गीत/ वो है अनुभूति इक सुन्दर....
>> Sunday, January 10, 2010
पिछले दिनों लम्बे अंतराल के बाद मुंबई प्रवास पर था.(इसलिए सुधीजन बोर होने से बच गए.) अब फिर हाज़िर हूँ.
मुंबई में महान गायक महेंद्र कपूर के जन्म दिन पर एक कार्यक्रम था. उनके पुत्र रोहन के ख़ास आग्रह पर मै मुंबई गया था. (रोहन और संगीत निर्देशक कल्याण सेन के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूँ. वह अंजाम तक पहुंचेगा तो सब को पता चला जायेगा.तब तक मामला गुप्त ही रहे तो बेहतर...)खैर, उस कार्यक्रम में मै भी शामिल हुआ. मुझे यह देख कर बड़ी खुशी हुई कि अस्सी फीसदी श्रोता बुजुर्ग थे. मेरे साथ 'सफ़र', 'बैराग', 'विरासत', 'अकेला' जैसी अनेक फ़िल्में प्रोड्यूस करने वाले रियाज़ भाई (मुशीर-रियाज़ ) भी साथ थे. मैंने रियाज़ भाई से कहा कि, ''यहाँ अधिकाँश श्रोता साथ के पार नज़र आ रहे है''.चारों तरफ देखने के बाद उन्होंने मुस्कराते हुए कहा-''ठीक कहते है. इसका कारण यह है कि ये सारे लोग महेंद्र कपूर से अपना रिश्ता महसूस करते है. महेंद्र कपूर के गीत इन्होने जवानी में सुने थे, और अब भी सुन रहे है''. मैंने कहा-''जी, यही है नास्टेल्जिया-अतीत की मधुर स्मृतियों से जुड़े रहना''.मैंने देखा रोहन कपूर, सलमा आगा, पंकज उदास. आदेश श्रीवास्तब, सुषमा श्रेष्ठ आदि की हर प्रस्तुति पर सारे बूढ़े सर झूम रहे थे. हालांकि अधिकाँश गायक महेंद्र कपूर जी के स्तर तक पहुँच ही नहीं सके, फिर भी श्रोता तो झूम ही रहे थे, क्योंकि कार्यक्रम महेंद्र जी जैसे कालजयी गायक की याद में था. तभी तो बीमार होने के बावजूद मनोज कुमार भी शरीक हुए तो यश चोपड़ा भी अपनी फिल्म का प्रीमियर शो छोड़ कर शामिल हुए. यह देख कर मुझे अच्छा लगा कि महेंद्र कपूर जी को चाहने वाले कम नहीं है. वरना इस बाजारवाद में पुराने लोगों को अब पूछता ही कौन है?
जाने माने कला निर्देशक और मेरे परम मित्र जयंत देशमुख (दीवार, आखे, सिंग इज किंग अदि ४० फिल्मो के कला निर्देशक) के घर पर रतजगा हुआ. पुराने दिनों की यादे ताज़ा करते रहे. यह सब बता कर बोर करने के पीछे मकसद इतना बताना ही है कि अगर जीवन-मूल्य बचे रहे तो नया दौर भी हमें पतित नहीं कर सकता. भावनाए नहीं मर सकती. हम अतीत से जुड़े रह सकते है, और मनुष्य बने रहा सकते है. आज कल समय किसके पास है? कौन किसी के लिए वक़्त निकालता है? फिर भी कुछ लोग समय निकल लेते है. यही वह अनुभूति है, जो हमको जिंदा रखती है. इसी अनुभूति पर प्रस्तुत है मेरा एक गीत-
वो है अनुभूति इक सुन्दर ...
कभी श्रृंगार करती है,
कभी मनुहार करती है.
मेरे सपनों की वो रानी ,
मुझे बस प्यार करती है.
कभी वह पास आती है,
कभी वह दूर जाती है.
कभी ख्वाबों में आकर के ,
सितारों को सजाती है.
अधर जब खोलती है तो-
लगे झंकार करती है.
कभी वह रूठ जाती है,
कभी वह मुसकराती है.
वो आती है तो कोयल भी,
हमेशा गुनगुनाती है.
मेरे आँगन को आ कर के,
सदा गुलज़ार करती है.
वो है अनुभूति इक सुन्दर,
हकीकत हो नहीं पाई.
वो आयेगी कभी मुझ तक,
तभी तो नींद ना आयी.
बहुत बेताब होने पर ,
खुशी इनकार करती है..
कभी श्रृंगार करती है,
कभी मनुहार करती है.
मेरे सपनों की वो रानी ,
मुझे बस प्यार करती है.
6 टिप्पणियाँ:
नये वर्ष मे मुंबई यात्रा सार्थक रही, मुझे आपकी अनुपस्थिती बहुत खल रही थी, अब आप आ गए हैं तो कु्छ धांसु व्यंग्य और गजल पढने का आनंद आएगा। आभार-नमस्कार
कभी वह रूठ जाती है,
कभी वह मुसकराती है.
वो आती है तो कोयल भी,
हमेशा गुनगुनाती है.....
आपकी मुंबई यात्रा के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ........ आपने अपने सपनों की रानी के बारे में तो बहुत ही बेमिसाल और लाजवाब लिखा है ........ झूम कर गाने को मन कर रहा है ........... बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ...........
महेंद्र कपूर जी की गायकी का अंदाज़ ही alag था..उनके गीतों को कोई kaise भुला सकता है.Manoj Kumar ki awaaz hi to the,phir wo kaise wahan na shirkat karte.
सच कहें तो पुराने गीतों से हम बहुत kuchh सीखते हैं.आज के बाज़ारवाद में में भी इनके चाहने वाले कम नहीं हैं.बहुत अच्छा संस्मरण सुनाया.
-कविता में भी सुंदर अभिव्यक्ति है--
अनदेखी अनुभूति की...बहुत ही सुंदर!
वो है अनुभूति इक सुन्दर,
हकीकत हो नहीं पाई.
वो आयेगी कभी मुझ तक...
वो है अनुभूति इक सुन्दर,
हकीकत हो नहीं पाई.
वो आयेगी कभी मुझ तक,
तभी तो नींद ना आयी.
बहुत बेताब होने पर ,
खुशी इनकार करती है..
WAH WAH WAH BEHATAREEN PANKTIAN, GIRISH JI BADHAI SWEEKAREN.
अगर जीवन-मूल्य बचे रहे तो नया दौर भी हमें पतित नहीं कर सकता. भावनाए नहीं मर सकती....बेशक ...!!
बेहद प्यार करने वाली सपनों की रानी को सुन्दर अनुभूतियों में सजाया ..
सुन्दर कविता ...!!
बहुत ही प्यारी कविता है .
ऐसा प्रतीत होता है मनो सचाई कोई बयां कर रहा हो .
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