महांवीर वचनामृत-५
>> Monday, February 1, 2010
(३६)
दान-धर्म, पूजा अगर, स्वारथ में जो होय।
उसे पुण्य न मिल सके, उल्टे वैभव खोय।।
(37)
बिन चरित्र जो ज्ञान है, तप जो संयमहीन।
व्यर्थ इसे बस जानिए, मनुज बड़ा वह दीन।।
(38)
जीवन में जो पा गया, इक दिन सम्यक-ज्ञान।
मोक्ष उसे ही मिल सका, कहते साधु-सुजान।।
(39)
मौन रहे ज्ञानी सदा, मूरख अति वाचाल।
योगी स्वर्ग सिधारता, भोगी हो बदहाल।।
(40)
सुई धागे में हो अगर, कभी नहीं खो पाय।
ज्ञानयुक्त हर जीव भी, भवसागर तर जाय।।
(41)
दूध और जल की तरह, सब धर्मों का साथ।
नहीं अलग कोई यहाँ, ज्ञानी समझें बात।।
(42)
वाह-वाह खुद की करे, दे सुजनों का दोष।
गाँठ बाँध ले बैर की, पाय कभी ना तोष।।
(४३)
हरदम मीठे बोल हों, और क्षमा का भाव।
जिनमें ये गुण देखिए, उनसे करें लगाव।
(44)
जो सुख-दु:ख निरपेक्ष हैं, हित-अनहित से दूर।
वही श्रमण सच्चा सुनो, जीव सही में शूर।।
(45)
मोक्ष-मार्ग पर चल पथिक, रहे उसी का ध्यान।
कर विहार मन से जरा, होय तेरा कल्यान।।
(37)
बिन चरित्र जो ज्ञान है, तप जो संयमहीन।
व्यर्थ इसे बस जानिए, मनुज बड़ा वह दीन।।
(38)
जीवन में जो पा गया, इक दिन सम्यक-ज्ञान।
मोक्ष उसे ही मिल सका, कहते साधु-सुजान।।
(39)
मौन रहे ज्ञानी सदा, मूरख अति वाचाल।
योगी स्वर्ग सिधारता, भोगी हो बदहाल।।
(40)
सुई धागे में हो अगर, कभी नहीं खो पाय।
ज्ञानयुक्त हर जीव भी, भवसागर तर जाय।।
(41)
दूध और जल की तरह, सब धर्मों का साथ।
नहीं अलग कोई यहाँ, ज्ञानी समझें बात।।
(42)
वाह-वाह खुद की करे, दे सुजनों का दोष।
गाँठ बाँध ले बैर की, पाय कभी ना तोष।।
(४३)
हरदम मीठे बोल हों, और क्षमा का भाव।
जिनमें ये गुण देखिए, उनसे करें लगाव।
(44)
जो सुख-दु:ख निरपेक्ष हैं, हित-अनहित से दूर।
वही श्रमण सच्चा सुनो, जीव सही में शूर।।
(45)
मोक्ष-मार्ग पर चल पथिक, रहे उसी का ध्यान।
कर विहार मन से जरा, होय तेरा कल्यान।।
3 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर ज्ञान से परिपूर्ण बढ़िया दोहे..जिसे पढ़ना सार्थक रहा...धन्यवाद गिरीश जी इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए..
jeevan ki sachchi seekh dete dohe, bahut sunder prastuti. ananddayak.
....बेहद प्रभावशाली !!!!
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