''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल/ कोई हमको भुला देता ...

>> Tuesday, April 27, 2010


नहीं रहते कभी तन्हा नए रिश्ते बनाते हैं.
कोई हमको भुला देता किसी को हम भुलाते हैं

अनोखी ज़िन्दगी है ये यहाँ पल-पल नए चेहरे 
कोई तस्वीर मिट जाती किसी को हम मिटाते हैं

वो जिनका नाम लेके हम चले थे हमसफ़र बनके 
अचानक राह में क्यों एक दिन वो छोड़ जाते हैं

तुम्हारी याद अब तो ज़िंदगी का इक सहारा है
न जाने लोग कैसे ज़िंदगी अपनी बिताते हैं

अगर ग़म याद रह जाये तो जीना है बड़ा मुश्किल 
इसी के वास्ते इक दिन सभी ग़म भूल जाते हैं

बहुत कुछ चाहता था मैं मगर हासिल न हो पाया
चलो जितना मिला उसको कलेजे से लगाते हैं

वो हमको प्यार करते हैं मगर जाहिर नहीं कते
अकेले में हमारे शेर लेकिन गुनगुनाते हैं

जो अपने ही नहीं उनसे भला शिकवा करें कैसे
मगर जो हैं सगे अपने वही ज़्यादा सताते हैं

तुम्हारा प्यार पाकर मैं हुआ हूँ बावरा देखो
मुझे अब लोग तेरा नाम लेकर ही बुलाते हैं / चिढ़ाते हैं.

किसी का रूप अच्छा है किसी के पास है दौलत
है जिनके पास जो कुछ उसपे ही नखरे दिखाते हैं

यहाँ तो बोलियाँ लगती हैं बहता है लहू पंकज
न जाने किस तरह के आजकल ये रिश्ते-नाते हैं.

12 टिप्पणियाँ:

वीनस केसरी April 27, 2010 at 11:19 AM  

गजल बहुत पसंद आयी

हासिले गजल शेर

बहुत कुछ चाहता था मैं मगर हासिल न हो पाया
चलो जितना मिला उसको कलेजे से लगाते हैं

उम्दा

दिलीप April 27, 2010 at 11:44 AM  

umda gazal...

Anonymous April 27, 2010 at 12:53 PM  

ग़ज़ल अच्छी लगी.

-Rajeev

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार April 27, 2010 at 6:25 PM  

"सुकूं मिलता है,आता प्यार भी;फिर रश्क होता है
सुनाते जो ग़ज़ल पंकज , बहुत अच्छी सुनाते हैं "

गिरीश पंकज जी, बह्रे - हज़ज में अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई और धन्यवाद !
वीनस केशरी जी की परख-दृष्टि को भी दाद देता हूं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Udan Tashtari April 27, 2010 at 7:56 PM  

बहुत बेहतरीन गज़ल!

girish pankaj April 27, 2010 at 9:02 PM  

"सुकूं मिलता है,आता प्यार भी;फिर रश्क होता है
सुनाते जो ग़ज़ल पंकज , बहुत अच्छी सुनाते हैं''
शुक्रिया वीनस, राजेंद्र, dilip,समीरभाई, और rajeevspoetry का.... राजेंद्र भाई के शेर को समर्पित मेरी भावनाएं-
''कोई तारीफ़ करता है किसी की आजकल पंकज?
बड़ी मेहनत से अब भगवान् वो इंसां बनाते हैं''
फिर भी लोग तो है. किसी शायर ने कहा था,''तुम अगर साथ देना का वादा करो, मैं यूं ही मस्त नज्में सुनाता रहूँ''

Shekhar Kumawat April 27, 2010 at 9:03 PM  

BAHUT KHUB

रोहित April 27, 2010 at 10:11 PM  

behatareen!
khubsurat ghazal.

virendra sharma April 27, 2010 at 10:44 PM  

gazal kyaa sab ki baat hai ,huzoor
behtreen alfaaz ,andaaze bayaan ,salaamat rahen aap ,pankaj ji ,mubaark
veerubhaai 1947.blogspot.com
935o986685
D-2flets ,No .13,west kidvai ngr New -Delhi -110-023

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार April 28, 2010 at 3:16 AM  

गिरीश पंकजजी
आपकी शान में लिखे मेरे शे'र को समर्पित , आपकी भावनाओं को अभिव्यक्ति दे रहे जवाबी शे'र ………
"कोई तारीफ़ करता है किसी की आजकल पंकज?
बड़ी मेहनत से अब भगवान् वो इंसां बनाते हैं"
… को सलाम !
स्नेह सद्भाव बनाए रखें …
मैं तो आपके साथ हो गया जी ,… वादा ! अब आप यूं ही मस्त नग़्मे और नज़्में लुटाते रहें ।
शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Ra April 28, 2010 at 4:03 AM  

अनोखी ज़िन्दगी है ये यहाँ पल-पल नए चेहरे
कोई तस्वीर मिट जाती किसी को हम मिटाते हैं

वाह भई ! ...मान गए आपको बहुत ही ...शानदार

http://athaah.blogspot.com/

Anonymous April 28, 2010 at 8:46 PM  

कोई हमको भुला देता ! ! बहुत सुंदर गजल है ! हरेक बात दिल से निकली ,दिलों तक पहुंचती हुई ! बहुत बहुत बधाई !

सुनिए गिरीश पंकज को

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