''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

जय-जय, जय हे पंथ खालसा....

>> Tuesday, April 13, 2010

तेरह अप्रैल १९१९. हम भारतीय कभी भी भूल नहीं सकते इस मनहूस तारीख को, जब अमृतसर के जलियावालाबाग में क्रूर जनरल डायर ने सैकड़ों भारतीयों को गोलियों से भून दिया था. उस पर लिखना शुरू करूंगा तो लंबा इतिहास हो जायेगा. इस डायर को ब्रिटिश मीडिया ने, वहां के लोगों ने हीरो बना दिया था. आश्चर्य होता है कि कैसे एक समाज दूसरे समाज की ह्त्या का जश्न भी मना लेता है? जलियावाला बाग़ काण्ड के बारे में सरकारी आंकड़ा कहता है की वहां केवल ३७८ लोग मरे और २००१ लोग घायल हुए, जबकि २-३००० शहीद हुए होंगे. १३ अप्रैल को बीस हजार लोग बैसाखी पर्व की खुशी मनाने एकत्र हुए थे. डायर को लगा कि सरकार के खिलाफ कोई साजिश की जा रही है. बस वह पागल हो गया और उसने सामूहिक नरसंहार का काला इतिहास डाला. आज उस घटना को याद करते है तो हम दुखी होते है, हमारा खून भी खौलता है. आज स्थानीय कांग्रेस भवन में मुझे एक वक्ता के रूप में बुलाया गया था. न मै कांग्रेसी हूँ, न भाजपाई या कोई और. मै एक छोटा-सा समाजवादी किस्म का लेखक और मीडियाकर्मी भर हूँ. इसलिए चला गया. बोलते-बोलते अचानक मेरे मन में यह बात आयी कि आखिर ये गोलियां चलती क्यों है? डायर ने चलाई, और उसके बाद भी खूब चलीं. आजादी के बाद से तो अब तक लाठी-गोलियां ही चल रही है. गोली चाहे आतंकवादी चलाये, नक्सली चलाये, या फिर अपनी मांगों को लेकर सडकों पर प्रदर्शन करने वाले अपने ही लोगों पर अपनी सरकारें चलाये. यह शर्मनाक सिलसिला बंद होना चाहिए. जब-जब गोलियां चलाती है, तो मुझे लगता है कि डायर फिर पैदा हो गया है. हर बार वह भेष बदल-बदल कर आता है. जैसे अभी कुछ दिन पहले वह बस्तर आया और अपने ही लोगो सामूहिक संहार करके जंगल में कहीं गायब हो गया. यह डायरपन बड़ी खतरनाक चीज़ है. विचारधारा के नशे में, सत्ता के नशें में लोग खूनी क्यों हो जाते हैं..? खून बहाए बगैर भी तो बात बन सकती है. लेकिन व्यवस्था को लगता है कि निहत्थी जनता को तितर-बितर करने के लिए लाठी-गोली ही ही एकमात्र रास्ता है. इसलिए आज जलियावाला बाग़-काण्ड को याद करते हुए मुझे बस्तर के नक्सली भी याद आ रहे है तो हर वे तमाम सरकारें भी याद आ रही है जो अपने ही लोगों पर लाठियां अथवा गोलियां बरसाती है. बंद हो गोलियां. और चलें प्यार की बोलिया, संवाद से रास्ता निकले. डायर को कोसने से कुछ नहीं होगा. हम सबको अपने-अपने भीतर बैठे डायर को भी मारना होगा.
....और अब बैसाखी की बात. जलियाँवाला बाग़ में सिख बन्धु बैसाखी की खुशियाँ मनाने एकत्र हुए थे, क्योंकि १४ अप्रैल १६९९ को ही सिखों के दसवें गुरू गोबिंदसिंघ जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. गुरू गोबिंदसिंघ जी सामाजिक समरसता के महान नायक थे. उन्होंने अपने पंथ में वंचितों को भी ससम्मान जोड़ा. ब्राह्मण, शूद्र, वैश्य एवं छत्रिय सभी को जोड़ा. मै उन्हें शूद्रों के पहले उद्धारक के रूप में देखता हूँ, वे कहते थे- ''मानुस की जात सबै एकै पहचानबो'' खैर, गुरू गोबिंदसिंघ जी ऐसी विभूति है, जिन पर मैंने '' चालीसा '' भी लिखी है. उसे फिर कभी दूंगा. फिलहाल एक गीत दे रहा हूँ, खालसा पंथ को समर्पित. देखे-
गीत..
जय-जय, जय हे पंथ खालसा इसकी अनुपम शान,
इसके कारण ही बच पाया भारत का सम्मान 
पंथ वही जो हमें पढ़ाए, मानवता का पाठ, 
क्या नीचा, क्या ऊंचा सबकी, हो इक जैसी ठाठ.
सब हैं आनंदपुर के वासी, एक वर्ण इंसान.
शुभ कर्मों से नहीं टरै जो, वह सच्चा बलवान.
जिसने दूर किया मानव के सदियों का अज्ञान.
जय-जय, जय हे पंथ खालसा इसकी अनुपम शान...

पंथ अनोखा लेकर आये थे गोविन्द विशाल,
बोले, शुद्ध ह्रदय वाले ही, गुरु के सच्चे लाल.
निर्भय औ निर्वैर बनें सब, दिया हमें यह मन्त्र,
रहें प्रेम से मिल कर सारे, करें नहीं षड़यंत्र.
निर्मल मन रखने वाले ही जीयें सीना तान.
जय-जय, जय हे पंथ खालसा इसकी अनुपम शान.

मानव की बस एक जात है, था पावन सन्देश,
निर्धन और गुलाम रहे क्यों, व्यक्ति हो या देश.
लड़े दीन के हेत वही है, समझो सच्चा वीर.
पुरजा-पुरजा कट जाए पर हरे सभी की पीर.
स्वाभिमान का पाठ पढ़ाते, गुरु गोविन्द महान.
जय-जय, जय हे पंथ खालसा इसकी अनुपम शान...

मानवता पर बढ़ा अचानक, जिस दम अत्याचार,
गुरू अर्जन हैं धन्य जिन्होंने किया तुरत प्रतिकार.
हरगोबिन्द अरु तेगबहादुर ने भी किया बलिदान,
धन्य-धन्य गुरु गोबिंद जिनकी थी शहीद संतान.
इसके कारण ही बच पाया भारत का सम्मान.
जय-जय, जय हे पंथ खालसा इसकी अनुपम शान...

8 टिप्पणियाँ:

कडुवासच April 13, 2010 at 6:46 AM  

....अदभुत ...बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय गीत, आभार !!!

Anonymous April 13, 2010 at 8:21 AM  

बहुत सशक्त और सामयिक पोस्ट ! जलियाँ वाला बाग की घटना आज ही के दिन घटी ! मै भी श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ ! कविता हृदय में आदर और सम्मान की भावना पैदा करती है! कविता के बोल प्रयाण गीत की तरह हैं !जय-जय, जय हे पंथ खालसा इसकी अनुपम शान........! आभार !

संजय भास्‍कर April 13, 2010 at 11:53 AM  

बहुत सशक्त और सामयिक पोस्ट

Anonymous April 14, 2010 at 5:01 AM  

AAdraniy girish pankaj JEE,
bahut hi behtrin rachna hai yeh,apne padhayi k karan mai blog likhne aur padhne ka samay nahi nikal pa raha hoo, magar aisha bilkul b nahi hai ki aapka blog nahi padaha ja raha hai.
"SOCHA THA ROSHNI KAR DU SABKE MAN ME,MAGAR EK HAVA KE JHOKE NE MERI UDA DI HAI." ! -LIKHTE RAHIYE, AUR AGAR ETIPS-BLOG PAR MSG BHEJNA HAI TO TYPE KAREN" Apna message aur apna naam, bhej de 8979055010.

पंकज कुमार झा. April 14, 2010 at 6:56 AM  

आ. गिरीश जी के लेखन पर क्या प्रतिक्रिया दी जाय...? खुद को प्रतिक्रया देने लायक भी समझूं तब न....! बहरहाल सदा की तरह....जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल.....!
पंकज झा.

श्रद्धा जैन April 14, 2010 at 7:50 AM  

Jaliyanwala baag ..........kabhi koi nahi bhul sakta

aapke geet ki prashansa ke liye mere pass shabad nahi hai......

Vaishakhi ki hardik shubhkamana

ACHARYA RAMESH SACHDEVA April 14, 2010 at 7:04 PM  

WAH GURU WAH.
GURU IS ALWAYS RIGHT HAS THE RIGHT
BUT FOLLOWERS ARE ALWAYS ..
SO ...
KHALSA IS ALWAYS GREAT
SINGH IS KING
BUT KING IS NOT SINGH

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार April 16, 2010 at 9:57 PM  
This comment has been removed by the author.

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP