महावीर वचनामृत-४
>> Friday, January 29, 2010
महावीर जी के वचनों को दोहे कि शक्ल में रूपान्तरित करने का प्रयास, लगता है, सुधीजन को उतना रास नहीं आ रहा है. इसीलिये वैसी प्रतिक्रिया भी नहीं हो रही, जैसी होनी चाहिए. खैर मै इससे विचलित नहीं हूँ. मेरा काम है लिखना. पहले भी विचलित नहीं हुआ, अब क्या होऊंगा. मेरे ये वचनामृत प्रिंट में भी आयेंगे. पुस्तक रूप में. तब सामान्य जन तकभी पहुंचेंगे. ब्लॉग तक अभी आम जन पहुंचे ही कहाँ है. बहरहाल कुछ लोग तो पढ़ ही रहे है. बात निकली है, तो फिर दूर तलक जायेगी ही. प्रस्तुत है चौथी कड़ी-
(२६)शीलवान गंभीर जो, रहे क्रोध से दूर।
सत्यशील ज्ञानी वही, प्रियजन से भरपूर।।
(27)
उत्तमजन हैं फूल-से, जिनमें सदा सुवास।
दुर्गुण के पतझार में, ये लगते मधुमास।।
(28)
हो स्वर्ण या लौह की, है तो वह जंजीर।
पड़ो न इनके फेर में, हरो जगत की पीर।।
(29)
भले विचारों से बने, मानव की तकदीर।
नेक राह जो भी चले, वह पंडित, वह पीर।।
(30)
समता औ संतोष से, लालच को जो धोय।
वही हृदय निर्मल बने, प्रतिदिन उज्ज्वल होय।।
(31)
पंच इंद्रियों को करे, जो बस में दिन-रात।
वह जिनेंद्र हो कर बने, पृथ्वी की सौगात।।
(32)
वध करता जो जीव का, वह हिंसक इनसान।
लाख इबादत भी करे, जीवन नरक समान।।
(33)
नारी से जो दूर है, जिसमें नेक विचार।
समझो होता है वही, भवसागर के पार।।
(34)
निर्भय औ निर्वैर हो, तब जीवन का सार।
हिंसा से जो दूर है, करे उसे जग प्यार।।
(35)
तन-मन दोनों मैं नहीं, यह तो कोई और।
मूरख इतराए मगर, ज्ञानी करते गौर।
तन-मन दोनों मैं नहीं, यह तो कोई और।
मूरख इतराए मगर, ज्ञानी करते गौर।
4 टिप्पणियाँ:
हल्का-फुल्का यदि लिखे, पात्र मिलें भरपूर.
लिखिए यदि गंभीर तो, पात्र न मिलें हुज़ूर..
अपना भी अनुभव यही, मन-रंजन की चाह.
चिट्ठाकारों-मन पली, मत करिए परवाह..
सार्थक लिखने से मिले, निज मन को संतोष.
औ' समृद्ध हो भारती माँ, का शारद कोष..
....prabhaavashaalee abhivyakti !!!
Waah !!! bahut hi saarthak aur sundar sadprayaas....
Inhe yadi vyakti jeevan me vastavik roop me aatmsaat kar vyavhaar me le aaye,to sachmuch bhavsagar se paar pane me koi awrodh na bachega...
shyamkori aur ranjana ji ka aabhar. aasalil ji...aapki baat hi nirali hai.
saty likha hai aapne,
ab hai ulti reet.
achche haare ab yahaan,
luchcho ki ho jeet.
aapka sujhav hausala barhata hai. dhanyvaad.
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