और क्या देंगे सभी को हौसला देते रहें ...
>> Monday, April 19, 2010
पांच-छः दिन बाद प्रवास से लौट कर फिर शुभचिंतको के सामने हूँ. होशंगाबाद गया था. वहां पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता पर बोलना था. खैर, जो सूझा, वो बोल दिया. यह कोई बड़ी बात नहीं, जो मै बताऊँ. बड़ी उपलब्धि तो यह रही कि माँ नर्मदा की गोद में अठखेलियाँ करने का अवसर मिला. न जाने कितने...कितने ही वर्षों के बाद नर्मदा नदी में तैरने का आनंद लिया. इस पावन अनुभूति पर बहुत जल्द ही मै कुछ लिखूंगा. बहरहाल, वहां से लौटा तो ब्लॉग के लिए कुछ लिखना था. क्या लिखूं समझ में नहीं आया, तभी एक पंक्ति कौंधी ''और क्या देंगे सभी को हौसला देते रहे'', बस कुछ शेर बन गए. सुधीजन देखें...
और क्या देंगे सभी को हौसला देते रहें
प्यार का, सद्भावना का सिलसिला देते रहें
दे नहीं सकते हैं दौलत हैसियत भी है नहीं
मुफ्त की इक चीज़ है दिल से दुआ देते रहें
ज़िंदगी छोटी है इसको प्रेम से जी लें सभी
इस तरह इन्सानियत का हम पता देते रहें
खामखाँ इतरा रहे जैसे खुदा ही बन गए
आदमी हैं आदमी को रास्ता देते रहें.
सब चलें मिलकर चलें ये है सलीकेकारवां
जो भटक जाये उसे बढ़कर 'सदा' देते रहें
पोछ डालें आंसुओं को गर कहीं बहता दिखे
दर्द को हम प्यार की हर-पल दवा देते रहें
चार दिन की ज़िंदगी हमको मिली पंकज यहाँ
रौशनी बाँटें सभी को यह सिला देते रहें
8 टिप्पणियाँ:
बढ़िया कहा है पंकज भाई ! शुभकामनायें !
और क्या देंगे सभी को हौसला देते रहें
प्यार का, सद्भावना का सिलसिला देते रहें
भाईजी
नेट पर जबसे आपको पढ़ा है , ब्लोग़िंग सार्थक लगने लगी है । व्यंग्य , गीत , ग़ज़ल सभी में सधी हुई लेखनी !
यह ग़ज़ल भी ख़ूब कही है । बधाई !
ये शे'र बेहद पसंद आए ।
ज़िंदगी छोटी है इसको प्रेम से जी लें सभी
इस तरह इन्सानियत का हम पता देते रहें
खामखाँ इतरा रहे जैसे खुदा ही बन गए
आदमी हैं आदमी को रास्ता देते रहें.
चार दिन की ज़िंदगी हमको मिली पंकज यहाँ
रौशनी बाँटें सभी को यह सिला देते रहें
सरस्वती कृपा बनाए रखे ।
खामखाँ इतरा रहे जैसे खुदा ही बन गए
आदमी हैं आदमी को रास्ता देते रहें
बिलकुल सही फ़रमाया आपने
दे नहीं सकते हैं दौलत हैसियत भी है नहीं
मुफ्त की इक चीज़ है दिल से दुआ देते रहें
-बस, दुआयें बनी रहें! उम्दा गज़ल!
भाई साहब,
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है। आपको देखकर और पढ़कर तो कई बार लगता है कि तपस्वी कैसे बना जाता है यह सीखना होगा। बरसो से आपको जानता हूं लेकिन आपने दिशा नहीं बदली। लगे रहे साहित्य की सेवा में। अब जैसे भी हो... आप जम गए हैं। अच्छा लगता है। जल्द ही आपसे मिलता हूं या फिर फोन लगाता हूं। एक बार फिर इंसानियत का पता देने वाले भाव के लिए आपको बधाई। (मैं रचना पढ़कर ही टिप्पणी करता हूं..... हा... हा... हा.. )
सारे शुभचिंतको का आभार ...दिलसे..
राजकुमार सोनी ने कुछ ज़्यादा ही तारीफ़ कर दी . खैर 'लेखनी के राजकुमारों' को कोई रोक भी तो नहीं सकता न .. आप सब मित्रों के लिए दो पंक्तियाँ पेश है.
दिल से अगर किसी को दुआ दे रहा कोई
इंसां है ये इसका पता दे रहा कोई
मै कभी-कभी एक और बात कहता हूँ, j
आपकी शुभकामनाएं साथ हैं
क्या हुआ गर कुछ बलाएँ साथ हैं.
और क्या देंगे सभी को हौसला देते रहें
प्यार का, सद्भावना का सिलसिला देते रहें !!
भारतीय संस्कृति की उदात्त भावनाओ को
गजलो में प्रस्तुत करना आपकी पहचान है !
चलते चलते हर कोई एक बार पूछ लेता है ,
सही हूँ न !आपको पढ़ कर उसे जवाब मिल जाता है !
मेरी कविता के विकास को आपने रेखांकित किया ,
आभारी हूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद !!!
सुन्दर रचना पंकज जी ..आपकी उर्जा देखकर प्रसन्नता होती है
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