''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल/ दर्द के पैबंद हैं...उसके चेहरे पर. दीखे मुस्कान..

>> Tuesday, January 12, 2010

अभी हाल ही में किताबघर , दिल्ली से एक पुस्तक आयी है- ''तीसरा ग़ज़ल शतक'. जाने-माने साहित्यकार डा. शेरजंग गर्ग के संपादन में २५ शायरों की पांच-पांच ग़ज़ले छापी गयी है. गर्ग जी बहुत बड़े शायर है. पुस्तक में अदम गोंडवी जैसे महान  शायर की  ग़ज़लें भी है. इस संग्रह में प्रकाशित  दो ग़ज़ले यहाँ प्रस्तुत करने का मोह संवरण नहीं कर  पा रहा हूँ. बाकी ग़ज़ले फिर कभी.देखें....

(१)


दर्द के पैबंद हैं मुस्कान के पीछे
हैं कई मजबूरियाँ इनसान के पीछे 

यह दिखावे का नगर है क्या पता तुमको 
क़र्ज़ की बुनियाद भी है शान के पीछे 

बात सच मैंने कही इस बात को लेकर
पड़ गए हैं लोग मेरी जान  के पीछे 

 कह दिया उसने भरोसा कर लिया तुमने 
आँख भी खोले रखो तुम कान के पीछे

मुझको उन हाथों से लेने में लगे है डर 
जाने कितनों का लहू है दान के पीछे 

भूल जाओ गर किसी ने कुछ कहा पंकज 
है लगीं नाकामियाँ अपमान के पीछे 

(२)



उसके चेहरे पर दीखे मुस्कान बहुत
दिल है शायद उसका लहूलुहान बहुत 

नफ़रत करने वालों से भी करता हूँ मै प्यार 
कह ले दुनिया कहती है नादान बहुत 

खोटे सिक्के, नकली फूलो के जलवे
असली की अब कहाँ रही पहचान बहुत 

कहते है जो लूटे दुनिया को जितना 
उतना ही करता है अकसर दान बहुत 

दिल में कोई एक उतरता है पंकज
वैसे तो मिलते रहते इनसान बहुत 

11 टिप्पणियाँ:

Rajeysha January 13, 2010 at 12:04 AM  
This comment has been removed by the author.
Rajeysha January 13, 2010 at 12:05 AM  

जाने क्‍यों लोग मेरे देश को पि‍छड़ा कहते हैं
अपनी नजरों में मेरा देश है महान बहुत

खुला सांड January 13, 2010 at 1:08 AM  

मुझको उन हाथों से लेने में लगे है डर
जाने कितनों का लहू है दान के पीछे!!
दान की आपने ऐसी की तैसी करके रख दी साब !!! बहुत बारीकी से निरिक्षण किया है !!!

रंजना January 13, 2010 at 2:38 AM  

Dono hi gazal lajawaab hain....yatharth ko atyant sundar aur prabhavidhang se bayan karte sabhi sher ek se badhkar ek hain....

Sachmuch Sangrahneey rachna hai...

Udan Tashtari January 13, 2010 at 5:28 AM  

बहुत शानदार है दोनों गज़ले...मौका लगे तो और भी छापियेगा.

यह दिखावे का नगर है क्या पता तुमको
क़र्ज़ की बुनियाद भी है शान के पीछे

-कितना सच कह गया शायर!!

अर्कजेश January 13, 2010 at 11:34 AM  

शानदार गजलें पढवाने का शुक्रिया ।

दर्द के पैबंद हैं मुस्कान के पीछे
हैं कई मजबूरियाँ इनसान के पीछे

यह दिखावे का नगर है क्या पता तुमको
क़र्ज़ की बुनियाद भी है शान के पीछे

बहुत ही बढिया कहा गया है ।

36solutions January 13, 2010 at 7:33 PM  

सकरायेत तिहार के गाडा गाडा बधई.

वन्दना अवस्थी दुबे January 14, 2010 at 3:56 AM  

यह दिखावे का नगर है क्या पता तुमको
क़र्ज़ की बुनियाद भी है शान के पीछे
क्या बात है!! बहुत सुन्दर गज़ल. बधाई.

दिगम्बर नासवा January 14, 2010 at 5:20 AM  

बात सच मैंने कही इस बात को लेकर
पड़ गए हैं लोग मेरी जान के पीछे
वाह क्या लिखा है पंकज जी .......... सच कहा आज सत्य कहना बहुत बड़ा जोखिम है ......

कहते है जो लूटे दुनिया को जितना
उतना ही करता है अकसर दान बहुत

हक़ीकत उतार दी है आपने .... सामाजिक परिस्थिति का सही आंकलन है आपकी ग़ज़लें .........

दिव्य नर्मदा divya narmada January 20, 2010 at 7:18 AM  

donon gazalen man ko bhayeen.

संजय भास्‍कर March 1, 2010 at 4:20 AM  

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

सुनिए गिरीश पंकज को

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