- ग़ज़ल/ यार जब कोई पुराना....
>> Friday, January 15, 2010
जीवन क्या है, हर्ष और विषाद का लेखा-जोखा ही तो है. कभी दुखा आता है दबे पाँव, तो कभी सुख दौड़ा चला आता है बाहें पसारे. दोनों का स्वागत करने वाला ही सच्चा मनुष्य है. जीवन का यही मर्म है, मानव जन्म को समझ सकने वाला ही पूर्ण मनुष्य बनता है. बाकी तो खैर जी ही लेते है. जीवन-दर्शन को समझाने के लिए अनेक महान कवियों ने अनेक रचनाएँ की है, जो हमें आज तक प्रेरणाएं देती रहती हैं. उन्हीं से प्रेरित हो कर नए कवि कुछ और बेहतर कहने की कोशिशे करते रहते है. सफल होते हैं, या नहीं, यह दूसरी बात है, लेकिन कुछ बेहतर सोचना और लिखना ही मनुष्य का धर्म है. मै अब कोई रचना करता हूँ, तो यह नहीं समझता कि कोई बड़ी रचना कर दी है. बस परम्परा का अनुस्मरण कर के सृजन करने की कोशिश ही की है. विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ, कि मेरी हर कृति एक प्रयोग है. सफलता की मोहर तो काल लगाएगा. हमें तो अपना काम करना है, बस... लेखक को इसकी चिंता भी नहीं करनी चाहिए. खैर, इस लघु-से चिंतननुमा वक्तव्य के बाद पेश है एक ग़ज़ल-
ग़ज़ल.....
यार जब कोई पुराना मिल गया
मुझको तो मेरा खज़ाना मिल गया
देख कर तेरे नयन को लग रहा
दोस्त सच्चा मिल गया पंकज अगर
मान लो उसको ज़माना मिल गया
10 टिप्पणियाँ:
"दोस्त सच्चा मिल गया पंकज अगर
मान लो उसको ज़माना मिल गया "
कितनी सच्ची बात लिखी है आपने . एक सच्चा दोस्त बहुत किस्मत वालों को मिलते हैं , अगर मिल गया तो सही में इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है !!
दोस्त सच्चा मिल गया पंकज अगर
मान लो उसको ज़माना मिल गया
अच्छा लगा..
ये तो मेरे लिए मानी हुयी बात है.
GIRISH JI , SOCH RAHA THA KISKO CHUNUN VISHESH MAAN KAR , YAHAN TO EK SE BADHKAR EK PANKTIAN HAIN, LAJAWAAB
यार जब कोई पुराना मिल गया
मुसकराने का बहाना मिल गया
नेक बेटा देख कर बोला पिता
मुझको तो मेरा खज़ाना मिल गया
धूप अब कैसे जलायेगी मुझे
पेड़ इक मुझको सयाना मिल गया
YE TO JAAN NIKAAL LE GAIN.
सही फरमाया आपने..........
ग़ज़ल का एक एक शे'र काबिले-दाद है
दोस्त मिल जाये तो वाकई ज़माना मिल जाता है
अभिनन्दन !
यार जब कोई पुराना मिल गया
मुसकराने का बहाना मिल गया
नेक बेटा देख कर बोला पिता
मुझको तो मेरा खज़ाना मिल गया
हर शे'र लाजवाब!!लेकिन यह तो मत पूछिए, याद रहने के लिए ही है.
यार जब कोई पुराना मिल गया
मुसकराने का बहाना मिल गया
waah
नेक बेटा देख कर बोला पिता
मुझको तो मेरा खज़ाना मिल गया
ye kamaal ka sher kaha hai aapne
har pita ke man ki baat
धूप अब कैसे जलायेगी मुझे
पेड़ इक मुझको सयाना मिल गया
kya baat hai kamaal
मुस्कराकर तुमने देखा जब मुझे
इस ज़माने को फ़साना मिल गया
देख कर तेरे नयन को लग रहा
एक बेघर को ठिकाना मिल गया
दोस्त सच्चा मिल गया पंकज अगर
मान लो उसको ज़माना मिल गया
bahut khoobsurat gazal
aabhaar sabhi kaa... khoon barh jata hai, jab achchhe-samajhadaar log aareef karate hai, to. dhanyvaad.....
salil pankaj mile jab bhee ek sang.
safar shabdon ka suhana mil gaya.
vaah salil ji, aap ka zavab nahi...salil ke sang hi pankaj ka bhala ho sakata hai...
हर शे'र लाजवाब!
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