मजबूरी है की हम ऐसी ठहाके वाले चेहरों को देख रहे है वो भी ऐसे कृत्य करने के उपरांत भी..बहुत सुखद है यह सब ...बढ़िया रचना जो सच की ओर जाती है...धन्यवाद गिरीश जी!!
लोकतंत्र का दर्द यही
लोक बेचारा मरता है
-पूरा सार इन्हीं पंक्तियों में है.
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
shaitaan kab rota hua dikhataa hai srimaan
vaise bhi ye sb paper me chhapane ke liye hansta hoa aur v ungli dikhaa kar hi photo kichvaate hai
yaad naa ho to thaakare madhu koda bhai ki tasvir yaad kare
sundar prastuti
हर हाल में हम सच का बयान करेंगे / बहरे तक सुन लें वो गान करेंगे / खुद को अल्लाह जो मानने लगे / ऐसे हर शख्स को इनसान करेंगे.
इधर नेट की समस्या थी.बहुत कुछ ये मशीन भी हमसे छीन लेता है, गर देता है तो!
आप के हम साथ हैं.दिल्ली के आलोचक भाड़ में जाए.यहाँ तो फारसी कहावत को लोग चरित्रार्थ करने में लगे हैं.तुम मुझे हाजी कहो और मैं तुम्हें हाजी कहूं.
सिर्फ साहित्य ही क्यों, समाज का ताना-बाना ही ऐसा हो चुका है, लेकिन दुःख यही है की मशाल ही अंधियारा फैला रही है.
लेकिन आप जैसे लोग भी है तो आश्वस्ती होती है.
देश मुसीबत में भारी
लोग कहें सब चलता है
yahi to badkismati hai desh ki.
गिरीश जी आप
समाज का पंक
सामने ला रहे हैं
रास्ते अपने आप
सुधरने के
खुलते जा रहे हैं।
पंकज-सलिल कहें क्यों सच?
दुनिया को यह खलता है..
Post a Comment