''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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महांवीर वचनामृत-५

>> Monday, February 1, 2010

(३६)
दान-धर्म, पूजा अगर, स्वारथ में जो होय।
उसे पुण्य न मिल सके, उल्टे वैभव खोय।।

(37)
बिन चरित्र जो ज्ञान है, तप जो संयमहीन।
व्यर्थ इसे बस जानिए, मनुज बड़ा वह दीन।।

(38)
जीवन में जो पा गया, इक दिन सम्यक-ज्ञान।
मोक्ष उसे ही मिल सका, कहते साधु-सुजान।।

(39)
मौन रहे ज्ञानी सदा, मूरख अति वाचाल।
योगी स्वर्ग सिधारता, भोगी हो बदहाल।।

(40)
सुई धागे में हो अगर, कभी नहीं खो पाय।
ज्ञानयुक्त हर जीव भी, भवसागर तर जाय।।

(41)
दूध और जल की तरह, सब धर्मों का साथ।
नहीं अलग कोई यहाँ, ज्ञानी समझें बात।।

(42)
वाह-वाह खुद की करे, दे सुजनों का दोष।
गाँठ बाँध ले बैर की, पाय कभी ना तोष।।

(४३)

हरदम मीठे बोल हों, और क्षमा का भाव।
जिनमें ये गुण देखिए, उनसे करें लगाव।
(44)
जो सुख-दु:ख निरपेक्ष हैं, हित-अनहित से दूर।
वही श्रमण सच्चा सुनो, जीव सही में शूर।।

(45)
मोक्ष-मार्ग पर चल पथिक, रहे उसी का ध्यान।
कर विहार मन से जरा, होय तेरा कल्यान।।

3 टिप्पणियाँ:

विनोद कुमार पांडेय February 1, 2010 at 8:50 AM  

बहुत सुंदर ज्ञान से परिपूर्ण बढ़िया दोहे..जिसे पढ़ना सार्थक रहा...धन्यवाद गिरीश जी इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए..

Yogesh Verma Swapn February 1, 2010 at 9:04 AM  

jeevan ki sachchi seekh dete dohe, bahut sunder prastuti. ananddayak.

कडुवासच February 1, 2010 at 6:35 PM  

....बेहद प्रभावशाली !!!!

सुनिए गिरीश पंकज को

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