''सद्भावना दर्पण'

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महावीर वचनामृत-८

>> Sunday, February 14, 2010

(66)
यह तन इक नौका लघु, नाविक इसका जीव।
पार करे जीवन-जलधि, खारा पानी पीव।।

(67)
वीर मरे, कायर मरे, अंत सभी का होय।
लेकिन जो हँसकर मरे, वीर जानिए सोय।।

(68)
ध्यान करे जो ध्यान से, चित्त होय अनुकूल।
जन्म-मरण के  बंध को, प्राणी जाए भूल।।

(69)
चले आत्मा मोक्ष-पथ, करो उसी का ध्यान।
कर विहार ध्यानस्थ हो, तभी आत्म-कल्यान।।

(70)
कटु वचन जो बोलते, उन्हें क्षमा का दान।
मधुर-वचन बोलें सदा, यह सद्गुण की खान।।

(71)
सेनापति मर जाय तो, सेना का हो हा्रस।
मोह नष्ट हो जाय तो, दुष्कर्मों का नाश।।

(72)
दु:ख-सुख-पीड़ा से परे, जिसने किया प्रयाण।
क्षुधा गई, तृष्णा मिटी, वही सत्य निर्वाण।।

(73)
ज्ञान-शरण जो भी गया, तप-संयम के साथ।
मुक्ति उसे मिल जायगी, महावीर हैं नाथ।।

(74)
संत-वचन सुन लीजिए, हो जीवन की जय।
चले सुपथ पर जीव तब, नहीं मृत्यु का भय।।

(75)
जीवों की रक्षा करे, वही जैन है नेक।

जो ऐसा ना कर सके, विकसित नहीं विवेक।।
..........................
लेकिन मित्रो, इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है, कि मुंबई के देवनार में एशिया का सबसे बड़ा कसाईखाना एक जैन महाशय ही चला रहे है. जहाँ रोज हजारो बेबस पशु कटते है. और हमारी गौ माताएं...? उनकी संख्या तो पूछिए मत.. पता नहीं कब उनके मन में महावीर भगवान् की करुणा का उदय होगा? हम सब को मिलजुल कर इस अ-जैन के विरुद्ध एक वातावरण बनाने की कोशिश की जानी चाहिए.

2 टिप्पणियाँ:

girish pankaj February 21, 2010 at 1:26 AM  

दोहे बहुत अच्छे लगे.

सादर

समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/

संजय भास्‍कर March 1, 2010 at 6:16 AM  

dohe bahut hi ache lage...

सुनिए गिरीश पंकज को

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