गीत / सागर पास बुलाए
>> Sunday, January 17, 2010
मारीशस जाने का सौभाग्य जिनको मिला है, उन्होंने वहां के सागर को भी देखा होगा.उसका नीलाभ एवं पारदर्शी पानी देख कर मन मुग्ध हो जाता है. मुझे मारीशस जाने को मौका मिला था. समकालीन साहित्य सम्मलेन का अधिवेशन वहां आयोजित किया गया था.हम लोग सागर तट पर ही स्थित एक होटल में ठहरे थे, और प्रतिदिन सागर का दीदार करते रहे. उसके पास जाते थे. उसमे उतरते थे. सागर के पानी से खेलते थे. सागर हमें बार-बार अपने पास बुलाता था. वैसे सागर कहीं का भी हो, मारीशस का, थाईलैंड का, पुरी का, मुंबई का, कहीं का भी हो, उसमे सम्मोहन होता है. उसकी भव्यता हमे प्रेरित करती है कि उसके निकट जाएँ, बैठे, बतियाएँ. बहरहाल, सागर को देख कर मान में जो हलचल हुई थी, वह एक गीत के रूप में उसी वक़्त आकार ले चुकी थी. अचानक वह गीत कागजों के कबाडखाने में पडा मिल गया. इसके पहले कि यह कागज़ भी कहीं गुम हो जाये, मैंने सोचा, इसे लोकार्पित कर दिया जाये. सो, सुधी लेखक-पाठकों के लिए प्रस्तुत है.
गीत
सागर पास बुलाए, लहरें-
करती हैं वंदन.
कर लूं इनके प्रेम-भाव का,
मैं भी अभिनन्दन..
जाने कैसे मन की बतियाँ,
पढ़ती हर इक लहर.
ऐसा अद्भुत मिलन लगे है,
जाये काल ठहर.
लौटे जब-जब पाँव, बरहनी
करती है क्रन्दन.
नाच रही है कोई उर्वशी,
उठा प्रेम का ज्वार.
दूर न जाओ मेरे प्रीतम,
अभी अधूरा प्यार.
चन्द्रकिरण मनुहार करे है
टूटे हर बंधन.
क्षणभंगुर जीवन है जिसमे,
कोई गीत नही.
वह भी कैसा अंतस जिसका.
अपना मीत नहीं.
बान्चूं पाती चलो लहर की,
निरखूँ स्पंदन..
सागर पास बुलाए, लहरें-
करती हैं वंदन.
कर लूं इनके प्रेम-भाव का,
मैं भी अभिनन्दन..
5 टिप्पणियाँ:
behatareen.
क्षणभंगुर जीवन है जिसमे,
कोई गीत नही.
वह भी कैसा अंतस जिसका.
अपना मीत नहीं.
बहुत ही कोमल शब्दों से सजी है आपका यह गीत !!
क्षणभंगुर जीवन है जिसमे,
कोई गीत नही.
वह भी कैसा अंतस जिसका.
अपना मीत नहीं.
बान्चूं पाती चलो लहर की,
निरखूँ स्पंदन..
bahut achcha geet Pankaj ji
lahron ke beech is bhavna ka janam kavi man ke liye nishchit tha
aisa morma vatavaran ho aur kalam n chale aisa bhi kabhi hota hai
saras geet.
अच्छा लगा ।
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