''सद्भावना दर्पण'

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कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.

>> Monday, January 25, 2010

जब तक जन-गण-मन के भीतर दुःख की बदली छाई है,
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.
 

संविधान की बातें अच्छी पर कागज़ पर नारे हैं,
जिनको हमने दिल्ली सौपी, सपनों के हत्यारे हैं.

लोकतंत्र है गैया जिसके सम्मुख खडा कसाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.
 

लोकतंत्र में प्रतिरोधों को, रोज यहाँ कुचला जाता,
फूलो को खिलने से पहले, हाय-हाय मसला जाता.
लाठी-गोली के बल पर गर देश चले दुखदाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भाई मेरे बधाई है.

झूठ बोलता हर इक नेता, कहने को बस अपना है.

रोटी, कपड़ा और मकां भी, अब तक जैसे सपना है.
मन मसोस कर जीते है सब, कमरतोड़ महंगाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भाई मेरे बधाई है.

अंगरेजों के कानूनों को, हमने क्यों स्वीकार किया,
मतलब इसका तानाशाही को हमने भी प्यार दिया.
चेहरे बदले फितरत तो बस अंगरेजों-सी पाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.
 

सच कहने पर डंडे मिलते, चापलूस विज्ञापित है ,
नैतिकता, हिंसा बेचारी सदियों से बस शापित है.
अब तो जैसे सुख देती-सी लगती पीर पराई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.

देह तरक्की करती जाती, मन लेकिन बीमार हुआ,

नंगापन भी नए दौर में, देखो अंगीकार हुआ.
पतन कहूं या पश्चिम की यह बदसूरत परछाई है
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.
 

धनी और निर्धन की अब तो,अलग-अलग शालाएं हैं, 
इसीलिए तो किसम-किसम की, खड़ी हुई विपदाएँ है,
समता-ममता का हर नारा, झूठा पडा दिखाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.

वक्त आ गया अब तो हम-सब मिल कर करे विचार यहाँ, 
कैसा देश बनाएंगे हम, कैसा हो किरदार यहाँ.
अभी तो ख़ून के आंसूं रोती, ये पागल सच्चाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.

मिल-जुल कर हम इस भारत को, नये शिखर तक ले जाएँ,

सच्चे मन से राष्ट्रप्रेम के, गीत सदा हम दोहराएँ.
धर्म, जाति, भाषा की अब तक दिखती यहाँ लड़ाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.

एक नए भारत के पीछे, हम अपनी ताकत झोंकें,

जो भी काम देश हित में हो, उसे कभी ना हम रोकें.
प्रतिभाओं का आदर हो तो, वही देश सुखदाई है.
हो ऐसा गणतंत्र तो उसको लख-लख अरे बधाई है.
 
लेकिन............
जब तक जन-गण-मन के भीतर, दुःख की बदली छाई है,

कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.

8 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा January 25, 2010 at 10:02 PM  

गिरीश भैया-
फ़िर भी एक बार कह दो-बधाई है,
बस कुछ दिन और होली आई है,
एक दिन कोई बुरा नही मानेगा,
होली पर सब तरफ़ समताई है :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen January 25, 2010 at 10:36 PM  

बिल्कुल उचित कह रहे हैं. अंग्रेज चले गये लेकिन उनकी गुलाम बनाने की परम्परा हमारे काले अंग्रेजों ने अपना ली. अगर अपनाना ही था तो उनके जैसी शिक्षा, उनका अनुशासन, उनका अपने देश के लिये प्रेम, उनके अपने नियम कानून लागू करने की परम्परा को अपनाया जाता.

दिगम्बर नासवा January 26, 2010 at 12:01 AM  

जब तक जन-गण-मन के भीतर, दुःख की बदली छाई है,
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है....

वाजिब है आपका चिंतन ......... आज जो देश के हालात हैं उनमे तो बस यही कहा जा सकता है जो आपने इस रचना में कहा .............
आपको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई .......

Yogesh Verma Swapn January 26, 2010 at 5:31 AM  

aapki is kavita ke bheetar saari chhipi sachchai hai
sambhal jayen ab desh ke neta, rashtra ki tabhi bhalaai hai

badhai hai badhai hai badhai hai badhaai hai badhaai hai.

कडुवासच January 26, 2010 at 8:18 AM  

धर्म, जाति, भाषा की अब तक दिखती यहाँ लड़ाई है.
कैसे कह दूं गणतंत्र की, भैया मेरे बधाई है.
..... प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना !!!

Barun Sakhajee Shrivastav January 26, 2010 at 9:38 AM  

बहुत उम्दा वैसे भी गणतंत्र कहा "गन"तंत्र है।....लेकिन आपको बधाई.........एक अच्छी प्रस्तुति की।।।।।।

दिव्य नर्मदा divya narmada January 30, 2010 at 1:23 AM  

achchha prayas.

Anonymous July 14, 2010 at 10:16 AM  

अरे वाह रोचक है

सुनिए गिरीश पंकज को

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