ग़ज़ल/ कोई तकरार लिखता है कोई इनकार लिखता है...
>> Tuesday, May 4, 2010
आज सिर्फ एक ग़ज़ल, बिना किसी टिप्पणी के.....
कोई तकरार लिक्खे है कोई इनकार लिखता है
हमारा मन बड़ा पागल हमेशा प्यार लिखता है
वे अपनी खोल में खुश हैं कभी बाहर नहीं आते
मगर ये बावरा दुनिया, जगत, व्यवहार लिखता है
अगर हारे नहीं टूटे नहीं तो देख लेना तुम
वो तेरी जीत लिक्खेगा अभी जो हार लिखता है
ये जीवन राख है गर प्यार का हिस्सा नहीं कोई
ये ऐसी बात है जिसको सही फनकार लिखता है
कोई तो एक चेहरा हो जिसे दिल से लगा लूं मैं
यहाँ तो हर कोई आता है कारोबार लिखता है
तुम्हारे पास आ जाऊं पढ़ूं कुछ गीत सपनों के
तुम्हारे नैन का काजल सदा श्रृंगार लिखता है
यहाँ छोटा-बड़ा कोई नहीं सब जन बराबर हैं
मेरा मन ज़िंदगी को इस तरह तैयार लिखता है
अरे उससे हमारी दोस्ती होगी भला कैसे
मैं हूँ पानी मगर वो हर घड़ी अंगार लिखता है
उधर हिंसा हुई, कुछ रेप, घपले, हादसे ढेरों
ये कैसी सूरतेदुनिया यहाँ अखबार लिखता है
वो खा-पीकर अघाया सेठ कल बोला के सुन पंकज
ज़रा दौलत कमा ले तू तो बस बेकार लिखता है
23 टिप्पणियाँ:
वहीं अंदाज और वहीं भाव जैसा पहले से पढ़ता आ रहा हूँ..गिरीश जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति ग़ज़ल की एक एक लाइन बेहतरीन है..छोटे भाई का प्रणाम स्वीकार करें..
गिरीश पंकजजी ,
"हमारा मन बड़ा पागल हमेशा प्यार लिखता है"
बह्रे-हज़ज में रवायत और जदीदियत के सम्मिश्रण से लिखी गई इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई !
ऐसे मा'सूम शे'र सुकून देते हैं …
"तुम्हारे पास आ जाऊं पढ़ूं कुछ गीत सपनों के
तुम्हारे नैन का काजल सदा श्रृंगार लिखता है"
बाकी अश्आर भी प्रभावित करते हैं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत खुशी हउई बेहतरीन गज़ल पझने को मिली ।
अगर हारे नहीं टूटे नहीं तो देख लेना तुम
वो तेरी जीत लिक्खेगा अभी जो हार लिखता है ।
वाह ।
अरे उससे हमारी दोस्ती होगी भला कैसे
मैं हूँ पानी मगर वो हर घड़ी अंगार लिखता है
शब्द शालीन पर संहारक
बहुत सुन्दर
Bahut Badhiya!
कविता-गजल की तो मुझे समझ नहीं लेकिन फिर भी आपकी ये रचना बहुत सटीक ..बढ़िया एवं भली लगी
"वो खा-पीकर अघाया सेठ कल बोला के सुन पंकज
ज़रा दौलत कमा ले तू तो बस बेकार लिखता है"
सेठिया की मत सुनना पंकज भाई ..........लगे रहो ;
वह साला तो बेकार बकता है !!
बहुत बढ़िया, बधाइयाँ !!
अच्छी शायरी का बेहतरीन उदाहरण
मुबारक हो सभी शे'र
बहुत ही उम्दा गजल है हर शेर लाजवाब है..पकंज जी...बधाई स्वीकारें।
badi hi khoobsorat gazal...
दिल खुश हो गया
आत्मा तृप्त
वो अपनी खोल में खुश हैं कभी बाहर नहीं आते
मगर ये बावरा दुनिया, जगत, व्यवहार लिखता ह
और आखिरी दोनो शेर बहुत अच्छे लगे लाजवाब गज़ल के लिये बधाई
वो खा-पीकर अघाया सेठ कल बोला के सुन पंकज
ज़रा दौलत कमा ले तू तो बस बेकार लिखता है
क्या बात है ... अति सुन्दर और गजब की ग़ज़ल है ... एक एक शेर संग्रहनीय है ...
कोई तो एक चेहरा हो जिसे दिल से लगा लूं मैं
यहाँ तो हर कोई आता है कारोबार लिखता है
अफ़सोस ऐसे चेहरे पाना मुश्किल है ...
कविता-गजल की तो मुझे समझ नहीं लेकिन फिर भी आपकी ये रचना बहुत सटीक
पंकज भाई !
लगता है मेरे मन के भाव आपने लिख दिए ...आभार आपका !
तुम्हारे पास आ जाऊं पढ़ूं कुछ गीत सपनों के
तुम्हारे नैन का काजल सदा श्रृंगार लिखता है
adbhut anupam !
अरे उससे हमारी दोस्ती होगी भला कैसे
मैं हूँ पानी मगर वो हर घड़ी अंगार लिखता है...
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ...
वो खा-पीकर अघाया सेठ कल बोला के सुन पंकज
ज़रा दौलत कमा ले तू तो बस बेकार लिखता है....
वाह ...
बस कमाने के लिए ही लिखा तो क्या लिखा ...!!
अगर हारे नहीं टूटे नहीं तो देख लेना तुम
वो तेरी जीत लिक्खेगा अभी जो हार लिखता है ।
bahut badhiya....
सचमुच लाजवाब।
सबका दिल से आभार. इतनी गहरी समझ और आत्मीयता के साथ लोग पढ़ते है. यह देखकर खून बढ़ गया. मै सबको नमन करता हूँ. स्नेह बनाएं रखें
मन के भाव आपने लिख दिए ...आभार आपका !
इतने दिनो बाद इस गजल को पुन : पढा तो मजा आ गया ।
इतने दिनो बाद इस गजल को पुन : पढा तो मजा आ गया ।
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