सत्ता और व्यवस्था में बैठे लोग........
>> Wednesday, February 3, 2010
जिस तेजी के साथ देश में मंहगाई बढ़ रही है, उसे देख कर अब दहशत होने लगी है. आने वाले कल की तस्वीर आखिर होगी कैसी? क्या यह भारत देश आतंरिक समस्याओं से ग्रस्त होने कि दिशा में बढ़ रहा है? महंगाई के कारण मध्य और निम्न आय वर्ग के लोग जब उदरपूर्ति के लिए भी तरसेंगे तब जाहिर है वे गलत रस्ते की ओर मुड़ेंगे. हिंसा, लूटपाट का सहारा लेंगे. केंद्र में जैसी सरकार चल रही है, उसे देख कर हैरत होती है. एक दौर था जब सरकार सरकार की तरह लगती थी. सब्सीडी देकर यह कोशिश की जाती थी कि आम नागरिको को राहत मिले. फिर चाहे वह खाद्यान्न का मामला हो, या पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों का. लेकिन अब तो ऐसा लगता है, कोई संवेदना ही नहीं बची. आज भी अगर हमारे नेताओ और अफसरों के वेतन में, सुविधाओ में कटौती कर दी जाये, तो देश खुशहाल हो सकता है. लेकिन यह संभव नहीं क्योकि तंत्र तो उनके ही पास है.पता नहीं कब ऐसा भारत हम रच सकेंगे, जिसमे सत्ता और व्यवस्था में बैठे लोग करुणा से, ईमानदारी से भरे हो. यह मेरा दर्द तो है ही आम आदमी और भी दर्द है.
बहरहाल पेश है एक ग़ज़ल..........
बहरे नहीं सुनेगे मेरी बात क्या लिखूं?
कुचले है रोज़ मेरे ज़ज्बात क्या लिखूं?
कैसे हुए है देश के हालात क्या लिखूं?
अपने ही दे रहे हमें घात क्या लिखूं?
अपना समझ कर हमने सिरमौर बनाया
हमको ही मारते है अब लात क्या लिखूं?
बाजी तो हमारी थी मगर कैसे हो गया.
गफलत में हुई अपनी ये मात क्या लिखूं?
हमने ही पिलाया था सापों को दूध बस..
अब डस रहे है मेरे ही हाथ क्या लिखू?
पिछले बरस सूखे से मरे और इस दफे.
शहरों में हो गया है हिमपात क्या लिखूं?
गंभीर बात हो तो कोई पूछता नही
फूहड़ ही पा रहे है इनामात क्या लिखूं?
शहरों में हो गया है हिमपात क्या लिखूं?
गंभीर बात हो तो कोई पूछता नही
फूहड़ ही पा रहे है इनामात क्या लिखूं?
6 टिप्पणियाँ:
अपना समझ कर हमने सिरमौर बनाया
हमको ही मारते है अब लात क्या लिखूं?
हमने ही पिलाया था सापों को दूध बस..
अब डस रहे है मेरे ही हाथ क्या लिखू?
बहुत ख़ूबसूरत और लाजबाब गजल पंकज जी !
बाजी तो हमारी थी मगर कैसे हो गया.
गफलत में हुई अपनी ये मात क्या लिखूं?
बहुत ख़ूबसूरत .
वर्तमान में राजनीति और समाज में व्याप्त त्रासद दुरावस्था को बखूबी उकेरा है आपने अपने इस सुन्दर प्रभावशाली रचना में...क्या कहा जाय,जब पालनहार ही संहारक बनने की होड़ में लग जाएँ,तो फिर कोई fariyaad kisse kare...
behatareen/lajawaab sabhi pankatian.
गंभीर बात हो तो कोई पूछता नही
फूहड़ ही पा रहे है इनामात क्या लिखूं?
... बहुत सुन्दर, प्रभावशाली !!
achchha prayaas hai !
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