महावीर वचनामृत-६
>> Tuesday, February 2, 2010
(46)
हो जैसा अभ्यास तो, वैसा बनता भाव।
नेक जनों का संग हो,तो कैसा पछताव।।
(47)
जिसे मृत्यु का भय नहीं, वह दुर्लभ इनसान।
भोगी ही भयगस्त है, करते संत बखान।।
(48)
ज्ञान-शरण जो भी गया, उसका बढ़ा विवेक।
नैतिक, तप, संयम सभी, पा लाखों में एक।।
(49)
मेरा मत केवल सही, बाकी सब बेकार।
वे निंदा के पात्र हैं, जिनके तुच्छ विचार।।
(50)
सबकी अपनी सोच है, सबके अपने कौल।
नीर-झीर करते रहो, तुम बातों को तौल।।
(51)
तरह-तरह के पंथ हैं, सबके अपने कथ्य।
उसने ही नव-पथ गढ़ा, जिसने पाया सत्य।।
(52)
अगर अधर्मी जीव है, कभी नहीं सुख पाय।
बिन पानी के कुंड की, कैसे प्यास बुझाय।।
नेक जनों का संग हो,तो कैसा पछताव।।
(47)
जिसे मृत्यु का भय नहीं, वह दुर्लभ इनसान।
भोगी ही भयगस्त है, करते संत बखान।।
(48)
ज्ञान-शरण जो भी गया, उसका बढ़ा विवेक।
नैतिक, तप, संयम सभी, पा लाखों में एक।।
(49)
मेरा मत केवल सही, बाकी सब बेकार।
वे निंदा के पात्र हैं, जिनके तुच्छ विचार।।
(50)
सबकी अपनी सोच है, सबके अपने कौल।
नीर-झीर करते रहो, तुम बातों को तौल।।
(51)
तरह-तरह के पंथ हैं, सबके अपने कथ्य।
उसने ही नव-पथ गढ़ा, जिसने पाया सत्य।।
(52)
अगर अधर्मी जीव है, कभी नहीं सुख पाय।
बिन पानी के कुंड की, कैसे प्यास बुझाय।।
(53)
तनिक रहे अभिमान तो, नहीं मिलेगा बोध।
विनय जगे तो उस घड़ी, नष्ट काम अरु क्रोध।।
(54)
इक दिन सबका अंत है, ज्ञानी, राजा, रंक।
जो मानव हित में मरे, मिले मोक्ष नि:शंक।।
(55)
सबकी जो निंदा करे, सदा रुष्ट,भयभीत।
वह मनुष्य कमजोर है, कौन करेगा प्रीत।।
3 टिप्पणियाँ:
आभार आपका.
anmol , anupam , ati sunder.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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