बुरा न मानो होली है
>> Wednesday, February 24, 2010
होली तो अब आ ही रही है. पिछले दिनों मैंने कुछ फागुनी दोहे लिखे थे, आज एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ. ''बुरा न मानो होली है''. होलिका में बुराइयों को डाल दिया जाता है. इस गीत में मैंने भी समाज के विभिन्न वर्ग में सक्रिय बुरी प्रवृत्तियों को याद किया है. इसी विश्वास के साथ कि इस होली में इन लोगो की सारी बुराइयां नष्ट हो जायेंगी. तभी एक खुशहाल समाज स्थापित हो पायेगा. पता नहीं ऐसा कभी होगा कि नहीं. मैंने तो व्यंग्य-गीत लिख ही दिया है. अब यह जहाँ तक भी पहुंचे...
(और हाँ, रचनाओं को सुधीपाठको की सराहना मिल रही है, इससे उत्साह बढ़ा है. सबका आभार...)
व्यंग्य-गीत
बुरा न मानो होली है......
कपडे में है नेता लेकिन, हरकत से वह नंगा है,
इसके कारण शहर-गाँव में अकसर होता दंगा है.
इसने नफ़रत फैलाने की, बड़ी 'शॉप' इक खोली है.
बुरा न मानो होली है......
वर्दी में ये कौन खड़ा है, लगता कोई गुंडा है,
मुफ्तखोर कहते हैं इसको, खा-पी कर मुस्टंडा है.
रात में दारू पीता है यह, सुबह भंग की गोली है.
बुरा न मानो होली है......
ये लेखक है, अफसर भी है, अंत-शंट कुछ लिखता है,
छप जाती है पुस्तक-फुस्तक, माल धडाधड बिकता है.
शातिर है भीतर से लेकिन, चिकनी-चुपड़ी बोली है.
बुरा न मानो होली है......
हीरोइन है सुन्दर लेकिन, रोज़ सितम यह ढाती है,
खुला-खुला जीवन है इसका, ये मॉडर्न कहाती है.
कपड़ा खोज रहो हो तन पर? गायब इसकी चोली है.
बुरा न मानो होली है......
जेबें काटी हैं गरीब की, महल-दुमहला तान लिया,
दान-पुन्न थोड़ा-सा कर के, बहुत अधिक सम्मान लिया.
सेठों की खातिर नैतिकता, केवल हंसी-ठिठोली है.
बुरा न मानो होली है......
ये साधू-संन्यासी है, प्रवचन देने में माहिर है,
कितना इसने माल बंटोरा, अब तो ये जग-जाहिर है.
मन ही मन हंसता है पट्ठा, जनता कित्ती भोली है.
बुरा न मानो होली है......
फटे हुए परिधान यहाँ पर, अब फैशन कहलाते हैं,
जिसके तन पर कपडे कम हैं, वही सभ्य बन जाते हैं.
कंडोमी-कल्चर में घर से, केवल आँख-मिचौली है.
बुरा न मानो होली है......
रिश्ते सारे नष्ट हो गए, खून-खून से दूर हुआ,
बस पैसा ईमान बन गया, उफ़ ये तो नासूर हुआ.
बेईमानी हंसती है ससुरी, स्वारथ की मुंहबोली है.
बुरा न मानो होली है......
पद्मश्री कौवे ने पायी, कोयल रोती है चुपचाप,
कैसा है यह दौर यहाँ पर, खलनायक रहता है टॉप.
दुर्जन मालामाल सु-जन की, फटी हुई अब झोली है.
बुरा न मानो होली है......
बहुत हो गया काला-काला, अब सफ़ेद की बारी है,
रंग सुनहरा केवल चमके, इच्छा यही हमारी है.
झूठों का मुंह काला हो, सच्चे को अक्षत-रोली है.
बुरा न मानो होली है......
11 टिप्पणियाँ:
पद्मश्री कौवे ने पायी, कोयल रोती है चुपचाप,
कैसा है यह दौर यहाँ पर, खलनायक रहता है टॉप.
क्या भैया! मारा पापड़ वाले को।
पुस्पक विमान की सवारी जब तक कौवे करते रहेगें।
देखते रहना देश के हंस युं ही जार-जार रोते रहेंगे।
बुरा न मानो होली है।
Bahut satik tikhe kataksh ....kitu satya! bahut khub...Abhar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
पद्मश्री कौवे ने पायी, कोयल रोती है चुपचाप,
कैसा है यह दौर यहाँ पर, खलनायक रहता है टॉप.
दुर्जन मालामाल सु-जन की, फटी हुई अब झोली है.
बुरा न मानो होली है......
--हर छंद करारा झटका है..बहुत मस्त!!
पद्मश्री कौवे ने पायी, कोयल रोती है चुपचाप,
कैसा है यह दौर यहाँ पर, खलनायक रहता है टॉप.
wah girish ji , karara kataksh hai, holi ki mangal kaamnayen.
... बहुत ही सुन्दर गीत, शुरु से अंत तक एक-एक शब्द सच्चाई बयां कर रहा है, प्रभावशाली गीत के लिये बधाई .... होली पर्व की अग्रिम शुभकामनाएं !!!!
bahut sunder ............
krara vyangya hai, behad sunder ,sadhuwad aap ko.
वाह , पंकज जी बहुत ही सुन्दर और सटीक व्यंग है !! होली की अनेक शुभकामनाएं !!
कपडे में है नेता लेकिन, हरकत से वह नंगा है,
इसके कारण शहर-गाँव में अकसर होता दंगा है.
इसने नफ़रत फैलाने की, बड़ी 'शॉप' इक खोली है.
बुरा न मानो होली है......
Maza aa gaya!
वाह , पंकज जी बहुत ही सुन्दर और सटीक व्यंग है !! होली की अनेक शुभकामनाएं !!
बहुत सुन्दर रचना । आभार
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