''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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महावीर वचनामृत-९

>> Sunday, February 21, 2010


बहुत दिनों के बाद फिर हाज़िर हूँ. आपका स्वागत है.... कुछ् तकनीकी दिक्कतों के कारण मेरे प्रियजन अपनी टिप्पणियाँ नहीं दे पा रहे थे. उम्मीद है, अब समस्या का समाधान हो गया हो.
(77)
नर-नारी में भेद क्या, सब हैं जीव समान।
साथ-साथ चलते रहें, होगा नव निर्मान।।

(78)
नारी रहे समूह में, ब्रह्मचर्य बच जाय।
साधु अकेला ना रहे, दो हों तो सुखदाय।।

(79)
जो जीता वह जैन है, हिंसा से जो दूर।
मारे से मरना भला, जो सोचे वह शूर।।
(80)
अधर्म और अन्याय का, मत करना आहार।
नपा-तुला भोजन रहे, सस्नेह स्वीकार।।

(81)
सत्यग्राही जीवन बने, परिग्रहों से मुक्त।
मंगल ही मंगल रहे, जीवन सुख से युक्त।।

(82)
अर्हत, सिद्धों औ गुरू, साधू को परनाम।
पाप विनाशक ये सभी, हैं सच्चे सुख-धाम।।

(83)
वीतराग हे जगत गुरू, दे मुझको आशीष।
विरक्त रहूँ इस जगत से, पाऊँ तब जगदीश।।

(84)
कामजनित दुःख भी लगे, जैसे सुख की खान।
खुजली पाछे दुःख मिले, छोड़े ना इनसान।।

(85)
झूठा हरदम हो दुःखी, भयग्रस्त दिन-रात।
व्याकुल रहता हर घड़ी, खुल ना जाए बात।।

(86)
कुटिल वचन जो ना कहे, करे न कड़वे काज।
वही धार्मिक है सही, पूजे उसे समाज।।

5 टिप्पणियाँ:

वन्दना अवस्थी दुबे February 21, 2010 at 4:46 AM  

लम्बे अन्तराल के बाद स्वागत है. सुन्दर वचनामृत.

Yogesh Verma Swapn February 21, 2010 at 5:03 AM  

वीतराग हे जगत गुरू, दे मुझको आशीष।
विरक्त रहूँ इस जगत से, पाऊँ तब जगदीश।।

ye to sabhi sarva kalik dohe hain. aapki lekhni ko salaam.

समयचक्र February 21, 2010 at 5:35 AM  

नर-नारी में भेद क्या, सब हैं जीव समान ।
साथ-साथ चलते रहें, होगा नव निर्मान ।।
बहुत सुन्दर भाव गिरिशजी ...

कडुवासच February 21, 2010 at 8:38 AM  

.... ऊर्जा मिल रही है !!

संजय भास्‍कर March 1, 2010 at 6:15 AM  

बहुत खूब, लाजबाब !

सुनिए गिरीश पंकज को

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