गीत../ मन के सूखे उपवन में....
>> Thursday, January 14, 2010
....आज फिर मन में एक प्रेम-गीत जन्म ले रहा है. प्रेम...कब, कैसे, क्यों, किसी के लिए अचानक जन्म लेने लगाता है, मन को भी पता नहीं चलता. प्रेम से हारा मन किसी का बैरी नहीं हो सकता. इसलिए अगर दुनिया में लोग प्यार में डूबे रहे और ज़िंदगी को खुशहाल बना सकें, तो उन्हें कोशिश करनी चाहिए. प्यारभरी भावना ही दुनिया को बचा सकती है. बशर्ते वह प्यार हो, स्वार्थ नहीं, यहाँ कोई ''हिडेन एजेंडा'' न हो. खैर, लम्बा-चौड़ा वक्तव्य देने की बजाय पेश है मेरा नया प्रेम-गीत. मेरे प्रिय लेखक-पाठक इसे पसंद करेंगे, ऐसा विश्वास तो है.
गीत....
मन के सूखे उपवन में जब,
फूल कोई खिलने लगता है.
अधरों पर मुस्कान लौटती,
जीवन बस चलने लगाता है.
बहुत ज़रूरी है जीवन में,
अपनेपन का पौधा बोएं.
कभी किसी के संग हँसे तो,
कभी किसी की खातिर रोएँ.
अंतस ऐसा बन जाए तो,
बुझा दीप जलने लगता है...
भीड़ बहुत है कांटें भी हैं,
फिर भी कोई सुमन खिलेगा.
थके नयन के भीतर इक दिन,
कोई सुन्दर दृश्य पलेगा.
अगर नहीं है बान्झ ह्रदय तो,
स्वप्न मधुर पलने लगता है.
जैसे आकुल उर के भीतर,
गीत कोई आ जाता है.
उसी तरह वंचित जीवन में,
मीत कोई आ जाता है.
दुःख का पर्वत नेह-परस पा,
अनायास गलने लगता है.
मन के सूखे उपवन में जब,
फूल कोई खिलने लगता है.
अधरों पर मुस्कान लौटती,
जीवन बस चलने लगाता है..
4 टिप्पणियाँ:
मन के सूखे उपवन में जब,
फूल कोई खिलने लगता है.
अधरों पर मुस्कान लौटती,
जीवन बस चलने लगाता है..
-बहुत सुन्दर और कोमल गीत..संपूर्ण प्रवाह और उम्दा प्रेम भाब लिए हुए. बधाई.
जैसे आकुल उर के भीतर,
गीत कोई आ जाता है.
उसी तरह वंचित जीवन में,
मीत कोई आ जाता है.
दुःख का पर्वत नेह-परस पा,
अनायास गलने लगता है.
wah girish ji aapki rachnaon par kurban. badhaai.
वाह भैया.
कभी किसी की खातिर रोएँ.
man ko bhaya.
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