ग़ज़ल/ तुम तो केवल इन आँखों को कहने दो
>> Saturday, April 24, 2010
पृथ्वी दिवस के बाद कल विश्व पुस्तक दिवस भी निकल गया. उस अवसर पर कुछ पोस्ट करना चाहता था, लेकिन कर नहीं पाया. पुस्तक के महत्त्व पर कभी पच्चीस दोहे लिखे थे, उन्हें फिर कभी दूंगा, फिलहाल तो आज एक ग़ज़ल पेश है. शायद.. कुछ लोगों को पसंद आ जाये.
क्यों ज़ुबान को ज़हमत दो बस रहने दो
तुम तो केवल इन आँखों को कहने दो
बड़े काम की हैं अपनी प्यारी आँखें
एक सलोना सुन्दर-सपना पलने दो
इक दिन हो सकता है दिल ये मिल जाये
अगर दुश्मनी टलती है तो टलने दो
हम तो थक कर बैठ गए लेकिन यारो
जो चलता है उस राही को चलने दो
अभी ज़िंदगी का पहला पग रक्खा है
अरे उसे कुछ ठंडी-गरमी सहने दो
धीरे-धीरे बच्चा दौड़ लगाएगा
चलने दो, गिरने दो, उसे संभलने दो
ये तो साबुन है सारे ग़म धो देगा
बहते हैं गर आँसू इनको बहने दो
माना के हर बार हसरतें टूटी हैं
मगर जला फिर दीप आस का जलने दो
कितनी यादों के तुम महल बनाओगे
बुरी याद के हर मकान को ढहने दो
रो-रो कर के उसके आँसू सूख गए
मत रोको पंकज को अब तो हँसने दो
12 टिप्पणियाँ:
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
गिरीशजी,
जो नहीं दे पाए उस क्षति की भरपूर पूर्ति करदी है आपने इस शानदार ग़ज़ल के द्वारा
इक दिन हो सकता है दिल ये मिल जाये
अगर दुश्मनी टलती है तो टलने दो
बहुत बड़ा शे'र कह गए , भाई साहब !
…और
क्या नया अंदाज़ है कहने का …
ये तो साबुन है सारे ग़म धो देगा
बहते हैं गर आँसू इनको बहने दो
आपका कलाम लगातार पढ़ने की इच्छा रहेगी , बहुत शुभकामनाएं !
गिरीश जी धन्यवाद कहना चाहूँगा...आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल को पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया..
manoj ji, rajendra bhai, air vinod bhai, aap logon ki dil se dee gayee badhaiyon se lagaa, ab bhi log hai jo chahate hai, ki achchha srajaan gatimaan rahe. bani rahe yah bhavanaa.
भाई साहब,
एक दिन ऐसा आने वाला है जब सिर्फ अच्छे लोग ही ब्लागजगत पर बचे रहेंगे। मैं टिप्पणी के तौर पर कोई प्रमाणपत्र देने नहीं आया आपके ब्लाग पर लेकिन इतना जरूर कहूंगा। जो कुछ आपने लिखा है उसे लिखने लिए समय के साथ श्रम और दिमाग के साथ दिल की जरूरत होती है। बीबी, टीवी, गहनों पर कूड़ा लिखने वाले इसे नहीं समझ सकते हैं।
गिरीश भैया गुस्ताखी माफ़ हो,
दो पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं।
अधरों पर शब्दों को लाकर मन के भेद न खोलो
मैं आंखों से ही सुन सकता हुं तुम आखों से ही बोलो
आगे राजकुमार भाई ने कह ही दिया है।
सुंदर गजल के लिए आभार
धीरे-धीरे बच्चा दौड़ लगाएगा
चलने दो, गिरने दो, उसे संभलने दो
-बहुत उम्दा शेर निकाले हैं आपने, बधाई..बेहतरीन गज़ल!!
गिरीशजी,
आपका कलाम लगातार पढ़ने की इच्छा रहेगी , बहुत शुभकामनाएं !
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
इक दिन हो सकता है दिल ये मिल जाये
अगर दुश्मनी टलती है तो टलने दो
.....बहुत खूब,लाजवाब .... सभी शेर एक से बढकर एक हैं ...बेहद प्रसंशनीय गजल,बहुत बहुत बधाई !!!
एक एक शेर बेहतरीन हैं ! क्या ग़ज़ल है ! गजब ! सहज सरल शब्दों में गहरी बातें ! वाह जी !
कितनी यादों के तुम महल बनाओगे
बुरी याद के हर मकान को ढहने दो
--
धीरे-धीरे बच्चा दौड़ लगाएगा
चलने दो, गिरने दो, उसे संभलने दो
--अच्छा सन्देश देते ..जीवन जीने का मन्त्र पढ़ता हुआ शेर!
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