''सद्भावना दर्पण'

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जननायक स्वर्गीय रामकुमार अग्रवाल जी को समर्पित

>> Sunday, April 4, 2010


रामकुमार अग्रवाल जी को बहुत से लोग शायद न जानते हो. श्री अग्रवाल रायगढ़ में रहते थे.पिछले दिनो उनका निधन हो गया वे.८३ वर्ष के थे. यह तो उनका सामान्य परिचय है. असली परिचय यह है कि समाजवादी सोच से संपृक्त जननायक श्री अग्रवाल रायगढ़ की अस्मिता के प्रतीक थे. सही मायने में जननायक थे. रायगढ़ सेठों की नगरी है.श्री अग्रवाल उस नगरी में रहते हुए भी कभी धन कमाने के फेर में नहीं पड़े. वे जनसेवा को समर्पित रहे अंतकाल तक. वे रायगढ़ से विधायक भी रहे. लेकिन सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद वे जनसमस्याओं को सुलझाने के लिए संघर्ष करते रहे.वयोवृद्ध होने के बावजूद जब कभी रायगढ़ के विकास को आहत पहुंचाने का कोई मसला सामने आया, या फिर रायगढ़ को प्रदूषित करने वाले कारखानों का सवाल आया, श्री अग्रवाल सबसे पहले सामने आये और विरोध करके बता दिया कि इस बूढ़ी काया में अभी भी दम बाकी है. श्री अग्रवाल जीवन भर लड़ाई लड़ते रहे.बिना उनके रायगढ़ में कोई भी बड़ा आन्दोलन सफल नहीं हो सका. उनके जाने के बाद अब रायगढ़ का क्या होगा, भगवान् ही जाने. क्योंकि फिलहाल ऐसा कोई नेता नज़र नहीं आता, जो श्री अग्रवाल की भरपाई कर सके. बहरहाल, श्री अग्रवाल के जाने के बाद मन में एक गीत उमड़ा. गीत में उनके अवदानो की चर्चा है. सुधी पाठक समझ सकेंगे कि आखिर कैसे थे जननायक रामकुमार जी अग्रवाल.
गीत
अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल,
अमर रहा है, अमर रहेगा, रायगढ़ का लाल।।

जहाँ कहीं अन्याय दिखा तो, किया सदा प्रतिकार,
लोकतंत्र की इक ताकत थे, सचमुच रामकुमार।
सत्ता पर टूटा करते थे, बनकर के वह काल ।
अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल।।

थे जवान तब अंगरेजों से लडऩी पड़ी लड़ाई,
आजादी के बाद यहाँ अपनों की बारी आई।
शोषण-अत्याचार जहाँ था, वहाँ गए हर हाल।।
अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल।।

स्वस्थ और सुंदर हो अंचल, शोषण का हो अंत,
यही लक्ष्य लेकर निकले थे सर्वोदय के संत।
किया आपने ऊँचा हरदम सबका ऊँचा भाल।।
अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल।।

नहीं रहे वो वीर-पुत्र पर याद हमेशा आएगी,
घोर तिमिर में संघर्षों की अकसर जोत जलाएगी।
रामकुमार इक नाम नहीं है, वो है एक मिसाल।
अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल।।

उठो, उठो धनवालों सीखो क्या होता बलिदान,
माटी का ऋण चुकता करना सबका फर्ज महान।
यही सिखाया जननायक ने, सचमुच थे 'अग्र'वाल।
अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल।।

उनके जैसा हुआ न दूजा, और न अब आएगा।
उनके अद्भुत क्रांति-कर्म को हर कोई गाएगा।
जन्मजात ही क्रांतिवीर थे, करते रहे कमाल।


अन्धकार में जले हमेशा, बन कर एक मशाल,
अमर रहा है, अमर रहेगा, रायगढ़ का लाल।।

2 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा April 4, 2010 at 10:58 PM  

माननीय रामकुमार जी का स्नेह
सौभाग्य से मुझे भी प्राप्त हुआ है
वे जीवन के अंतिम क्षणों तक
गरीब,मजलुमों, शोषण के विरुद्ध लड़ते रहे।
जिन्दल के कारखाने की अनियमितताओं
के विरुद्ध उनकी लड़ाई जारी रही।

उनके निधन से हमने एक सच्चा देशभक्त
खो दिया, यह एक अपुरणीय क्षति है।
मैं उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हुँ

आपने उन्हे काव्यात्मक श्रद्धांजलि दी है
आभार

संजय भास्‍कर April 5, 2010 at 12:24 AM  

मैं उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हुँ

सुनिए गिरीश पंकज को

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