एक मार्मिक अपील ललित शर्मा से...
>> Friday, April 9, 2010
मैं ये क्या देख-सुन रहा हूँ ललित..?
कई बार तुम मज़ाक करते हो, इसलिए समझ में नहीं आ रहा कि तुम इस बार मज़ाक कर रहे हो या गंभीर हो.. तुम्हारे जैसा जिंदादिल और भविष्य का प्रतिभाशाली ब्लागर अगर ब्लागिंग को अलविदा कह देगा तो यहाँ बचेगा ही क्या..? मै असहज हो गया हूँ यह पढ़ कर कि ललित शर्मा ने ब्लागिंग से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी है. यह दुखद खबर है और ब्लागिंग-जगत के लिए शुभ संकेत भी नहीं है. ऐसे वक्त में जब ब्लागिंग में कुछ ऐसे मसखरे लोग घुस आये हों, जिनमें प्रतिभा नहीं, जोड़तोड़ का हुनर हो, और जो अपनी आपराधिक भावनाओं के कारण समाज-बहिस्कृत-से हो, ऐसे लोगो को 'रिप्लेस' करने के लिए ललित शर्मा जैसे फ़ौजी की ही जरूरत है. लेकिन ललित खुद इतनी जल्दी टूट जाएगा, इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी. वैसे ब्लागजगत के कुछ टुच्चेपंन को मैंने भी महसूस किया. और मेरे मन में भी यही बात अकसर आती रही है, कि मुझे भी ब्लागिंग बंद कर देनी चाहिए. इस ब्लागिंग के कारण मेरे दो उपन्यास अब तक अधूरे पड़े है. अपनी सर्जनात्मकता का कुछ श्रेष्ठ देने की विनम्र कोशिशो के बाद कोई बेहतर प्रतिसाद मिला ही नहीं. वही जिनके पास विचारों का खासा अकाल है, उनके पास समर्थक-टिप्पणियों की भरमार है. ये कैसे लोग है जो असली और नकली सिक्के की पहचान नहीं करते. दुःख होना स्वाभाविक है. फिर भी मुझे संतोष है. यह सोच कर कि एक-दो लोग भी अगर मेरी रचनात्मकता से प्रभावित हो कर कुछ बेहतर सोचने-करने के मार्ग पर चलते है, तो लेखन सार्थक हो जाएगा. ललित के लेखन में हल्कापन नहीं रहा. उसकी कविता हो, संक्षिप्त विचार हो, सब के सब दमदार और जीवंत थे. ललित की ब्लाग-चर्चा हो. पान दूकान पर चर्चा हो, शिल्पकार हो, जितने भी ब्लाग है, सबके सब सामाजिक सरोकार से भरे हुए. ऐसे सक्रिय ब्लागर ने अगर ब्लागिंग से सन्यास लेने की घोषणा की है, तो ज़रूर कोई बड़ी बात हुई है. कुछ ऐसा हुआ होगा कि उसका दिल दुखा है. किसी ने उसके सम्मान को ठेस पहुंचाने की हरकत की है. ललित....तुम तो फ़ौजी हो, बहादुर हो... इतनी जल्दी निराश हो कर पीछे कदम हटा लोगे तो मेरे जैसे उन तमाम लोगों का क्या होगा, जो तुम्हारे कारण ही 'मैदानेब्लागिंग' में डटे हुए है. क्या वे भी पलायन कर जाएँ,..? बोलो..? इसलिए मेरा आग्रह है, मेरा क्या हजारों लोगो का आग्रह है कि तुम हिम्मत न हारो, मेरा शेर है
हो मुसीबत लाख पर यह ध्यान रखना तुम
मन को भीतर से बहुत बलवान रखना तुम
और भी
आपकी शुभकामनाएं साथ हैं
क्या हुआ गर कुछ बालाएं साथ हैं.
हारने कार्थ यह भी जानिए
जीत की संभावनाएं साथ हैं
इस अँधेरे को फतह कर लेंगे हम
रौशनी की कुछ कथाएं साथ हैं
तो....हिम्मत से काम लो, और लौट आओ. वरना मै भी असमय संन्यास ले लूँगा. तुम को लगे रहना चाहिए. जब बुरे लोग ब्लागिंग में घुस कर तथाकथित रूप से गुट बनाकर अपना कुत्सित खेल कर रहे हो, तब दुःख होना स्वाभाविक है. खोटे सिक्कों की यही तासीर होती है, कि वे अच्छे सिक्कों को चलन से बाहर करने में सफल हो जाते हैं. कहीं तुम्हारे साथ भी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ? अन्दर की कहानी या साजिश से मै नावाकिफ हूँ. बात जो भी हो, तुम हिम्मत न हारो. अपने ललित-विचारों से ब्लागिंग रूपी बाग़ को महकाते रहो. यही मेरी....हम सब की प्रार्थना है.
तुम्हारा भाई
गिरीश पंकज
20 टिप्पणियाँ:
ललित जी के द्वारा ब्लॉग्गिंग को छोड़ने का निर्णय लेने अपने आप में यही कहता है कि कुछ ना कुछ ऐसा ज़रूर हुआ है जिससे हमारे मित्र के मन को ठेस पहुंची है...ऐसा होना दुखद है...
ललित जी आप तो बहादुर हैं....आप ही अगर ऐसी कमजोरी भरी बातें करेंगे तो हम जैसों का क्या होगा?... ऐसे विचलित हो कर हम सब का साथ छोड़ने का आपका ये फैंसला कतई सही नहीं है...कृपया कर आप अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करें ....
गिरीश जी, आपकी-हमारी ये मार्मिक अपील ज़रूर रंग लाएगी और ऊपरवाले ने चाहा तो जल्द ही हम ललित जी को फिर अपने बीच यहीं पर ब्लॉग्गिंग करते हुए पाएंगे
तुम हिम्मत न हारो. अपने ललित-विचारों से ब्लागिंग रूपी बाग़ को महकाते रहो. यही मेरी....हम सब की प्रार्थना है.
यह प्रार्थना अवश्य रंग लाएगी .. ललित शर्मा जी ब्लॉगिंग में वापस लौट आएंगे !!
आपकी प्रार्थना में हमारा निवेदन भी शामिल मानें. ललित भाई को पुनर्विचार करना चाहिये.
मारा निवेदन भी शामिल मानें
कुछ ऐसा हुआ है जिससे ललित जी के मन को ठेस पहुंची है। मैं भी अचंभित हूँ। पृष्ठभूमि में जो कुछ हुआ, उनकी जगह मैं होता तो शायद यही निर्णय लेता।
फिर भी एक आग्रह है उनसे कि विशिष्ठ शैली वाला अपना लेखन जारी रखते हुए दुगुनी ऊर्जा के साथ नई परिकल्पना में लग जाएँ।
ऑर्कूट पर मैंने लिख रखा है- जब आप समझते हैं कि सब कुछ खतम हो गया, दरअसल शुरूआत तभी होती है।
एक आग्रह : ललित जी पुनर्विचार करें.
nice
.....ललित भाई पान की दुकान पर जाओ ... पान खाओ और गुस्सा थूको .... फ़िर एक झन्नाटेदार पोस्ट चिपकाओ .... पोस्ट का इंतजार है!!!!
मैं तो हर एक ब्लागर से यही कहता हूं कि जारी रखें, किसी भी हलचल से बेअसर हो...
बस वेद-कुरान और स्वच्छ संदेश वाले जरूर इसका अपवाद हैं, वे अगर चले भी जायें तो कोई फर्क नहीं पड़ता...
रातों रात आखिर यह सब क्या हुआ? इस तरह पलायन तो उचित नही है. और अगर कुछ पारिवारिक/सामाजिक कारण हैं तो ये अलग बात है.
रामराम.
इतनी लम्बी मूंछ वाले इतने भावुक ह्रदय भी हो सकते हैं ??? आम आदमी विश्वास नहीं करेगा ! मैंने आपको अधिक तो नहीं पढ़ा है ललित भाई मगर अंदाज़ा है की आप अच्छे इंसान हैं ! ब्लाग जगत के आभासी संसार में हर इंसान की एक दुनिया बन जाती है, उसे छोड़ कर जाना जमा नहीं , यहाँ वैसे ही अच्छों की कमी है !
मेरा अनुरोध है कि आप लिखना भले ही कम कर दें ...अपने कामों में ध्यान दें और जब समय मिले तभी लिखें ...जिससे यह मूंछ वाला जनरल हमें दिखता तो रहे ! आपके फैसले का कारण मुझे नहीं मालूम मगर मेरे एक तीर से बचो
"पलायन वादी को कायर भी कहा जाता "
आपका अपना
सतीश सक्सेना
नेट से सम्बन्ध!
एक क्लिक में शुरू
एक केलिक में बन्द! .
गिरीश पंकज जी से संपूर्णत: सहमत। पर इस विधा के उन्नयन के लिए सब कुछ सहना पड़ेगा। पर इसे छोड़ना उचित हल नहीं है। उचित हल मेरी राय में तो अपनी पूरी ऊर्जा से जुटे रहना है। जो गलत हैं उनको भी बदलने की कोशिश करते रहनी चाहिए। आखिर एक दिन फतह सच्चाई की ही होगी।
sahee baat kahee hai avinash ji aapne. aur doosare bhaiyo ne bhi..umeed hai in sub pratikriyaaon ka kuchh to asar hoga hi. aur apne fauji bhai fir se maidan-e-blogin mey aa jayenge..
्बहुत कठिन है डगर पनघट की
मगर चलते रहना ही ज़िन्दगी है…………………।रुकना या घबराकर छोड देना गलत है फिर हम जैसो का क्या होगा? वापस आ जाइये और अपने कर्म क्षेत्र से जुड जाइये।
ललित भाई के प्रकरण में प्रयास जारी हैं...अभी कुछ नहीं कह सकता...लेकिन हो सकता है आपको जल्दी ही अच्छी खबर मिले...
जय हिंद...
गिरीश भाई , रचनात्मक लेखन जारी रखें ,आपके उपन्यासों की प्रतीक्षा है । ललित भाई तो जल्द ही लौट आयेंगे ..यह सब मनुष्य के सहज स्वभाव के अंतर्गत है ।
मुद्दा तो खैर पता नहीं...लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि आजकल ब्लागिंग में जो भी हो रहा है, बेहद बुरा हो रहा है....उम्मीद करते हैं भाई ळलित जी थोडा समझदारी से काम लेंगें...
गिरीश जी की बात से पूर्णत: सहमत....
Post a Comment