दस फागुनी दोहे
>> Monday, February 22, 2010
होली पास आ रही है. बहुतो पर तो रंग अभी से ही चढ़ रहा है. पता नहीं, होली के दिन उनकी गत क्या होगी..? होली एक नशे की तरह आती है और लोग शरीर और मन दोनों के कपडे उतारने में लग जाते है. गालिया देना, कीचड उछालना, किसी की निंदा करना...बस यही रह गया है होली का अर्थ? सकल-कर्म कर लो और अंत में कह दो-''बुरा न मानो होली है''. गोया होली इज्ज़त उतारने का बहाना है. होली के दिन आदमी के असली चेहरे को भी पढ़ा जा सकता है. साल भर बेचारा वर्जनाओ में रहता है. नकलीपन को ओढ़े रहता है. होली में वह अपनी औकात पर आता है. है तरह से नंगा हो जाता है. तो ऐसा कुछ बन गया है यह त्यौहार. मै रचनाकार हूँ, इसलिए वैसा कुछ नहीं कर सकता. मुझे लगता है, कि रचनाकार समाज को दिशा देने का करता है, वही जब कपडे उतारने लगेगा तो कपडे पहनाने का काम कौन करेगा...? कोई तो बचा रहे. खैर...''थोथी तारीफ'' के 'निकृष्ट-कर्म' से मुक्त हो कर अब होली का सात्विक-मूड बनाया जाये, सो, प्रस्तुत है दस दोहे. होली के रंग में रंगे. होली की एडवांस में बधाई, रंग-गुलाल, (अरे-अरे....) भांग और मिठाइयाँ भी...
दस फागुनी दोहे
(१)
रंग मिले आकाश से, पूरी हो गई आस,
कहा पवन ने अब लगा, सफल हुआ मधुमास.
(२)
इन्द्रधनुष-सा खिंच गया, चित्र बना अभिराम,
धरती नाची इस तरह, राधा संग घनश्याम.
(३)
फाग दिवस है प्रेम का, भूलो सारे राग,
कलुष सभी डालो यहाँ, इसीलिये है आग..
(४)
रंग चढ़ा कुछ इस तरह, गाल हो गए लाल,
राधा बोली हे सखी, छूटे न इस साल.
(५)
पिचकारी के रंग में, भरा प्रेम का नीर,
बूँद-बूँद हरने लगी, इस धरती की पीर.
(६)
फागुन आया है सखी, 'वो' भी आयें पास,
बिन उनके तो रंग का, होत न कुछ अहसास.
(७)
होली का मतलब मिलन, रंग-अर्थ है प्यार.
मिले सभी आ कर तभी, सतरंगी संसार.
(८)
रंग चढ़ा ऐसा यहाँ, रही नहीं पहचान.
कहाँ रहा कोई इधर, अब गरीब-धनवान.
(९)
भंग-मिठाई संग हो, तो फागुन का रंग,
बिन इसके दुनिया लगे, हो जैसे बदरंग.
(१०)
रहे साल भर यूं बने, फागुन के दिन चार,
रोज रंग के संग हो, यह सुन्दर संसार...
कहा पवन ने अब लगा, सफल हुआ मधुमास.
(२)
इन्द्रधनुष-सा खिंच गया, चित्र बना अभिराम,
धरती नाची इस तरह, राधा संग घनश्याम.
(३)
फाग दिवस है प्रेम का, भूलो सारे राग,
कलुष सभी डालो यहाँ, इसीलिये है आग..
(४)
रंग चढ़ा कुछ इस तरह, गाल हो गए लाल,
राधा बोली हे सखी, छूटे न इस साल.
(५)
पिचकारी के रंग में, भरा प्रेम का नीर,
बूँद-बूँद हरने लगी, इस धरती की पीर.
(६)
फागुन आया है सखी, 'वो' भी आयें पास,
बिन उनके तो रंग का, होत न कुछ अहसास.
(७)
होली का मतलब मिलन, रंग-अर्थ है प्यार.
मिले सभी आ कर तभी, सतरंगी संसार.
(८)
रंग चढ़ा ऐसा यहाँ, रही नहीं पहचान.
कहाँ रहा कोई इधर, अब गरीब-धनवान.
(९)
भंग-मिठाई संग हो, तो फागुन का रंग,
बिन इसके दुनिया लगे, हो जैसे बदरंग.
(१०)
रहे साल भर यूं बने, फागुन के दिन चार,
रोज रंग के संग हो, यह सुन्दर संसार...
9 टिप्पणियाँ:
सतरंगी सुन्दर संसार ! वाह मज़ा आ गया होली का रंग ही गज़ब है!आपको ढेरों बधाई !!
behatareen , holi ke rang men range faguni dohe. badhaai.
लाजवाब दोहे..एक से बढ़ कर एक...फागुन का आनंद दिला दिया आपने...
नीरज
sbhee behd khoobsoorat,aabhar.
Holi ke rang mein abhi se bheeg gaye
sabhi dohe ek se badkar ek
हर दोहा एक से बढ़ कर एक!
बधाई!
वाह जी, बहुत बेहतरीन फागुनी दोहे...रंग बरसने लगा!!
बहुत बढ़िया दोहे हैं बधाई।
एक से बढ़ कर एक!
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